गुरुवार, अप्रैल 29, 2010

खेल क्रिकेट का



क्रिकेट का एक और संग्राम शुरू होने वाला है। मैं यहां महासंग्राम इसलिए नहीं लिख रहा क्योंकि अक्सर अखबार के पेजों के ऊपर जो लोगो लगाए जाते हैं, उनमें क्रिकेट का महासंग्राम ही लिखा होता है। चुनाव हों तो भी महासंग्राम और क्रिकेट हो तो भी महासंग्राम एेसा लगता है जैसे संग्राम तो कोई शब्द रह ही नहीं गया है जो है सो महासंग्राम ही है। जैसे कार्रवाई कोई शब्द नहीं रह गया जब तक उसमें सख्त और कड़ी न जुड़े बात बनती ही नहीं।
खैर, पूरा देश एक बार फिर क्रिकेट के खुमार में डुबने वाला है। विश्व इसलिए नहीं लिखा क्योंकि कुछ सीमित देश ही इसमें शिरकत करते हैं। अगर बात फुटबाल की होती तो शायद विश्व शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता था।
अब बात मुद्दे की बात। इस ब्लॉग पर मुद्दत के बाद। आईपीएल जिस खुशनुमा माहौल में शुरू हुआ उतने ही तनाव भरे माहौल में इसका समापन हुआ। अब ट्वेंटी-ट्वेंटी जितनी मुश्किल दौर में शुरू हो रहा है उम्मीद की जानी चाहिए कि इसके विपरीत यह खुशनुमा माहौल में समाप्त हो। टूर्नामेंट अभी शुरू भी नहीं हुआ कि लोगों ने इसके विजेता को लेकर भविष्यवाणी करनी शुरू कर दी है। कोई भारत को विजेता बना रहा है तो कोई पाकिस्तान को। जितने लोग उतने विजेता। ये वे लोग हैं जो जानते हैं कि क्रिकेट में भविष्यवाणी करना खतरे से खाली नहीं होता लेकिन आदत से मजबूर जो हैं। एक मैच की भविष्यवाणी भी खतरनाक होती है तो फिर प्रतियोगिता शुरू होने से पहले उसके विजेता के बारे में कयास कैसे लगाए जा सकते हैं। समझना मुश्किल है। शायद भविष्यवाणी करने वाले अपनी विद्वता भी दिखाना चाहते हैं। सबकी अपनी अपनी दुकान अपना अपना काम। दुकान भी तो चलानी है न भाई। सब जानते हैं कि क्रिकेट में वही टीम जीतती है मैच के दिन अच्छा खेलती है। तो मेरा मानना है कि जो टीम लगातार अच्छा खेलेगी वही विजेता बनेगी। वो कोई भी हो सकता है।
खेल बस शुरू ही होने वाला है। इसलिए मैं भी ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा। हालांकि समय समय पर यहां अपनी बात जरूर रखता रहूंगा। आपसे गुजारिश है कि बात अच्छी लगे तो भी और खराब लगे तो भी अपनी टिप्पणी अवश्य करें। बाकी आपकी मर्जी।

शनिवार, अप्रैल 24, 2010

क्या लिखते हैं ब्लॉग और क्या छपा वेबसाइट में

मेरे ग्वालियर, पत्रिका आने की सूचना जैसे ही सार्वजनिक हुई वैसे ही मेल और फोन आने शुरू हो गए। कुछ मेल और फोन विभिन्न ब्लॉग मॉडरेटरों और वेबसाइट वालों के थे। वे मेरे बारे में कुछ एेसा जानना चाह रहे थे जो कोई अन्य न जानता हो। मैनें भी कोताही नहीं बरती और सबको कुछ न कुछ बताया। क्या छपा इन ब्लॉगां में वह यहां दे रहा हूं साथ ही यहां उनका लिंक भी दे रहा हूं जिससे की आप भी वहां पहुंच सकें और जान सकें उस ब्लॉग के बारे में।


पंकज ने पत्रिका, ग्वालियर ज्वाइन किया
Friday, 23 April 2010 17:04 B4M भड़ास4मीडिया - प्रिंट

आज समाज, अंबाला में खेल प्रभारी के रूप में कार्यरत पंकज मिश्रा ने संस्थान से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपनी नई पारी पत्रिका ग्वालियर के साथ शुरू की है। पंकज को वहां सिटी डेस्क पर तैनात किया गया है। आज समाज, अंबाला की लांचिग टीम के सदस्य रहे पंकज पहले जनरल डेस्क पर थे लेकिन आईपीएल शुरू होने के बाद उन्हें खेल पेज की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई। पंकज इससे पहले डीएलए में थे। दैनिक जागरण इलाहाबाद से पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पंकज कुछ दिन पंजाब केसरी के मुख्यालय जालंधर में भी काम कर चुके हैं। पंकज http://udbhavna।blogspot.com नाम से ब्लॉग लेखन भी करते हैं।
http://bhadas4media.com/print/4877-pankaj-join-patrika.हटमल
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पंकज मिश्रा का आज समाज, अंबाला से इस्तीफा
जनसत्ता एक्सप्रेस ब्यूरो, नई दिल्ली 2010-04-23 17:28:59
आज समाज, अंबाला से खबर आ रही है कि संस्थान में बतौर सब एडिटर तैनात पंकज मिश्रा ने इस्तीफा दे दिया है। सूत्रों ने बताया कि उन्होंने अपनी नई पारी की शुरुआत राजस्थान पत्रिका, ग्वालियर के साथ शुरू की है। पंकज को पत्रिका में सिटी डेस्क पर तैनात किया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, आज समाज, अंबाला की लांचिग टीम के सदस्य रहे पंकज ने अपने संस्थान से इस्तीफा दे दिया है। पंकज आज समाज में जनरल डेस्क पर तैनात थे और देश-विदेश के पेजों का काम देखते थे, हालांकि आईपीएल शुरू होने के बाद उन्हें खेल पेज की भी अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई थी। जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। पंकज इससे पहले डीएलए, आगरा की उस टीम का हिस्सा भी रहे हैं जिसने मेरठ रीजन में डीएलए सुबह का अखबार शुरू कराया। मूलत: उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के रहने वाले पंकज ने दैनिक जागरण इलाहाबाद से पत्रकारिता की शुरुआत की। पंकज ने पंजाब केसरी, जालंधर के साथ भी एक सफल पारी खेल चुके हैं। पंकज http://udbhavna।blogspot.com/ नाम से ब्लॉग भी चलाते हैं जिसे ब्लाग की दुनिया में काफी पसंद किया जाता है। डेस्क पर रहते हुए पंकज ने कई ऐसी खबरे भी दी हैं जिसने अखबार की विश्वसनीयता को बरकरार रखने में सहयोग दी हैं। पंकज को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों में काफी डेफ्ट नालेज हैं। पंकज को उनकी नई पारी के लिए जनसत्ता एक्सप्रेस की तरफ से ढेरों शुभकामनाएं।।।
http://jansattaexpress.net/news.php?news=१७२६
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पंकज मिश्रा पत्रिका पहुंचे
Friday, 23 April 2010 18:44 मीडिया सरकार

आज समाज, अंबाला में सब एडिटर के तौर पर कार्यरत पंकज मिश्रा ने इस्तीफा दे दिया है। वे हाल ही में ग्वालियर से लॉन्च हुई पत्रिका से जुड़े हैं। पंकज पत्रिका में सिटी डेस्क के लिए काम करेंगे।
पंकज अम्बाला में आज समाज की लॉन्चिंग टीम का हिस्सा थे और यहां देश-विदेश पेजों का काम देखते थे। खेल के पेज की उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी भी गई थी। पंकज आज समाज से पहले आगरा में डीएलए के लिए काम कर चुके हैं। पत्रकारिता की शुरूआत उन्होंने दैनिक जागरण के साथ की थी। वे पंजाब केसरी को भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
http://mediasarkar.com/hi/index.php?option=com_content&view=article&id=1177:2010-04-23-13-17-12&catid=105:2010-01-13-13-26-23&Itemid=४९९
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पंकज मिश्रा पत्रिका ग्वालियर पंहुचे
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
By Administrator
शिशिर शुक्ला
समाचार4मीडिया.कॉम
‘राजस्थान पत्रिका’, ग्वालियर से खबर है कि पंकज मिश्रा ने बतौर सब एडिटर ज्वाइन किया हैं। वे यहां से पहले ‘आज समाज’ समाचारपत्र में कार्यरत थे। पंकज मिश्रा को ‘राजस्थान पत्रिका’ के ग्वालियर संस्करण में सिटी डेस्क का कार्य मिला हैं। पंकज मिश्रा ग्वालियर आने से पहले ‘आज समाज’ अंबाला की लॉन्चिग टीम के सदस्य रहे हैं, उन्होंने कुछ दिनों पूर्व ही ‘आज समाज’ से इस्तीफा दे कर पत्रिका ज्वाइन किया है।
पंकज मिश्रा पहले भी पंजाब केसरी, जालंधर में कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा मिश्रा डीएलए, आगरा से सुबह निकलने वाले अखबार का भी हिस्सा रहे हैं। पंकज मिश्रा अच्छे ब्लॉगर भी हैं और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दो पर अपनी बेबाक राय रखते हैं।
http://samachar4media।com/
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पंकज मिश्रा की पत्रिका से साथ नई पारी
(शनिवार /24 अप्रैल 2010 / ग्वालियर / मीडिया मंच )आज समाज , अंबाला में खेल प्रभारी के रूप में कार्यरत पंकज मिश्रा ने अपने पद से इस्तीफा देने के बाद 'पत्रिका' ग्वालियर में अपनी नई पारी शुरू की है .पंकज ने अपने करिएर की शुरुआत दैनिक जागरण इलाहबाद से की थी . बाद में उन्होंने पंजाब केसरी और डीएलए के लिए भी काम किया . पंकज ने वरिष्ठ पत्रकार और चिन्तक सुभाष राय की अगुवाई में डीएलए ब्रॉडशीट सुबह के अखबार को मेरठ, सहारनपुर, बागपत, मुजफ्फरनगर और बिजनौर में लांच करने में अहम भूमिका निभाई . पंकज , आज समाज के लांचिग टीम के भी सदस्य रहें . पंकज के लेख आप उनके ब्लॉग ' उदभावना ' पर पढ़ सकते हैं । पंकज को उनकी इस नई पारी के लिए मीडिया मंच की ओर से ढेर सारी शुभकामना
http://www.mediamanch.com/Mediamanch/NewSite/Catevar.php?Catevar=2&Nid=१०६०
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इसके अलावा अगर आप मीडिया से जुड़ा कोई ब्लॉग या वेबसाइट चलाते हैं तो मुझे बताएं। आप अगर और कुछ भी इन ब्लॉगों के बारे में कहना चााहते हैं तो आपका स्वागत है। कृपया अपनी राय से हमें अवगत कराएं।

शुक्रवार, अप्रैल 23, 2010

मैं, ग्वालियर और पत्रिका

मैं ग्वालियर आ गया हूं। हालांकि आए हुए तो करीब दस दिन हो गए हैं लेकिन लोकल मोबाइल नंबर न होने की वजह से किसी से सम्पर्क नहीं हो पा रहा था। आज ही नंबर ले लिया है। इसलिए सबको बात भी दिया है। यानी अब इस बात का पूर्ण रूप से खुलासा हो गया है कि मैनें पत्रिका, ग्वालियर ज्वाइन कर लिया है। ब्लॉग जगत का बंदा हूं तो मेरे यहां होने की खबर मीडिया खबरों से संबंधित ब्लॉगों पर भी आ गई है। उनका लिंक यहां दे रहा हूं अच्छा लगेगा अगर वहां मेरे बारे में पढ़कर मेरे ब्लाग में कमेंट करेंगे। वैसे मैनें देखा है कि मेरे बारे में ब्लॉगों पर खबर आने के बाद इस ब्लॉग पर हिट्स की संख्या बढ़ गई है। ग्वालियर में हूं और रहूंगा तो कुछ समय बाद यहां के बारे में भी कुछ लिखूंगा। पर थोड़ा समय चाहिए। पर लिखूंगा जरूर। आपने यह पोस्ट पढ़ी इसके लिए धन्यवाद। अगर कमेंट करके जाएंगे तो और भी अच्छा लगेगा।
ब्लॉग लिंक
http://jansattaexpress.net/
http://bhadas4media.com/

बुधवार, अप्रैल 07, 2010

कहां गया बढावन

दुर्गेश मिश्रा

आज अचानक मेरा बेटा मुझसे पूछ बैठा, पिताजी बढावन क्या होता है।मैने पूछा, यह तुमने कहां सुना। उसने तपाक से कहा दादाजी छोटे दादाजी को कह रहे थे कि जो गेहूं की ढेर लगी है उसपर बढावन रख दो।बेटे की बात सुनकर हमें भी दादाजी के साथ बिताया अपना ओ बचपन याद आ गया। जब हम दादाजी के साथ खलिहान में जाया करते थे। वहां एक नहीं दो नहीं बल्कि पूरे गांववाले अपना अनाज काट कर इकट्ठा किए होते थे। चाहे वह रबी की फसल हो या खरीफ की। किसी के अनाज की मडाई बैलों से होती थी, तो किसी की थ्रेशर से। उस टाइम इतने अत्याधुनिक संसाधन तो होते नहीं थे। धान और गेहूं की कटाई और मडाई का सारा काम हाथों से होता था। यह खलिहान मात्र कटे हुए अनाज के बोझ रखने और मडाई करने का स्थान ही नहीं होता था। बल्कि इसमें छिपी होती थी आपसी सहयोग की भावना। और इसी सहयोग में छिपा है लेढा यानी बढावन का रहस्य, जिसे हमारा बच्चा हमसे पूछ रहा था।हां तो बात छिडी है बढावन की। इस बात को आगे बढा ने से पहले हम आप से पूछना चाहते हैं कि क्या आप बढावन के बारे में जानते हैं या भूल चुके हैं अपने उन ग्रामीण परिवेस और संस्कृति को जिसमें छिपा है बढावन का रहस्य। आप सोचिएअब, मैं आप को बता रहा हूं। खालिहान में जब अनाज की मडाई हो जाती थी तो, अनाज के गल्ले पर गोबर की एक छोटी सी पिंडी रख दी जाती थी। इसी पिंडी को हमारे बडे बुजुर्ग कहते थे लेढा या बढावन।इसी गोबर की पिंडी मे वे देखते थे मंगलमूर्ति गणेश को, और ये गोबर के गणेश उसी ढेरी पर कायम रहते जब तक की अनाज की आखिरी बोरी भी भर कर घर चली नहीं जाती। कभी।कभी लोग जुमला भी कसते थे । गेहूं की राशि पर लेढा बढावन ।

बढावन का काम बस यहीं पर खत्म नहीं हो जाता, बल्कि इसके बाद चढावन की भी बारी आती थी यानि, खलिहान के आस.पास के थानों पर नई फसल का पहला दाना चढाया जाता था। हम इसे अंधविश्वास की संज्ञा भी दे सकते हैं, लेकिन नहीं। इसी चढावन के बहाने अन्न का दाना उन बेजुबान परिंदों को भी मिल जाता था, जो अपने चुग्गे के लिए मिलों की उडान भरते हैं।अब गांव का भी शहरीकरण होने लगा है। आबादी बढ रही है। इसी शहरीकरण और आबादी ने हमसे हमारा खलिहान छिन लिया है। जबसे कमबख्त ई कंबाइन आई है तब से हमारे आपसी सहयोग की भावना भी जाती रही। टैक्टर ने तो पहले ही हमसे हमार गोधन छिन ही लिया है।अब हालात यह है कि बेटी के विवाह में बारत को ठहराने के लिए भी जगह नहीं बची है, ससुरी आबादी और आधुनिकता जो फैल गई है। सुक्र है अब बारात जनवासा नहीं रहती नहीं तो बवाल हो जाता। अब तो गांवन में भी जंजघर या मैरिज पैलेस का इंतजाम करना पडेगा। जब खेत और खलिहान ही नहीं बचेंगे तो बच्चे तो पूछेंगे ही कि पापा बढावन का होला

सोमवार, अप्रैल 05, 2010

भारत ही नहीं टेनिस भी छोडेंगी सानिया


जी, सानिया पर बहुत लिखा जा चुका है और आने वाले दिनों में लिखा भी जाता रहेगा। न केवल सानिया की शादी तक बलि्क मुझे तो लगता है उसके बाद भी। बहस हो रही है कि शादी होनी चाहिए कि नहीं। शुएब ने किसी के साथ धोखा किया है या नहीं। सानिया ने एक पाकिस्तानी से शादी का फैसला लेकर ठीक किया कि नहीं। शादी के बाद सानिया भारत से खेलेंगी या पाकिस्तान से।
पर मुझे लगता है कि शादी करना न करना। किससे करना या इससे संबंधित अन्य मामले पूरी तरह व्यकि्तगत होते हैं। और होने भी चाहिए। यह बात अलग है कि मशहूर लोगों की शादी और अन्य बातों को लोग जानना चाहते हैं। यही कारण है कि मीडिया उन्हें छापता है या छापने के लिए मजबूर होता है। मशहूर होने की कुछ कीमत तो चुकानी ही पडती है। कई ने चुकाई है सानिया चुका रही हैं और आने वाले समय में न जाने कितने चुकाएंगे। खैर।
अब बात सानिया के खेलने की। सानिया कहती हैं कि वह शादी भले पाकिस्तान में कर रहीं हों पर इसके बाद भी वह भारतीय रहेंगी और भारत के लिए टेनिस खेलती रहेंगीं। हम कितने भुलक्कड हैं। कोई बात कुछ दिन बाद ही भूल जाते हैं। याद करिये वो समय जब सानिया की सोहराब मियां से सगाई टूटी थी। इसके करीब 15 दिन पहले ही सानिया ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि शादी के बाद वह टेनिस को तलाक दे देंगीं। यह बात सभी टीवी चैनलों पर चली और लगभग हर अखबार में छपी। तक तरह तरह के कयास लगाए गए। अब सानिया कह रहीं हैं कि शादी के बाद भी वह टेनिस खेलेंगी। अब यह तो सानिया की बता सकतीं हैं कि वह तब झूठ बोल रही थीं या अब बोल रहीं हैं। यह तो तय है कि वह एक बार तो झूठ बोल ही रहीं हैं।
अब बात दूसरी। सानिया की शादी पाकिस्तान में हो रही है। यह बात अलग है कि वह बाद में दुबई में निवास करेंगीं। सानिया यह कैसे सोच सकतीं हैं कि शुएब के साथ शादी करने के बाद भी वह भारतीय नागरिक बनी रहेंगीं। पाकिस्तान के कानून की बात करें तो उसमें स्पष्ट लिखा है कि किसी पाकिस्तानी की पत्नी उनके देश में रहना चाहे तो उसे पाकिस्तान की नागरिकता ग्रहण करनी होगी। सबसे खास बात यह कि भारत और पाकिस्तान में दोहरी नागरिकता को स्वीरकार नहीं किया जाता। मैं तो कहूंगा कि यह सानिया की नादानी और विवेकहीनता ही होगी अगर वह यह सोचती हैं कि पाकिस्तान में शादी करने के बाद भी भारत के नागरिक को मिलने वाली विशेषाधिकार का लाभ लेती रहेंगी।
अभी तो केवल शादी की बातें हो रहीं हैं। शादी की तारीख तय हो गई है। लेकिन पाकिस्तानी टेनिस अधिकारियों ने तो अभी से सानिया पर अधिकार जमाना शुरू कर दिया है। ऐसे में कैसे माना जा सकता है कि शादी के बाद वहां के अधिकारी सानिया को किसी अन्य देश कम से कम भारत से खेलने देंगे। सानिया का कैरियर भी कुछ खास नहीं चल रहा है। वह टाप 100 खिलाडियों के आसपास भी नहीं हैं। जब वह अभी ही नहीं खेल पा रहीं हैं तो कैसे भरोसा किया जाए कि वह शादी के बाद खेल में सुधार कर लेंगी। सानिया कहती हैं कि वह ओलंमि्पक में भारत की ओर से खेलेंगी। दरअसल सानिया झूठ बोल रही हैं। यह तो माना जा सकता है कि वह पाकिस्तान की ओर से नहीं खेलेंगी पर यह भी तय है कि वह भारत की ओर से भी नहीं खेलेंगी। शादी के बाद कोई न कोई बहाना बना कर वह टेनिस को भी अलविदा ही कहेंगी।
अब बात पाकिस्तानी लोगों के खुश होने की। पता चला है कि पाकिस्तानी इस बात से बेहद खुश हैं कि शुएब मियां सानिया से निकाह कर रहे हैं। दरअसल पाकिस्तानी इस बात से ज्याद खुश हैं कि शुएब एक भारतीय लडकी से शादी कर रहीं हैं। जो लोग यह कह रहे हैं कि ऐसी शादियों से दोनों देशों के बीच बनी खाई को पाटा जा सकता हैं वह सरासर गलत बोल रहे हैं। अगर कोई पाकिस्तानी लडकी किसी भारतीय पुरुष के साथ शादी का निर्णय करती तो भी क्या वे लोग इतने ही खुश होते। कहने को कहा जा सकता है कि हां। पर ऐसे लोगों की हकीकत तभी सामने आएगी जब ऐसा हो। उससे पहले नहीं।
सानिया अगर अपने देश और भारत से इतना ही प्रेम करती हैं तो क्या बात है कि उन्होंने अपने जीवनसाथी के रूप में किसी भारतीय की बजाय पाकिस्तानी का चयन किया। क्या ऐसा माना जाए कि भारतीय पुरुष खासकर भारतीय मुसलमान पुरुष इस काबिल नहीं हैं। या और कुछ वजह है।
जो भी हो। आने वाले दिनों में यह मामला और तूल पकडेगा। उनके बारे में खूब लिखा जाएगा। यह ब्लाग और पोस्ट जो भी पढ रहा है मैं उनसे अनुरोध करना चाहता हूं कि इस पोस्ट में मैनें जो भी सवाल उठाए हैं उनका अपनी हिसाब से जवाब दें और हो सके तो सानिया के विषय में जो कुछ भी विभिन्न ब्लागों पर लिखा जा रहा है उसके बारे में मुझे अवगत कराएं।

शनिवार, अप्रैल 03, 2010

लार्ड मैकाले और उनका गाउन

मौका भोपाल के भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के सातवें दीक्षांत समारोह का। बतौर मुख्य अतिथि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश। और यह क्या मंत्री जी ने दीक्षांत समारोह में पहना जाने वाला गाउन यह कहते हुए उतार कर फेंक दिया कि आजादी के साठ साल बाद भी मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि हम ब्रिटिश राज का यह बर्बर प्रतीक क्यों ढो रहे हैं। वह यहीं नहीं रुके और वहां उपसि्थत लोगों के सवाल किया कि सामान्य पोशाक दीक्षांत समारोह में क्यों नहीं पहन सकते। उन्होंने राय दी कि मध्ययुगीन पादरियों और उनके प्रतिनिधियों की ओर से आरम्भ किए गए रीति रिवाज की जगह हमें इस समारोह में सामान्य पोशाक में ही नजर आना चाहिए।
लेने को रमेश के इस बयान को किसी भी रूप में लिया जाए। हो सकता है कल को इसे लेकर खूब हल्ला हो लेकिन रमेश की बात में कितना दम है यह उसी हाल में तब पता चला जब उनकी बात खत्म होने पर हाल तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा।
हो सकता है रमेश का यह कदम क्रांतिकारी कदम साबित हो। लेकिन यह जानना आवश्यक है कि इस क्रांति की पहली नींव पंजाब में रखी गई। वहां के छात्रों ने तो करीब दो साल पहले ही इस बात का विरोध शुरू कर दिया था। यहां के चार कालेज के छात्र लगातार इसका विरोध करते रहे। फगवाडा के कमला नेहरु कालेज फार वूमेन में दीक्षांत समारोह के दौरान छात्रों ने शपथ ली कि वह अपना दीक्षांत समारोह बिना गाउन के मनाएंगे। बटाला के बीयू क्रिशि्चयन कालेज के छात्रों ने दीक्षांत समारोह से पहले तो गाउन पहने पर लेकिन भाषण के बाद गाउन उतार कर फेंक दिए। उन्होंने गाउन के बिना ही डिग्री ग्रहण की। पंजाब के ही जलंधर में एसडी कालेज फार वूमेन में छात्राओं ने तो गाउन पहने पर शिक्षकों ने नहीं। एक और उदाहरण शांति देवी आर्य महिला कालेज गुरदारपुर की 46 छात्राओं ने समारोह में बिना गाउन पहने डिग्री हासिल की। यही नहीं यह छात्राएं अन्य छात्राओं को भी गाउन त्यागने के लिए प्ररित कर रही हैं। पंजाब की स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री तो किसी दीक्षांत समारोह में इसी शर्त पर जाती हैं कि वहां कोई गाउन न पहने।
आइये अब यह जानते हैं कि इस गाउन की कहानी आखिर क्या है। दरअसल दीक्षांत समारोह में गाउन पहनने का अधिकार उन छात्रों को मिलता है जो विश्वविद्यालय या कालेज से स्नातक या स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करते हैं। गाउन पहने की परंपरा सालों पहले शुरू हुई थी। इसकी नींव रखने वाले लार्ड मैकाले माने जाते हैं। दरअसल हमारी पूरी शिक्षा पद्धति ही उनकी देन है सो यह भी। कई देशों में स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों के लिए अलग अलग गाउन होते हैं। गाउन को रोब भी कहा जाता है और इसके साथ कैप और हूड भी पहनी जाती है। विदेशों में बिना गाउन के किसी छात्र को डिग्री नहीं दी जाती।
मजे की बात यह है कि जिस काले रंग को दुख और भय का प्रतीक माना जाता है उसे छात्र अपने जीवन के सबसे अनमोल क्षण में पहनते हैं। क्या कहने इस रिवाज के। क्या गाउन पहन कर डिग्री न लेने से इसका प्रभाव कम हो जाता हैं। ऐसा कुछ भी नहीं तो फिर क्यों नहीं खडे हो जाते इस नीति के विरोध में। आपका इस विषय में क्या सोचना है हो सके तो बताएं।

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