इन दिनों दिमाग बड़ा विचार मंथन कर रहा है। कभी कुछ सोचता है तो कभी कुछ। आखिर उसका काम ही यही है, सो करेगा ही। वैसे इन दिनों पूरा देश और दुनिया किसी न किसी बात को लेकर विचार मग्न है। हो भी क्यों न आखिर हो भी तो ऐसा ही कुछ रहा है।
आईपीएल अपने अंतिम दौर में है और अब कुछ गिनी चुनी टीमें ही रह गई हैं। इन्हीं में से कोई टीम विजेता बनेगी। टीवी के खेल पत्रकार और उसमें आने वाले तथाकथित विशेषज्ञ अपने-अपने हिसाब से बता रहे हैं कि कौन जीतेगा और क्यों। एक बहुत बड़े ज्योतिषी ने दुनिया के खत्म होने की भविष्यवाणी कर दी। तारीख निकल गई लेकिन दुनिया जस की तस है और दुनियादारी चल रही है। दुनिया खत्म हो जाती तो कोई पूछने वाला ही नहीं रहता लेकिन वाह री दुनिया खत्म ही नहीं हुई। अब तो लोग पूछेंगे ही। सवाल करेंगे ही। कुछ तो लोग कहेंंगे...., सो कहे जा रहे हैं। ज्योतिषी साहब भी कहां पीछे रहने वाले हैं, एक और तारीख बता दी। करो तब तक इंतजार। देखते हैं क्या होता है। ज्योतिषी और वैज्ञानिक इसी चक्कर में अपने दिमाग पर जोर दे दे कर थके जा रहे हैं। ओसामा बिन लादेन मर गया, लेकिन अपने पीछे छोड़ गया सवालों का अंबार। लोग तरह-तरह के सवाल कर रहे हैं और विशेषज्ञ उसके जवाब भी दे रहे हैं। इसी बीच मुल्ला उमर के मारे जाने की खबर आई। कोई कह रहा है वह मारा गया, कोई कह रहा है वह जिंदा है। इस पर भी लोग मगजमारी कर रहे हैं। पता कर लो तो जानें।
भारत में इन दिनों एक और मामले पर दिमाग पर जोर डाला जा रहा है। भ्रष्टाचार के आरोपी जेल जा रहे हैं। कई बड़े लोग जेल में है और कई बाहर। टीवी पर विशेष कार्यक्रम आ रहे हैं और अखबारों में खास रपटें और टिप्पणी लिखीं जा रही हैं कि अंदर वाला कब तक अंदर रहेगा और बाहर वाला कब अंदर जाएगा। बाहर वाले लोग यह सोच-सोचकर दिन काट रहे हैं पता नहीं कब भीतर जाना पड़े।
मेरे विचार मंथन का कारण इसमें से कोई नहीं है। मेरा कारण यह है कि क्यों न मैं भी जेल चला जाऊं। दरअसल इन दिनों दिल्ली की तिहाड़ जेल में इतने बड़े-बड़े लोग हैं कि दिल है कि मानता ही नहीं....। जब से कनिमोझी उर्फ कनिमोई उर्फ कनिमोणी जेल गई हैं तब से मैं विचलित सा हुआ जा रहा हूं। मुझ जैसा साधारण आदमी खुली हवा में तो ऐसे बड़े लोगों से मिल पाने में समर्थ है नहीं। वहीं एक मौका बन सकता है। क्यों न उसे लपका जाए। हूं तो पेशे से पत्रकार ऐसे में कहा जा सकता है कि पत्रकारों के लिए ऐसे लोगों से मिलने मेें भला क्या समस्या। लेकिन समस्या है, साहब...। जब नीरा राडिया जैसी हस्तियां माध्यम (मीडियम) का रोल निभाने लगती हैं तो मेरी संभावना और भी नगण्य हो जाती है।
भला आप ही बताइए, क्या सेक्स रैकेट चलाने वाली देश की नामी कॉल गर्ल ने कभी सोचा होगा कि करुणानिधि की पुत्री उनके साथ रात गुजारेंगी। यही नहीं ऐसा भी मौका आएगा जब वह खुद अपने हाथों से कनिमोई के आंसू पोछेगी। मुझे तो नहीं लगता। राजा हों या कलमाड़ी। लोग उन्हें पूरे मन से गालियां दे रहे हैं। लेकिन मैं नहीं देता। मैं तो उनकी मुस्कुराहट पर फिदा हूं। जब भी टीवी पर उनकी तस्वीर दिखाई जाती है दिल खुश हो जाता है। वही मुस्कुराता हुआ, दिल खिलाता हुआ मेरा यार...। लगता है जिंदगी कैसे जी जाती है कोई इनसे सीखे। कोई कहे कहता रहे कितना भी इन्हें भ्रष्टाचारी, इन लोगों की ठोकर में है ये जमाना....। मैं चाहता हूं कि कोर्ट कुछ और दिन इनकी जमानत की अर्जी स्वीकार न करे साथ ही कुछ और लोगों को भी तिहाड़ पहुंचाने की जुगाड़ करे। तब तक मैं कोई न कोई ऐसा काम कर ही दूंगा कि उनके पास तक पहुंच जाऊं। और फिर कौन सा जीवनभर जेल में ही रहना है। कुछ दिन की ही तो बात है। बाहर आकर फिर सब ठीक ही हो जाएगा। फिर पत्रकारिता भी धड़ल्ले से चलेगी और राजनीति भी। अब यह सोच रहा हूं कि कौन सा ऐसा काम करूं जो तिहाड़ में जगह मिल जाए।
पुनश्य
हां... अगर तिहाड़ में जगह न मिले तो मुंबई की येरवडा जेल में भेज दिया जाए। सुना है वहां अतिथि देवो भव का भाव बहुत है। हो सकता है कुछ दिन वहां रहकर कुछ सेहत ही ठीक हो जाए। और एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की शख्सियत से मिलने का मौका भी तो मिलेगा। फिर मैं भी अंतरराष्ट्रीय हो जाऊंगा।
बुधवार, मई 25, 2011
सोमवार, मई 09, 2011
इंडियन पल्टन लीग और अपने चंडीदास
मेरे मोहल्ले में इन दिनों सब पर क्रिकेट का जुनून सवार है। विश्व कप जीतने के बाद तो ऐसा लग रहा है मानो हर कोई अपने बच्चे को क्रिकेटर ही बना कर छोड़ेगा। बहुत संभव है कि आने वाले कुछ साल बाद देश में डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस अधिकारी और सेना के जवान कम पड़ जाएं। जब सभी बच्चे क्रिकेटर बन जाएंगे तो अन्य काम कौन करेगा। बड़ा सवाल है। वैसे अन्य पेशों की तरह पत्रकारों की जमात भी कम हो जाएगी। इससे मुझे प्रत्यक्ष रूप से फायदा होगा। जब नए लोग नहीं आएंगे तो मीडिया संस्थानों को पुराने पत्रकारों से ही काम चलाना पड़ेगा। मेरी अपनी नौकरी पर खतरा नहीं रहेगा यह एक अच्छी खबर है।
खैर इन सब बातों से दूर चलते हैं अपने मोहल्ले के क्रिकेट पर। तो मैं कह रहा था कि मेरे मोहल्ले में इन दिनों सब कोई क्रिकेट के रंग से सराबोर हुुआ जा रहा है। मोहल्ले में पिछले चार साल से क्रिकेट की एक प्रतियोगिता होती है। तीन साल तक इसमें आठ टीम हुआ करती थीं। इस साल दस टीम इसमें हिस्सा ले रही हैं। नाम रखा गया है, आईपीएल। नहीं... नहीं... आप गलत समझे..इसका मतलब है, इंडियन पल्टन लीग। इस प्रतियोगिता की खास बात यह है कि इसमें मोहल्ला या अन्य किसी प्रकार का गतिरोध नहीं होता। किसी भी मोहल्ले का व्यक्ति किसी भी मोहल्ले की टीम से खेल सकता है। उसे पैसा मिलेगा और शोहरत भी। इसलिए इसे नाम दिया गया इंडियन पल्टन लीग। इस बार टूर्नामेंट की खास बात यह है कि पिछले तीन साल से एक टीम के कप्तान रहे चंडीदास को इस बार किसी ने अपनी टीम में भर्ती नहीं किया। टूर्नामेंट जब आधे से अधिक हो गया तो चंडीदास के एक पुराने मित्र ने किसी तरह उन्हें टीम में शामिल कराया। चंडीदास की पत्नी मोना का कहना है कि पहले चंडी के साथ खेलते रहे रमेश जब अभी तक खेल सकते हैं और एक टीम की कप्तानी कर सकते हैं तो चंडी क्यों नहीं खेल सकते। बड़ी बात यह है कि चंडी के मित्र ने चंडीदास को टीम में शामिल तो करा लिया लेकिन मैदान पर नहीं उतार सके। चंडीदास के टीम में शामिल होने के बाद पिछले दिनों जब उनकी टीम मैदान में उतरी को चंडीदास टीम की जर्सी पहनकर बजाय रन या विकेट लेने के तालियां बजा रहे थे। लोग यह समझ पाने में अपने आप को असमर्थ पा रहे थे कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो चंडीदास मैदान पर नहीं उतरे। टूर्नामेंट अब उस दौर में पहुंच जबकि चंडीदास की टीम कभी भी टूर्नांमेंट से बाहर हो सकती है। चंडीदास पहले भी जिस टीम के कप्तान थे वह भी लगातार हार रही थी। इस बार वही टीम अच्छा प्रदर्शन कर रही है। अब चंडीदास खेलकर क्या दिखाना चाह रहे हैं। यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है।
वैसे एक बात तो हैं चंडीदास के फैन बहुत हैं। मैं भी उनमें से एक हूं, लेकिन अब सवाल यही है कि अगर चंडीदास न ही खेलते तो ही ठीक था। खेलकर कहीं अपने पुराने प्रशांसकों को चंडीदास खो न दें।
पुनश्य
किसी व्यक्ति का आत्मविश्वास और चुनौती स्वीकार करने की आदत कब उसकी हठ और घमंडी स्वभाव को दर्शने लगता है। यह अच्छी तरह अब मेरी समझ में आ रहा है।
खैर इन सब बातों से दूर चलते हैं अपने मोहल्ले के क्रिकेट पर। तो मैं कह रहा था कि मेरे मोहल्ले में इन दिनों सब कोई क्रिकेट के रंग से सराबोर हुुआ जा रहा है। मोहल्ले में पिछले चार साल से क्रिकेट की एक प्रतियोगिता होती है। तीन साल तक इसमें आठ टीम हुआ करती थीं। इस साल दस टीम इसमें हिस्सा ले रही हैं। नाम रखा गया है, आईपीएल। नहीं... नहीं... आप गलत समझे..इसका मतलब है, इंडियन पल्टन लीग। इस प्रतियोगिता की खास बात यह है कि इसमें मोहल्ला या अन्य किसी प्रकार का गतिरोध नहीं होता। किसी भी मोहल्ले का व्यक्ति किसी भी मोहल्ले की टीम से खेल सकता है। उसे पैसा मिलेगा और शोहरत भी। इसलिए इसे नाम दिया गया इंडियन पल्टन लीग। इस बार टूर्नामेंट की खास बात यह है कि पिछले तीन साल से एक टीम के कप्तान रहे चंडीदास को इस बार किसी ने अपनी टीम में भर्ती नहीं किया। टूर्नामेंट जब आधे से अधिक हो गया तो चंडीदास के एक पुराने मित्र ने किसी तरह उन्हें टीम में शामिल कराया। चंडीदास की पत्नी मोना का कहना है कि पहले चंडी के साथ खेलते रहे रमेश जब अभी तक खेल सकते हैं और एक टीम की कप्तानी कर सकते हैं तो चंडी क्यों नहीं खेल सकते। बड़ी बात यह है कि चंडी के मित्र ने चंडीदास को टीम में शामिल तो करा लिया लेकिन मैदान पर नहीं उतार सके। चंडीदास के टीम में शामिल होने के बाद पिछले दिनों जब उनकी टीम मैदान में उतरी को चंडीदास टीम की जर्सी पहनकर बजाय रन या विकेट लेने के तालियां बजा रहे थे। लोग यह समझ पाने में अपने आप को असमर्थ पा रहे थे कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो चंडीदास मैदान पर नहीं उतरे। टूर्नामेंट अब उस दौर में पहुंच जबकि चंडीदास की टीम कभी भी टूर्नांमेंट से बाहर हो सकती है। चंडीदास पहले भी जिस टीम के कप्तान थे वह भी लगातार हार रही थी। इस बार वही टीम अच्छा प्रदर्शन कर रही है। अब चंडीदास खेलकर क्या दिखाना चाह रहे हैं। यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है।
वैसे एक बात तो हैं चंडीदास के फैन बहुत हैं। मैं भी उनमें से एक हूं, लेकिन अब सवाल यही है कि अगर चंडीदास न ही खेलते तो ही ठीक था। खेलकर कहीं अपने पुराने प्रशांसकों को चंडीदास खो न दें।
पुनश्य
किसी व्यक्ति का आत्मविश्वास और चुनौती स्वीकार करने की आदत कब उसकी हठ और घमंडी स्वभाव को दर्शने लगता है। यह अच्छी तरह अब मेरी समझ में आ रहा है।
बुधवार, मई 04, 2011
बेगाने की शादी और अब्दुल्ला की दीवानगी
पता नहीं अब्दुल्ला कौन था और वह बेगाना कौन था जिसकी शादी होने पर वह दीवाना सा घूम रहा था। यह किस युग की बात है यह भी मैं नहीं जानता। लेकिन पिछले तीन चार दिन से अब्दुल्ला टाइप कुछ शख्स मेरे मोहल्ले में दिख रहे हैं।
दरअसल हुआ कुछ यूं है कि मेरे घर से कुछ दूरी पर रहने वाले एक शक्तिशाली युवक की भैंस पिछली गली में रहने वाले एक युवक ने खोल ली थी। इससे पूरा मोहल्ला दंग और हतप्रभ रह गया। किसी ने इस प्रकार की कल्पना तक नहीं की थी कि ऐसी भी कोई घटना हो जाएगी। लेकिन हो गई तो हो गई। खास बात यह रही कि जिसने भैंस खोली थी वह कोई हल्का पुल्का शख्स नहीं था। दूर-दूर तक उसकी ख्याति थी। कई लोगों से उसके अच्छे संबंध थे। बड़ी बात यह कि भैंस खोल लो और किसी को पता भी न चले यह विद्या उसे उसी ने सिखाई थी जिसकी भैंस इस बार खोली गई है। अब चेला ही गुरु को मात दे दे यह कोई भला कैसे बर्दाश्त करेगा। तो साहब इनको भी नहीं हुआ। उसी दिन कसम खाई कि बदला तो लेकर रहूंगा चाहे जितना वक्त लग जाए। भैंस का मालिक बदल गया लेकिन बदला लेने की भावना अभी बाकी रही। भैंस खोलने वाला तो भैंस खोलने के बाद ग्यारह-बारह-तेरह (नौ दो ग्यारह से आगे बढ़कर) हो गया लेकिन बेचार पीडि़त जगह जगह उसकी तलाश करता रहा। कई बेकसूरों को भी उसने अपनी शक्ति का शिकार बना डाला। लेकिन आरोपी नहीं मिला। इस बीच कई लोगों को शक हुआ कि अब्दुल्ला का पड़ोसी कहीं आरोपी को शरण तो नहीं दे रहा है। उसका घर भी पीडि़त से काफी दूर है, इसलिए शक और गहरा गया। लेकिन पड़ोसी डंके की चोट पर कह रहा था कि उन्होंने किसी प्रकार अपराध के आरोपी को अपने यहां शरण नहीं दी है। हालांकि अब्दुल्ला कई बार यह कह चुका था कि हमारे पास सबूत तो नहीं हैं लेकिन लगता यह है कि इसी अपराध का आरोपी नहीं बल्कि उसके यहां जो बकरियां चोरी हुईं थी उसके आरोपी भी यहीं रह रहे हैं। हालांकि इस बीच अब्दुल्ला रेडियो पर क्रिकेट की कॉमेंट्री सुनाने के लिए पड़ोसी को जरूर बुलाता था। इसका कारण यह भी था उसे पूरे मोहल्ले में दिखाना था कि वह अपने पड़ोसी से अच्छे संबंध रखना चाहता है वह तो पड़ोसी ही है जब नहीं तब बकरियां और मेमने चुरा ले जाता है। अब्दुल्ला के घर की खूबसूरत बगिया के एक पेड़ पर भी पड़ोसी ने कब्जा कर लिया था, लेकिन अब्दुल्ला अपमान का घूंट पीकर रह गया लेकिन कुछ नहीं कहा और न ही किया। अब्दुल्ला अक्सर उस भैंस चोरी के पीडि़त से जरूर कहा था कि वह उसके पड़ोसी पर नकेल कसे। उसके इरादे ठीक नहीं लग रहे। अब भला उसे क्या पड़ी की वह तुम्हारी बकरियां और मेमनों के लिए किस से पंगा ले। सो उसने नहीं किया।
घटना में उस समय बड़ा परिवर्तन आया जब पीडि़त को पता चला कि भैंस चोरी के आरोपी अब्दुल्ला के पड़ोस में ही रह रहा है। फिर क्या था आब देखा न ताब और खबर पक्की करके उसने अपनों नौकरों से कह दिया कि चढ़ाई कर दो अब्दुल्ला के पड़ोसी पर। लेकिन पड़ोसी को न तो खबर हो और न ही कोई नुकसान। बस हो गया काम। भैंस चोरी करने के आरोपी वहीं मिल गए और पकड़ कर कर दिया उनका काम तमाम। जब अब्दुल्ला को यह पता चला कि फलां व्यक्ति ने उसके पड़ोस में छापा मार कर अपनी भैंस चुराने वालों से बदला ले लिया तब से वह नाच रहा है। वह कहता फिर रहा है कि हम कहते थे न कि भैंस चोरी के आरोपी यही रहते हैं। वह पटाखे छुड़ा रहा है, जश्न मना रहा है। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि उस भैंस चोरी के आरोपी ने कभी भी अब्दुल्ला को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया। यह बात अलग है कि उस आरोपी के नक्शे कदम पर चलने वालों ने भले अब्दुल्ला की बकरियां, भेंडें और मेमने खोल लिए थे। अब अब्दुल्ला कह रहा है कि हमारे यहां चोरी करने के आरोपी भी यहीं रहते हैं उन्हें भी पकड़ो, लेकिन किसी को क्या पड़ी। अब्दुल्ला के बच्चे दूसरों से पूछ रहे हैं कि क्या कभी अब्दुल्ला भी इतनी हिम्मत कर पाएगा कि पड़ोसी के घर में घुसकर अपने घर में अपराध करने वालों को पकड़ सके या मार सके। कुछ भी हो अब्दुल्ला के घर में जो भी टीवी चैनल चल रहा है उसमें खुशी का ही इजहार है। ऐसा लग रहा है जैसे अब्दुल्ला के घर इन तीन चार दिनों में कुछ हुआ ही नहीं। अखबार में भी इसी बात का जिक्र है।
अब बताइए भला। इस पूरे घटनाक्रम से अब्दुल्ला को क्या मिला। क्यों खुशी से पगलाया जा रहा है वह। मुझे तो समझ नहीं आ रहा। पता नहीं अब्दुल्ला कब अपने बकरियों और मेमनों को चोरी करने के आरोपी अपने पड़ोसी पर हमला करता है... करता भी है या नहीं..
दरअसल हुआ कुछ यूं है कि मेरे घर से कुछ दूरी पर रहने वाले एक शक्तिशाली युवक की भैंस पिछली गली में रहने वाले एक युवक ने खोल ली थी। इससे पूरा मोहल्ला दंग और हतप्रभ रह गया। किसी ने इस प्रकार की कल्पना तक नहीं की थी कि ऐसी भी कोई घटना हो जाएगी। लेकिन हो गई तो हो गई। खास बात यह रही कि जिसने भैंस खोली थी वह कोई हल्का पुल्का शख्स नहीं था। दूर-दूर तक उसकी ख्याति थी। कई लोगों से उसके अच्छे संबंध थे। बड़ी बात यह कि भैंस खोल लो और किसी को पता भी न चले यह विद्या उसे उसी ने सिखाई थी जिसकी भैंस इस बार खोली गई है। अब चेला ही गुरु को मात दे दे यह कोई भला कैसे बर्दाश्त करेगा। तो साहब इनको भी नहीं हुआ। उसी दिन कसम खाई कि बदला तो लेकर रहूंगा चाहे जितना वक्त लग जाए। भैंस का मालिक बदल गया लेकिन बदला लेने की भावना अभी बाकी रही। भैंस खोलने वाला तो भैंस खोलने के बाद ग्यारह-बारह-तेरह (नौ दो ग्यारह से आगे बढ़कर) हो गया लेकिन बेचार पीडि़त जगह जगह उसकी तलाश करता रहा। कई बेकसूरों को भी उसने अपनी शक्ति का शिकार बना डाला। लेकिन आरोपी नहीं मिला। इस बीच कई लोगों को शक हुआ कि अब्दुल्ला का पड़ोसी कहीं आरोपी को शरण तो नहीं दे रहा है। उसका घर भी पीडि़त से काफी दूर है, इसलिए शक और गहरा गया। लेकिन पड़ोसी डंके की चोट पर कह रहा था कि उन्होंने किसी प्रकार अपराध के आरोपी को अपने यहां शरण नहीं दी है। हालांकि अब्दुल्ला कई बार यह कह चुका था कि हमारे पास सबूत तो नहीं हैं लेकिन लगता यह है कि इसी अपराध का आरोपी नहीं बल्कि उसके यहां जो बकरियां चोरी हुईं थी उसके आरोपी भी यहीं रह रहे हैं। हालांकि इस बीच अब्दुल्ला रेडियो पर क्रिकेट की कॉमेंट्री सुनाने के लिए पड़ोसी को जरूर बुलाता था। इसका कारण यह भी था उसे पूरे मोहल्ले में दिखाना था कि वह अपने पड़ोसी से अच्छे संबंध रखना चाहता है वह तो पड़ोसी ही है जब नहीं तब बकरियां और मेमने चुरा ले जाता है। अब्दुल्ला के घर की खूबसूरत बगिया के एक पेड़ पर भी पड़ोसी ने कब्जा कर लिया था, लेकिन अब्दुल्ला अपमान का घूंट पीकर रह गया लेकिन कुछ नहीं कहा और न ही किया। अब्दुल्ला अक्सर उस भैंस चोरी के पीडि़त से जरूर कहा था कि वह उसके पड़ोसी पर नकेल कसे। उसके इरादे ठीक नहीं लग रहे। अब भला उसे क्या पड़ी की वह तुम्हारी बकरियां और मेमनों के लिए किस से पंगा ले। सो उसने नहीं किया।
घटना में उस समय बड़ा परिवर्तन आया जब पीडि़त को पता चला कि भैंस चोरी के आरोपी अब्दुल्ला के पड़ोस में ही रह रहा है। फिर क्या था आब देखा न ताब और खबर पक्की करके उसने अपनों नौकरों से कह दिया कि चढ़ाई कर दो अब्दुल्ला के पड़ोसी पर। लेकिन पड़ोसी को न तो खबर हो और न ही कोई नुकसान। बस हो गया काम। भैंस चोरी करने के आरोपी वहीं मिल गए और पकड़ कर कर दिया उनका काम तमाम। जब अब्दुल्ला को यह पता चला कि फलां व्यक्ति ने उसके पड़ोस में छापा मार कर अपनी भैंस चुराने वालों से बदला ले लिया तब से वह नाच रहा है। वह कहता फिर रहा है कि हम कहते थे न कि भैंस चोरी के आरोपी यही रहते हैं। वह पटाखे छुड़ा रहा है, जश्न मना रहा है। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि उस भैंस चोरी के आरोपी ने कभी भी अब्दुल्ला को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया। यह बात अलग है कि उस आरोपी के नक्शे कदम पर चलने वालों ने भले अब्दुल्ला की बकरियां, भेंडें और मेमने खोल लिए थे। अब अब्दुल्ला कह रहा है कि हमारे यहां चोरी करने के आरोपी भी यहीं रहते हैं उन्हें भी पकड़ो, लेकिन किसी को क्या पड़ी। अब्दुल्ला के बच्चे दूसरों से पूछ रहे हैं कि क्या कभी अब्दुल्ला भी इतनी हिम्मत कर पाएगा कि पड़ोसी के घर में घुसकर अपने घर में अपराध करने वालों को पकड़ सके या मार सके। कुछ भी हो अब्दुल्ला के घर में जो भी टीवी चैनल चल रहा है उसमें खुशी का ही इजहार है। ऐसा लग रहा है जैसे अब्दुल्ला के घर इन तीन चार दिनों में कुछ हुआ ही नहीं। अखबार में भी इसी बात का जिक्र है।
अब बताइए भला। इस पूरे घटनाक्रम से अब्दुल्ला को क्या मिला। क्यों खुशी से पगलाया जा रहा है वह। मुझे तो समझ नहीं आ रहा। पता नहीं अब्दुल्ला कब अपने बकरियों और मेमनों को चोरी करने के आरोपी अपने पड़ोसी पर हमला करता है... करता भी है या नहीं..
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