गुरुवार, अक्तूबर 13, 2016

दशहरा, रावण, शरीफ, मोदी और पुतला

कुछ बातों अजीबो गरीब होती हैं... कुछ सिर्फ अजीब होती हैं... लेकिन केवल गरीब नहीं होती। हां, उनको करने वाले लोग जरूर गरीब होते हैं। गरीब से तात्पर्य आर्थिक स्थिति से नहीं, बल्कि मानसिक स्थिति से है। खैर, एक अजीब बात जो इस बार दशहरे पर देखने को मिली, वह थी दशहरे पर रावण के रूप में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और कुछ इंडियाज मोस्ट वांटेड आतंकियों का पुतला दहन करना। अगर हम रावण के साथ इनका पुतला दहन करते हैं तो माना जा सकता है कि हम दोनों को एक समान मान और समझ रहे हैं। रावण माना राक्षस था... अहंकारी था... लेकिन क्या हम उसके गुणों से बाकिफ नहीं हैं। वह प्रकांड विद्वान था। जिसके वध के बाद भगवान राम स्वयं अपने भाई लक्ष्मण को ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजते हों, उसकी विद्वता पर हम- आप क्या शक करने की स्थिति में होते हैं। राम होना को नामुमकिन है, लेकिन आज के दौर में रावण होना भी इससे कमतर नहीं है। यह और बात है कि जिसे भगवान ने मारा, उसे हम बिल्कुल गया गुजरा समझ ले रहे हैं। क्या हम नवाज और मोस्ट वांटेड आतंकियों को रावण के समकक्ष नहीं बनाए दे रहे हैं। यह किसी एक प्रदेश में, एक जिले में, एक समाज ने नहीं किया। देशभर में सैकड़ों जगह यही कारनामा अंजाम दिया गया। हद तो तब हो गई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी रावण बनाकर पुतला दहन किया गया। उनके साथ तमाम और नेता शामिल कर लिए गए।
विरोध दर्ज कराने के लिए पुतला दहन की परम्परा नई नहीं है। अक्सर लोग इसका सहारा लेते हैं, लेकिन कम से कम यह तो समझ लें कि हम किसका रूप बनाकर किसे जलाने का प्रयास कर रहे हैं।

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