मंगलवार, फ़रवरी 22, 2011

खेल के लिए शुभसंकेत



आखिरकार इंग्लैंड ने नीदरलैंड को हरा दिया। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जीत जीत है। कहने को कहा जा सकता है कि जीत आखिर जीत होती है चाहे जैसे प्राप्त की जाए। यह सही भी है। अंत में येन केन प्रकारेण हासिल की गई जीत ही मायने रखती है।
अब जरा इस जीत और हार का विश्लेषण कर लिया जाए। नीदरलैंड हार भले ही गया हो पर यह सच है कि उसने सबका मन मोह लिया और 100 ओवर के मैच में कई बार ऐसा लगा कि वह मैच जीत भी सकता है। दीगर है कि क्रिकेट का कम अनुभव और अक्सर इस तरह की स्थिति न आने के कारण ही नीदरलैंड को इस हार का सामना करना पड़ा। लेकिन इस बीच यह तय हो गया है कि नीदरलैंड आने वाले मैचों में अन्य टीमों को कड़ा मुकाबला देगी और इतनी आसानी से किसी को जीतने नहीं देगी जितना आसान शिकार उसे अब तक समझा जा रहा था।
एक दिन पहले ही हुए एक और मैच ने क्रिकेट के लिए आशाएं जगाने का काम किया है। यह मैच जिम्बाब्बे और आस्ट्रेलिया के बीच खेला गया। इसमें जिम्बाब्बे ने आस्ट्रेलिया की नाक में दम कर दिया था। लग ही नहीं रहा था एक दोयम दर्जे की टीम विश्वविजेता के खिलाफ खेल रही है। न सिर्फ विश्वविजेता बल्कि तीन बार की विश्वविजेता। जिस अंदाज में आस्टे्रलियाई कप्तान रिकी पोटिंग को चाल्र्स कोवेंट्री ने सीमा रेखा से गेंद फेंक कर रनआउट किया वह लम्बे समय तक याद रखा जाएगा। सबसे बड़ी बात जो इस बार अभी तक के मुकाबलों में छोटी टीमों की ओर से देखने को मिल रही है वह यह है कि वे जीतने के लिए खेल रही हैं। चाहे बांग्लादेश को या जिम्बाब्बे और नीदरलैंड का तो कहना ही क्या। यह बात अलग है कि कनाडा न्यूजीलैंड का आसान शिकार रहा। लेकिन यह तय है कि अगर कनाडा कि खिलाड़ी सजग और सचेत रहे तो वे भले कोई मैच न जीतें पर इस टूर्नांमेंट से बहुत कुछ लेकर जाने वाले हैं। कई क्रिकेट विश्लेषक टीवी पर कहते और अखबार में लिखते मिल जा रहे हैं, जो कह रहे हैं कि छोटी और दोयम दर्जे की टीमों को विश्वकप में नहीं खिलाना चाहिए। लेकिन मैं इससे इत्तेफाक नहीं रखता। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पहले की क्रिकेट बहुत कम देशों के बीच खेला जाता है और उसमें भी अगर कुछ कमजोर टीमों को आप खेलने से बंचित कर देंगे तो कैसा विश्वकप। कुछ गिनी चुनी टीमें ही रह जाएंगी। फिर क्रिकेट अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल कैसे बन पाएगा। मुझे लगता है यह विचारणीय पहलू है। यही नहीं जब तक छोटी टीमें बड़ी टीमों से बड़े मुकाबले नहीं खेलेेंगी तब तक जीत के बारे में कैसे सोचेंगी। क्रिकेट जहां भी खेल और देखा जाता है वहां दीवानगी हद से ज्यादा लोग इसे प्यार करते हैं, लेकिन यह आलम बहुत कम देशों तक ही हैं। क्योंकि इसका उतना विस्तार नहीं हो सका जितना अन्य का हुआ है। इसलिए मुझे लगता है कि छोटी टीमों को भी बड़े मुकाबले खेलने चाहिए और अपनी प्रतिभा मुजायरा करना चाहिए।
अब तक हुए मैचों में जो तस्वीर निकलकर सामने आ रही है वह संतोषजनक है और उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे भी कुछ ऐसे मुकाबले देखने को मिलेंगे जिसमें छोटी टीमें बड़ी टीमों की नाक में दम कर देंगी। और सबसे ज्यादा मजा तो उस वक्त आएगा जब कोई बड़ा उलटफेर होगा। न जाने किस दिन किसी छोटी टीम का हो और वह ऐसा कर जाए कि किसी ने सोचा ही न हो। उसके बाद विश्वकप की दिशा और दशा दोनों में तत्काल बदलाव आ जाएगा। फिर आएगा खेल देखने का मजा...

6 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

Cricket premiyon ke liye yah aalekh bahut badhiya hai!

jugal ने कहा…

bahut khoob

asheesh ने कहा…

aap na lek shandar hai

Neeraj Mishra ने कहा…

Cricket Main bhi hath aajmana chahiye

blogtaknik ने कहा…

achchha lekh he dhanyavad
पहला ब्लॉग अग्रीगेटर टूलबार

Rajnish tripathi ने कहा…

खेल का गज़ब का वर्णन किया है। शब्द में दम है

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