बुधवार, नवंबर 13, 2013

अभावशाली मैं


अपना मुन्नू सबसे प्रभावशाली है। भले सरदारों में सही। असरदार न सही, प्रभावशाली ही सही। लेकिन मैं क्या हूं. .... .... । मुझे भी तो कुछ न कुछ होना चाहिए। वैसे मैं हूं तो बहुत कुछ। मैं ब्राह्मण हूं, पत्रकारिता करता हूं। कामचलाऊ साहित्य भी रच देता हूं। दर्शनशास्त्र में मास्टर डिग्री है तो चिंतक भी कहा जा सकता है। वैसे बालों के गिर जाने के कारण यह तथ्य और भी पुष्ट होता है कि मैं चिंतक हूं। और भी बहुत कुछ हूं। अगर सबका जिक्र करूंगा तो सूची लम्बी हो जाएगी। लेकिन यहां तो प्रभाव का ही सर्वथा अभाव है। जिन लोगों में प्रभाव का अभाव नहीं उनका भी जवाब नहीं। अपने हिसाब से नए-नए तरीके से सूची बनवाते हैं और उसमें अपना नाम डलवा लेते हैं। मजे की बात यह है कि इस सूची में मुन्नू के साथ साथ उनकी पत्नी का नाम भी है। अब सवाल घूम फिरकर वही आता है। पहले तो अपन के पास पत्नी है ही नहीं और अगर हो भी तो क्या फायदा ऐसी पत्नी का जो प्रभावशाली न हो। अपन न सही पत्नी ही प्रभावशाली हो तो काम बन सकता है। लेकिन यहां तो न तो नौ मन तेल है और न ही राधा के नाचने की कोई उम्मीद। दरअसल मेरा प्रभावशाली न होना और जीवन में किसी प्रभावशालिनी का न होना, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मैं प्रभावशाली नहीं हूं, इसलिए कोई संगिनी नहीं है। और दीगर यह भी है कि संगिनी नहीं है, इसलिए प्रभावशाली नहीं हूं। इतना जरूर है कि सरदारों की सूची में भले अपना मुन्नू नम्बर वन हो, लेकिन असरदारों की सूची में मेरा नम्बर ही वन होगा। जब मैं यहां मेरा कहता हूं तो मेरा मतलब सिर्फ स्वयं से नहीं है। मेरा मतलब देश के हर आमआदमी से है, जो प्रभावशालियों की किसी सूची में नहीं है, लेकिन शक्तिशाली बहुत। वह स्वयं के लिए कोई सूची नहीं बनवा सकता, वह अभाव में जीता है। दरअसल हम यानी आम आदमी यह समझ नहीं पा रहा है कि वह कितना प्रभावशाली है। जिस दिन उसके ज्ञान चक्षु खुल जाएंगे वह डेढ़ हजार मुन्नुओं और उनकी पत्नियों से बहुत ज्यादा प्रभावशाली हो जाएगा।

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