मंगलवार, जून 07, 2011

बाबा के बहाने...

भई कमाल हो गया... क्या कहूं? और क्या लिखूं? बात से चली थी और कहां पहुंच गई? जिसने चलाई थी उसे भी नहीं पता। चार-पांच जून की रात में बाबा और सरकार के बीच ऐसा कुछ हुआ कि क्या से क्या हो गया। कभी बाबा और बाबा के लोग बोलते हैं तो कभी सरकार और सरकारी लोग। इसके अलावा लगता है देश के लोगों ने बोलने का अधिकार खो दिया है। वह बोल नहीं सकता वह बस सुन सकता है। वह भी चुपचाप।
वैसे देखा जाए तो अच्छा ही हुआ। देश के पास बहुत दिनों से कुछ था भी नहीं। कुछ होना भी तो चाहिए न... कुछ न होना बहुत दु:ख देता है। और कुछ हो जाना खुशी दे जाता है। सरकार की लाठियां भले बाबा और बाबा के भक्तों पर पड़ीं हों लेकिन इससे बहुत सारे लोग खुश हो गए। नेताओं को बोलने का मौका मिल गया। लोगों को बेवकूफ बनाने का एक और अवसर उन्हें बस बैठे बिठाए ही मिल गया। चुंकि मैं राजनीति पर नहीं लिखता और यह राजनीतिक ब्लॉग भी नहीं है इसलिए इस विषय को विस्तार नहीं दूंगा यही पर फुलस्टाप।
साल महीने में कुछ ही ऐसे मौके आते हैं जब सबकी जुबां और कलम पर एक ही विषय हो... ये उन्हीं में से एक है। अखबारों में सर्वज्ञ पत्रकार लेख लिखकर अपनी ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं। इसी बहाने लोगों को पता चलेगा कि वह अपनी सक्रिया हैं, शांत नहीं हुए। संपादकीय लिखे जा रहे हैं। वैसे तो संपादकीय निष्पक्ष होना चाहिए लेकिन बाबा के मामले में ऐसा नहीं है। दो तरह के संपादकीय लिखे जा रहे हैं। यह बताने की जरूरत नहीं कि वे दो प्रकार कौन से हैं। इधर देख रहा हूं कि ब्लॉगों पर भी हर व्यक्ति अपनी अपनी तरह से अपना दृष्टिकोण रख रहा है। बहुत से मृतप्राय: पड़े ब्लॉगर भी जाग उठे हैं, आखिर इससे बेहतर मौका और कौन सा मिलेगा की-बोर्ड को तकलीफ देने के लिए। इसी बहाने उसकी धूल भी कुछ साफ हो जाएगी और ब्लॉग एक बार फिर जिंदा हो जाएगा। पूरा देश दो धड़ों में बंटा हुआ है, एक बाबा के साथ है तो दूसरा उनके विरोध में है। बहुत से लोग बाबा का पुलता जला रहे हैं उनमें मैंने ऐसे लोग भी देख जो अक्सर बाबा के दवाखाने पर दिख जाते थे। अब वही बाबा का पुतला जला रहे हैं।
खैर.. भला हो बाबा का जो उन्होंने एक मुद्दा तो दे ही दिया, अब करो बहस। चाय की दुकान हो या अखबार का स्टॉल। हर जगह बस एक ही बात। अखबारों का प्रसार भी बढ़ गया है, टीवी पर दिनभर एक ही खबर देखने के बाद भी लोगों का मन वही बात अखबार में फिर से पढऩे का होता है। मुझसे क्या??? बाबा के बहाने मुझे भी एक मौका मिल गया सो ब्लॉग अपडेट हो गया। शुकिया बाबा।

बुधवार, मई 25, 2011

मैं भी जेल चला जाऊं

इन दिनों दिमाग बड़ा विचार मंथन कर रहा है। कभी कुछ सोचता है तो कभी कुछ। आखिर उसका काम ही यही है, सो करेगा ही। वैसे इन दिनों पूरा देश और दुनिया किसी न किसी बात को लेकर विचार मग्न है। हो भी क्यों न आखिर हो भी तो ऐसा ही कुछ रहा है।
आईपीएल अपने अंतिम दौर में है और अब कुछ गिनी चुनी टीमें ही रह गई हैं। इन्हीं में से कोई टीम विजेता बनेगी। टीवी के खेल पत्रकार और उसमें आने वाले तथाकथित विशेषज्ञ अपने-अपने हिसाब से बता रहे हैं कि कौन जीतेगा और क्यों। एक बहुत बड़े ज्योतिषी ने दुनिया के खत्म होने की भविष्यवाणी कर दी। तारीख निकल गई लेकिन दुनिया जस की तस है और दुनियादारी चल रही है। दुनिया खत्म हो जाती तो कोई पूछने वाला ही नहीं रहता लेकिन वाह री दुनिया खत्म ही नहीं हुई। अब तो लोग पूछेंगे ही। सवाल करेंगे ही। कुछ तो लोग कहेंंगे...., सो कहे जा रहे हैं। ज्योतिषी साहब भी कहां पीछे रहने वाले हैं, एक और तारीख बता दी। करो तब तक इंतजार। देखते हैं क्या होता है। ज्योतिषी और वैज्ञानिक इसी चक्कर में अपने दिमाग पर जोर दे दे कर थके जा रहे हैं। ओसामा बिन लादेन मर गया, लेकिन अपने पीछे छोड़ गया सवालों का अंबार। लोग तरह-तरह के सवाल कर रहे हैं और विशेषज्ञ उसके जवाब भी दे रहे हैं। इसी बीच मुल्ला उमर के मारे जाने की खबर आई। कोई कह रहा है वह मारा गया, कोई कह रहा है वह जिंदा है। इस पर भी लोग मगजमारी कर रहे हैं। पता कर लो तो जानें।
भारत में इन दिनों एक और मामले पर दिमाग पर जोर डाला जा रहा है। भ्रष्टाचार के आरोपी जेल जा रहे हैं। कई बड़े लोग जेल में है और कई बाहर। टीवी पर विशेष कार्यक्रम आ रहे हैं और अखबारों में खास रपटें और टिप्पणी लिखीं जा रही हैं कि अंदर वाला कब तक अंदर रहेगा और बाहर वाला कब अंदर जाएगा। बाहर वाले लोग यह सोच-सोचकर दिन काट रहे हैं पता नहीं कब भीतर जाना पड़े।
मेरे विचार मंथन का कारण इसमें से कोई नहीं है। मेरा कारण यह है कि क्यों न मैं भी जेल चला जाऊं। दरअसल इन दिनों दिल्ली की तिहाड़ जेल में इतने बड़े-बड़े लोग हैं कि दिल है कि मानता ही नहीं....। जब से कनिमोझी उर्फ कनिमोई उर्फ कनिमोणी जेल गई हैं तब से मैं विचलित सा हुआ जा रहा हूं। मुझ जैसा साधारण आदमी खुली हवा में तो ऐसे बड़े लोगों से मिल पाने में समर्थ है नहीं। वहीं एक मौका बन सकता है। क्यों न उसे लपका जाए। हूं तो पेशे से पत्रकार ऐसे में कहा जा सकता है कि पत्रकारों के लिए ऐसे लोगों से मिलने मेें भला क्या समस्या। लेकिन समस्या है, साहब...। जब नीरा राडिया जैसी हस्तियां माध्यम (मीडियम) का रोल निभाने लगती हैं तो मेरी संभावना और भी नगण्य हो जाती है।
भला आप ही बताइए, क्या सेक्स रैकेट चलाने वाली देश की नामी कॉल गर्ल ने कभी सोचा होगा कि करुणानिधि की पुत्री उनके साथ रात गुजारेंगी। यही नहीं ऐसा भी मौका आएगा जब वह खुद अपने हाथों से कनिमोई के आंसू पोछेगी। मुझे तो नहीं लगता। राजा हों या कलमाड़ी। लोग उन्हें पूरे मन से गालियां दे रहे हैं। लेकिन मैं नहीं देता। मैं तो उनकी मुस्कुराहट पर फिदा हूं। जब भी टीवी पर उनकी तस्वीर दिखाई जाती है दिल खुश हो जाता है। वही मुस्कुराता हुआ, दिल खिलाता हुआ मेरा यार...। लगता है जिंदगी कैसे जी जाती है कोई इनसे सीखे। कोई कहे कहता रहे कितना भी इन्हें भ्रष्टाचारी, इन लोगों की ठोकर में है ये जमाना....। मैं चाहता हूं कि कोर्ट कुछ और दिन इनकी जमानत की अर्जी स्वीकार न करे साथ ही कुछ और लोगों को भी तिहाड़ पहुंचाने की जुगाड़ करे। तब तक मैं कोई न कोई ऐसा काम कर ही दूंगा कि उनके पास तक पहुंच जाऊं। और फिर कौन सा जीवनभर जेल में ही रहना है। कुछ दिन की ही तो बात है। बाहर आकर फिर सब ठीक ही हो जाएगा। फिर पत्रकारिता भी धड़ल्ले से चलेगी और राजनीति भी। अब यह सोच रहा हूं कि कौन सा ऐसा काम करूं जो तिहाड़ में जगह मिल जाए।


पुनश्य

हां... अगर तिहाड़ में जगह न मिले तो मुंबई की येरवडा जेल में भेज दिया जाए। सुना है वहां अतिथि देवो भव का भाव बहुत है। हो सकता है कुछ दिन वहां रहकर कुछ सेहत ही ठीक हो जाए। और एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की शख्सियत से मिलने का मौका भी तो मिलेगा। फिर मैं भी अंतरराष्ट्रीय हो जाऊंगा।

सोमवार, मई 09, 2011

इंडियन पल्टन लीग और अपने चंडीदास

मेरे मोहल्ले में इन दिनों सब पर क्रिकेट का जुनून सवार है। विश्व कप जीतने के बाद तो ऐसा लग रहा है मानो हर कोई अपने बच्चे को क्रिकेटर ही बना कर छोड़ेगा। बहुत संभव है कि आने वाले कुछ साल बाद देश में डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस अधिकारी और सेना के जवान कम पड़ जाएं। जब सभी बच्चे क्रिकेटर बन जाएंगे तो अन्य काम कौन करेगा। बड़ा सवाल है। वैसे अन्य पेशों की तरह पत्रकारों की जमात भी कम हो जाएगी। इससे मुझे प्रत्यक्ष रूप से फायदा होगा। जब नए लोग नहीं आएंगे तो मीडिया संस्थानों को पुराने पत्रकारों से ही काम चलाना पड़ेगा। मेरी अपनी नौकरी पर खतरा नहीं रहेगा यह एक अच्छी खबर है।
खैर इन सब बातों से दूर चलते हैं अपने मोहल्ले के क्रिकेट पर। तो मैं कह रहा था कि मेरे मोहल्ले में इन दिनों सब कोई क्रिकेट के रंग से सराबोर हुुआ जा रहा है। मोहल्ले में पिछले चार साल से क्रिकेट की एक प्रतियोगिता होती है। तीन साल तक इसमें आठ टीम हुआ करती थीं। इस साल दस टीम इसमें हिस्सा ले रही हैं। नाम रखा गया है, आईपीएल। नहीं... नहीं... आप गलत समझे..इसका मतलब है, इंडियन पल्टन लीग। इस प्रतियोगिता की खास बात यह है कि इसमें मोहल्ला या अन्य किसी प्रकार का गतिरोध नहीं होता। किसी भी मोहल्ले का व्यक्ति किसी भी मोहल्ले की टीम से खेल सकता है। उसे पैसा मिलेगा और शोहरत भी। इसलिए इसे नाम दिया गया इंडियन पल्टन लीग। इस बार टूर्नामेंट की खास बात यह है कि पिछले तीन साल से एक टीम के कप्तान रहे चंडीदास को इस बार किसी ने अपनी टीम में भर्ती नहीं किया। टूर्नामेंट जब आधे से अधिक हो गया तो चंडीदास के एक पुराने मित्र ने किसी तरह उन्हें टीम में शामिल कराया। चंडीदास की पत्नी मोना का कहना है कि पहले चंडी के साथ खेलते रहे रमेश जब अभी तक खेल सकते हैं और एक टीम की कप्तानी कर सकते हैं तो चंडी क्यों नहीं खेल सकते। बड़ी बात यह है कि चंडी के मित्र ने चंडीदास को टीम में शामिल तो करा लिया लेकिन मैदान पर नहीं उतार सके। चंडीदास के टीम में शामिल होने के बाद पिछले दिनों जब उनकी टीम मैदान में उतरी को चंडीदास टीम की जर्सी पहनकर बजाय रन या विकेट लेने के तालियां बजा रहे थे। लोग यह समझ पाने में अपने आप को असमर्थ पा रहे थे कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो चंडीदास मैदान पर नहीं उतरे। टूर्नामेंट अब उस दौर में पहुंच जबकि चंडीदास की टीम कभी भी टूर्नांमेंट से बाहर हो सकती है। चंडीदास पहले भी जिस टीम के कप्तान थे वह भी लगातार हार रही थी। इस बार वही टीम अच्छा प्रदर्शन कर रही है। अब चंडीदास खेलकर क्या दिखाना चाह रहे हैं। यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है।
वैसे एक बात तो हैं चंडीदास के फैन बहुत हैं। मैं भी उनमें से एक हूं, लेकिन अब सवाल यही है कि अगर चंडीदास न ही खेलते तो ही ठीक था। खेलकर कहीं अपने पुराने प्रशांसकों को चंडीदास खो न दें।

पुनश्य

किसी व्यक्ति का आत्मविश्वास और चुनौती स्वीकार करने की आदत कब उसकी हठ और घमंडी स्वभाव को दर्शने लगता है। यह अच्छी तरह अब मेरी समझ में आ रहा है।

बुधवार, मई 04, 2011

बेगाने की शादी और अब्दुल्ला की दीवानगी

पता नहीं अब्दुल्ला कौन था और वह बेगाना कौन था जिसकी शादी होने पर वह दीवाना सा घूम रहा था। यह किस युग की बात है यह भी मैं नहीं जानता। लेकिन पिछले तीन चार दिन से अब्दुल्ला टाइप कुछ शख्स मेरे मोहल्ले में दिख रहे हैं।
दरअसल हुआ कुछ यूं है कि मेरे घर से कुछ दूरी पर रहने वाले एक शक्तिशाली युवक की भैंस पिछली गली में रहने वाले एक युवक ने खोल ली थी। इससे पूरा मोहल्ला दंग और हतप्रभ रह गया। किसी ने इस प्रकार की कल्पना तक नहीं की थी कि ऐसी भी कोई घटना हो जाएगी। लेकिन हो गई तो हो गई। खास बात यह रही कि जिसने भैंस खोली थी वह कोई हल्का पुल्का शख्स नहीं था। दूर-दूर तक उसकी ख्याति थी। कई लोगों से उसके अच्छे संबंध थे। बड़ी बात यह कि भैंस खोल लो और किसी को पता भी न चले यह विद्या उसे उसी ने सिखाई थी जिसकी भैंस इस बार खोली गई है। अब चेला ही गुरु को मात दे दे यह कोई भला कैसे बर्दाश्त करेगा। तो साहब इनको भी नहीं हुआ। उसी दिन कसम खाई कि बदला तो लेकर रहूंगा चाहे जितना वक्त लग जाए। भैंस का मालिक बदल गया लेकिन बदला लेने की भावना अभी बाकी रही। भैंस खोलने वाला तो भैंस खोलने के बाद ग्यारह-बारह-तेरह (नौ दो ग्यारह से आगे बढ़कर) हो गया लेकिन बेचार पीडि़त जगह जगह उसकी तलाश करता रहा। कई बेकसूरों को भी उसने अपनी शक्ति का शिकार बना डाला। लेकिन आरोपी नहीं मिला। इस बीच कई लोगों को शक हुआ कि अब्दुल्ला का पड़ोसी कहीं आरोपी को शरण तो नहीं दे रहा है। उसका घर भी पीडि़त से काफी दूर है, इसलिए शक और गहरा गया। लेकिन पड़ोसी डंके की चोट पर कह रहा था कि उन्होंने किसी प्रकार अपराध के आरोपी को अपने यहां शरण नहीं दी है। हालांकि अब्दुल्ला कई बार यह कह चुका था कि हमारे पास सबूत तो नहीं हैं लेकिन लगता यह है कि इसी अपराध का आरोपी नहीं बल्कि उसके यहां जो बकरियां चोरी हुईं थी उसके आरोपी भी यहीं रह रहे हैं। हालांकि इस बीच अब्दुल्ला रेडियो पर क्रिकेट की कॉमेंट्री सुनाने के लिए पड़ोसी को जरूर बुलाता था। इसका कारण यह भी था उसे पूरे मोहल्ले में दिखाना था कि वह अपने पड़ोसी से अच्छे संबंध रखना चाहता है वह तो पड़ोसी ही है जब नहीं तब बकरियां और मेमने चुरा ले जाता है। अब्दुल्ला के घर की खूबसूरत बगिया के एक पेड़ पर भी पड़ोसी ने कब्जा कर लिया था, लेकिन अब्दुल्ला अपमान का घूंट पीकर रह गया लेकिन कुछ नहीं कहा और न ही किया। अब्दुल्ला अक्सर उस भैंस चोरी के पीडि़त से जरूर कहा था कि वह उसके पड़ोसी पर नकेल कसे। उसके इरादे ठीक नहीं लग रहे। अब भला उसे क्या पड़ी की वह तुम्हारी बकरियां और मेमनों के लिए किस से पंगा ले। सो उसने नहीं किया।
घटना में उस समय बड़ा परिवर्तन आया जब पीडि़त को पता चला कि भैंस चोरी के आरोपी अब्दुल्ला के पड़ोस में ही रह रहा है। फिर क्या था आब देखा न ताब और खबर पक्की करके उसने अपनों नौकरों से कह दिया कि चढ़ाई कर दो अब्दुल्ला के पड़ोसी पर। लेकिन पड़ोसी को न तो खबर हो और न ही कोई नुकसान। बस हो गया काम। भैंस चोरी करने के आरोपी वहीं मिल गए और पकड़ कर कर दिया उनका काम तमाम। जब अब्दुल्ला को यह पता चला कि फलां व्यक्ति ने उसके पड़ोस में छापा मार कर अपनी भैंस चुराने वालों से बदला ले लिया तब से वह नाच रहा है। वह कहता फिर रहा है कि हम कहते थे न कि भैंस चोरी के आरोपी यही रहते हैं। वह पटाखे छुड़ा रहा है, जश्न मना रहा है। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि उस भैंस चोरी के आरोपी ने कभी भी अब्दुल्ला को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया। यह बात अलग है कि उस आरोपी के नक्शे कदम पर चलने वालों ने भले अब्दुल्ला की बकरियां, भेंडें और मेमने खोल लिए थे। अब अब्दुल्ला कह रहा है कि हमारे यहां चोरी करने के आरोपी भी यहीं रहते हैं उन्हें भी पकड़ो, लेकिन किसी को क्या पड़ी। अब्दुल्ला के बच्चे दूसरों से पूछ रहे हैं कि क्या कभी अब्दुल्ला भी इतनी हिम्मत कर पाएगा कि पड़ोसी के घर में घुसकर अपने घर में अपराध करने वालों को पकड़ सके या मार सके। कुछ भी हो अब्दुल्ला के घर में जो भी टीवी चैनल चल रहा है उसमें खुशी का ही इजहार है। ऐसा लग रहा है जैसे अब्दुल्ला के घर इन तीन चार दिनों में कुछ हुआ ही नहीं। अखबार में भी इसी बात का जिक्र है।
अब बताइए भला। इस पूरे घटनाक्रम से अब्दुल्ला को क्या मिला। क्यों खुशी से पगलाया जा रहा है वह। मुझे तो समझ नहीं आ रहा। पता नहीं अब्दुल्ला कब अपने बकरियों और मेमनों को चोरी करने के आरोपी अपने पड़ोसी पर हमला करता है... करता भी है या नहीं..

मंगलवार, फ़रवरी 22, 2011

खेल के लिए शुभसंकेत



आखिरकार इंग्लैंड ने नीदरलैंड को हरा दिया। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जीत जीत है। कहने को कहा जा सकता है कि जीत आखिर जीत होती है चाहे जैसे प्राप्त की जाए। यह सही भी है। अंत में येन केन प्रकारेण हासिल की गई जीत ही मायने रखती है।
अब जरा इस जीत और हार का विश्लेषण कर लिया जाए। नीदरलैंड हार भले ही गया हो पर यह सच है कि उसने सबका मन मोह लिया और 100 ओवर के मैच में कई बार ऐसा लगा कि वह मैच जीत भी सकता है। दीगर है कि क्रिकेट का कम अनुभव और अक्सर इस तरह की स्थिति न आने के कारण ही नीदरलैंड को इस हार का सामना करना पड़ा। लेकिन इस बीच यह तय हो गया है कि नीदरलैंड आने वाले मैचों में अन्य टीमों को कड़ा मुकाबला देगी और इतनी आसानी से किसी को जीतने नहीं देगी जितना आसान शिकार उसे अब तक समझा जा रहा था।
एक दिन पहले ही हुए एक और मैच ने क्रिकेट के लिए आशाएं जगाने का काम किया है। यह मैच जिम्बाब्बे और आस्ट्रेलिया के बीच खेला गया। इसमें जिम्बाब्बे ने आस्ट्रेलिया की नाक में दम कर दिया था। लग ही नहीं रहा था एक दोयम दर्जे की टीम विश्वविजेता के खिलाफ खेल रही है। न सिर्फ विश्वविजेता बल्कि तीन बार की विश्वविजेता। जिस अंदाज में आस्टे्रलियाई कप्तान रिकी पोटिंग को चाल्र्स कोवेंट्री ने सीमा रेखा से गेंद फेंक कर रनआउट किया वह लम्बे समय तक याद रखा जाएगा। सबसे बड़ी बात जो इस बार अभी तक के मुकाबलों में छोटी टीमों की ओर से देखने को मिल रही है वह यह है कि वे जीतने के लिए खेल रही हैं। चाहे बांग्लादेश को या जिम्बाब्बे और नीदरलैंड का तो कहना ही क्या। यह बात अलग है कि कनाडा न्यूजीलैंड का आसान शिकार रहा। लेकिन यह तय है कि अगर कनाडा कि खिलाड़ी सजग और सचेत रहे तो वे भले कोई मैच न जीतें पर इस टूर्नांमेंट से बहुत कुछ लेकर जाने वाले हैं। कई क्रिकेट विश्लेषक टीवी पर कहते और अखबार में लिखते मिल जा रहे हैं, जो कह रहे हैं कि छोटी और दोयम दर्जे की टीमों को विश्वकप में नहीं खिलाना चाहिए। लेकिन मैं इससे इत्तेफाक नहीं रखता। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पहले की क्रिकेट बहुत कम देशों के बीच खेला जाता है और उसमें भी अगर कुछ कमजोर टीमों को आप खेलने से बंचित कर देंगे तो कैसा विश्वकप। कुछ गिनी चुनी टीमें ही रह जाएंगी। फिर क्रिकेट अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल कैसे बन पाएगा। मुझे लगता है यह विचारणीय पहलू है। यही नहीं जब तक छोटी टीमें बड़ी टीमों से बड़े मुकाबले नहीं खेलेेंगी तब तक जीत के बारे में कैसे सोचेंगी। क्रिकेट जहां भी खेल और देखा जाता है वहां दीवानगी हद से ज्यादा लोग इसे प्यार करते हैं, लेकिन यह आलम बहुत कम देशों तक ही हैं। क्योंकि इसका उतना विस्तार नहीं हो सका जितना अन्य का हुआ है। इसलिए मुझे लगता है कि छोटी टीमों को भी बड़े मुकाबले खेलने चाहिए और अपनी प्रतिभा मुजायरा करना चाहिए।
अब तक हुए मैचों में जो तस्वीर निकलकर सामने आ रही है वह संतोषजनक है और उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे भी कुछ ऐसे मुकाबले देखने को मिलेंगे जिसमें छोटी टीमें बड़ी टीमों की नाक में दम कर देंगी। और सबसे ज्यादा मजा तो उस वक्त आएगा जब कोई बड़ा उलटफेर होगा। न जाने किस दिन किसी छोटी टीम का हो और वह ऐसा कर जाए कि किसी ने सोचा ही न हो। उसके बाद विश्वकप की दिशा और दशा दोनों में तत्काल बदलाव आ जाएगा। फिर आएगा खेल देखने का मजा...

शनिवार, फ़रवरी 19, 2011

आगाज, चौका, छक्का और जीत



विश्वकप का पहला मैच भारत ने जीत लिया। इस जीत में कई नई और अनोखी चीजें देखने को मिलीं। भारत की पारी जब ३७० रन पर खत्म हुई तो भारत की जीत पक्की हो गई थी, लेकिन जब बांग्लादेश के शेर मैदान पर उतरे तो लगा कि कहीं पांसा पलट न जाए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और मैच भारत ही जीता।
इस मैच की खास बात यह रही कि भारत के वीरेंद्र सहवाग ने पहली गेंद का सामना किया और उस पर चौका जड़कर अपने विजयी अभियान की शुरुआत की। यही नहीं वीरेंद्र सहवाग ने ही इस विश्वकप का छक्का लगाया। सहवाग की वह बल्लेबाज रहे जिन्होंने इस विश्वकप का पहला शतक लगाया। हालांकि इसके बाद विराट कोहली ने भी शतक लगाया। इस मायने में आगे रहे कि उन्होंने विश्वकप के अपने पहले ही मैच में शतक लगा दिया। जो अपने आप में अनोखी बात है।
इस मैच में एक खास मंजर उस समय देखने को मिला जब सहवाग आंशिक रूप से घायल हो गए और गंभीर उनके रनर के रूप में मैदान पर आए। उस समय बांग्लादेश के मीरपुर के मैदान पर दिल्ली के तीन खिलाड़ी दिखाई दिए। इस दौरान तीनों हिन्दी वाली हिन्दी में बात करते भी सुने गए। ऐसा मौका कम ही आता है जब एक ही शहर के तीन खिलाड़ी मैदान पर दिखें।
सहवाग ने विश्वकप शुरू होने से पहले ही यह बता दिया था कि वे पूरे ५० ओवर मैदान पर टिकना चाहते हैं और इस बार उन्होंने इसके लिए प्रयास भी खूब किए। यह बात दीगर रही कि वे ४८वें ओवर में ही आउट हो गए। लेकिन इससे यह बात साफ हो गई है कि सहवाग अपने कहे पर अमल कर रहे हैं और यह विश्वकप उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है। उनकी चाहत है कि इस विश्वकप में वे अपने गुरु सचिन को तोहफा दें। जब सचिन रन आउट हुए तभी से लगा कि उन्होंने सचिन की जिम्मेदार अपने ऊपर ओढ़ ली है। पता ही नहीं चला कि सचिन आउट हो गए हैं। कई विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि अगर सहवाग पूरे पचास ओवर मैदान पर टिकेंगे तो अपना स्वाभाविक खेल नहीं खेल पाएंगे सहवाग ने इस पारी से दिखा दिया कि ऐसा नहीं है। जब तक वे क्रीज पर रहेंगे रन आते रहेंगे और तेजी से आते रहेंगे। अब मुझे लगाता है ऐसे लोगों शान्त हो जाना चाहिए।
अब बात जीत और हार की। एक बात गौर करें तो पाएंगे कि बांग्लादेश भले हार गया हो लेकिन उन्होंने यह दर्शा दिया है कि आगे जिन टीमों से उनका मुकाबला होगा वे सचेत हो जाएं। अगर कोई बांग्लादेश को हल्के में ले रहा है तो वह किसी मुगालते में न रहे। हालांकि इस बीच एक और बात सामने आई कि भारत को यहां गेंदबाजी में सुधार की जरूरत है।

शुक्रवार, फ़रवरी 18, 2011

लो! शुरू हो गया खेल





चार साल के इंतजार के बाद आखिर फिर से विश्वकप शुरू होने वाला है। उद्घाटन कार्यक्रम हो चुका है। अब बारी असली खेल की है, यानी अब होगा बल्ले और गेंद का आमना-सामना। उद्घाटन कार्यक्रम इतना रंगारंग रहा कि मेरी भी दो महीने से अधिक की नींद टूटी और ब्लॉग लेखन फिर से शुरू हो गया। इतने दिनों की चुप्पी तोडऩे का शायद इससे अच्छा मौका हो भी नहीं सकता था।
सबसे पहले तो उन लोगों से माफी मांगना चाहता हूं, जो उस दौरान भी ब्लॉग पर आते रहे जिस समय मैंने कुछ नहीं लिखा। कभी-कभी तो ऐसा भी हुआ कि मैं खुद अपने ब्लॉग पर नहीं आ सका लेकिन लोग आए। हालांकि ऐसे लोग बहुत कम हैं जो मेेरे ब्लॉग पर नियमित या फिर अक्सर आते हैं फिर भी उन सीमित लोगो से ही मैं माफी चाहता हूं और अब यह आशान्वित कराना चाहता हूं कि अब विश्वकप क्रिकेट ही हर खबर इस ब्लॉग के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करूंगा।
अब बात क्रिकेट की। विश्वकप क्रिकेट की। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में शानदार कार्यक्रम हुआ। भारतीय उपमहाद्वीप में इससे पहले भी विश्वकप हुए लेकिन बांग्लादेश हर बार इससे महरूम रहा। इस बार उसे विश्वकप की मेजबानी का मौका मिला। इससे बड़ी बात और कोई नहीं हो सकती। भले बांग्लादेश में क्रिकेट का सबसे बड़ा महाकुंभ अब शुरू होने जा रहा हो लेकिन बांग्लादेश की टीम ने क्रिकेट में अपनी अलग पहचान बनाई है। बांग्लादेश की वह टीम थी, जिससे हार के कारण पिछले साल भारतीय टीम को पहले ही राउंड में टूर्नांमेंट से बाहर होना पड़ा। यही नहीं समय समय पर बांग्लादेश ने कई ऐसे मैच जीते जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। शायद इस बार भी बांग्लादेश कोई ऐसे मैच जीते, जिसके बारे में अभी सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं।
पहला मैच भारत और बांग्लादेश के बीच खेला जाएगा। भारत की कोशिश होगी की वह अपना विजयी अभियान यही से शुरू करे वहीं बांग्लादेश पिछली बार की सफलताओं को फिर से दोहराना चाहेगा। अभ्यास मैचों में टीमों ने अपना जलवा दिखाया। भारत ने अपने दोनों मैच जीते और दिखाया कि वह विजेता बनने की प्रबल दावेदार है। हालांकि आस्ट्रलिया अपने दोनों मैच हार गया लेकिन उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। आस्ट्रेलिया शुरू अपने माइंड गेम के लिए हमेशा से जाना जाता रहा है, हो न हो यह उसी का एक हिस्सा हो। और सबसे बड़ी बात हमें यह नहीं भूलन चाहिए कि आस्टे्रलिया अभी विश्वविजेता है और विश्व की नम्बर एक टीम भी।
भारत को जीत का प्रबल दावेदार माना जा रहा है, इसमें कोई बड़ी बात नहीं। 1983 में जब भारत ने विश्वकप जीता था तब से लेकर अब तक वह प्रबल दावेदार रहा है और इस बार भी है। यह बात अलग है कि वह इस कारनामें को फिर कभी दोहरा नहीं पाया। लेकिन क्या पता इस बार वह हो जाए जो 1983 के बाद नहीं हो सका। पाकिस्तान की बात करें तो उसे भी कप का दावेदार माना जा रहा है, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट हो रहा है लेकिन पाकिस्तान इससे इस बार महरूम हैं इसका असर उस पर दिख रहा है। पाकिस्तान के पक्ष में जो एक बात जा रही है वह यह है कि शाहिद आफरीदी इस टीम के कप्तान हैं। शुएब अख्तर वापसी कर चुके हैं। आफरीदी एक आक्रामक खिलाड़ी तो हैं ही इस बार उन्हें साबित करना होगा कि वह आक्रामक कप्तान भी हैैं। अगर शुरू के दो और इधर तीन विश्वकपों की बात छोड़ दी जाए तो कप उसी टीम ने जीता है जिसके बारे में बहुत कम चर्चा की जा रही थी। तो हो न हो इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिले। इंग्लैंड क्रिकेट का जनक है लेकिन क्रिकेट की सबसे बड़ी प्रतियोगिता का वह कभी विजेता नहीं बन पाया। इस बात का मलााल हर इंग्लैंडवासी को हमेशा रहा है। इस बार इंग्लिश टीम की कोशिश होगी कि वह खिताब पर पहली बार कब्जा कर ले।
खैर यह तो सब कयासों की बात है। खेल शुरू होने में अब ज्यादा समय नहीं बचा है और धीरे-धीरे सारी स्थिति साफ होती जाएगी। मैं एक बार फिर आपको बता दूं कि क्रिकेट विश्वकप की अधिकांश खबरें आपके पास तक पहुंचाने की कोशिश इस ब्लॉग के माध्यम से मैं करूंगा और प्रयास करूंगा कि वह खबरें आप तक पहुंचे जो किसी टीवी चैनल, अखबार या वेबसाइट पर नहीं होती। अगर आप मेरा मार्गदर्शन करेंगे तो अच्छा रहेगा। आप क्या चाहते हैं बताएंगे तो मजा आएगा।
फिलवक्त के लिए इतना ही बाकी अगली पोस्ट में। लो! शुरू हो गया खेल

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