गुरुवार, जून 13, 2013

राजनीति के सौरभ गांगुली

उनसे कहा जा रहा है कि कप्तान होते हुए भी वे टीम से बाहर बैठें। टीम में उनकी कोई जरूरत नहीं, लेकिन कप्तान बने रहें। अगर कभी भूले भटके टीम में शामिल हो भी गए तो नॉनस्ट्राइकिंग एंड पर खड़े होकर सिर्फ मैच का मजा लें। लेकिन वे हैं कि मानते ही नहीं। दिल है कि मानता ही नहीं की तरह। उनका कहना है कि टीम इंडिया को बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदाना है। दरअसल टीम इंडिया उन्हीं का दिया हुआ नाम है। इससे  पहले भारतीय क्रिकेट टीम बोली जाती थी। उन्हीं ने टीम में वह जोश और जुनून भरा जोकि अब टीम लगातार जीत रही है। इसका के्रडिट कोई और कैसे ले सकता है। उनको याद दिलाया गया 2003 जब टीम फाइनल में पहुंचकर भी विश्वकप नहीं जीत पाई थी। उनका जवाब होता है कि यह क्या कोई कम बात है। कपिल देव के अलावा क्या कोई और कप्तान देश को फाइनल तक में पहुंचा पाया है। समय दीजिए, मौका आने दीजिए जीत कर भी दिखा देंगे। उनका से कहा जा रहा है कि देश के युवाओं को आगे आने दीजिए। तुरंत उनका जवाब आता है, युवाओं का जितना सहयोग मैंने किया है। उतना किसी ने नहीं किया। उदाहरण के लिए वे कुछ नाम भी गिना देते हैं। हरभजन सिंह, युवराज सिंह, वीरेंदे्र सहवाग आदि आदि। उन्हें एक और ऑफर दिया गया। कहा गया कि ठीक है आप टीम के सलाहकार बन जाइए। लेकिन नहीं। वे इसके लिए भी तैयार नहीं। सलाहकार क्या होता है????? जब तक जान में जान है, कप्तान ही रहेंगे। मानेंगे नहीं। ताज्जुब की बात यह है कि जिन डालमियां ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया वही डालमियां अब उनकी कारगुजारियों से परेशान हो गए हैं। उन्होंने भी सोच लिया है, आओ बेटा कर लो जो कुछ करना है, मौका मिला तो ऐसा घपचेटूंगा कि जमाना याद करेगा।
खैर, इसी का नतीजा रहा कि उन्हें बेइज्जत होकर टीम से बाहर होना पड़ा। अब घर-घर इस्तीफा लिए घूम रहे हैं, उसे भी लेने के लिए कोई तैयार नहीं है। सब मना कर रहे हैं। जब उनकी इज्जत नहीं तो इस्तीफे की कौन करे। अंतत: जनता की बेहद मांग पर धौनी को कप्तान बना दिया गया और वे मुंह टापते रह गए।


1 टिप्पणी:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

आगे आगे देखिए होता है क्या ?

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