शुक्रवार, नवंबर 19, 2010

यह संक्रमण काल है!

बहुत मुश्किल है। समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं। इधर कई बार कुछ लिखने की कोशिश की लेकिन जब तक एक विषय पर लिखने का मन बनाया तब तक कोई दूसरी घटना हो जाती, जो पहली से बड़ी लगती। जब तक उस पर सोचा तब तक उससे बड़ी बात हो जाती। यही करते-करते एक माह से अधिक बीत गया। अब लगने लगा है कि जिस तरह खबरों का सिलसिला लगातार जारी रहता है और एंकर बाद में कह जाता है कि आप देखते रहिए उसी तरह आप देश को और उसकी हालात को देखते रहिए। आपके टीवी बंद कर देने से यह क्रम टूटेगा नहीं।
इस देश की क्या हालत हो गई है। किस पर भरोसा करूं। देश भ्रष्टाचार में आकंठ डूब चुका है। अभी बहुत समय नहीं बीता जब राजनीति बहुत नेक पेशा माना जाता था। बल्कि इसे तो पेशा माना ही नहीं जाता था। यह तो समाज सेवा का एक माध्यम था। इसमें भी बहुत समय नहीं बीता जब हर तरह के भ्रष्टाचार में, घपलों में, घोटालों में किसी न किसी नेता की ही संलिप्तता पाई जाने लगी। इसके बाद नेता का मतलब बहुत ही तुच्छ व्यक्ति हो गया। लोग नेता शब्द से ही घृणा करने लगे। जब भी किसी बड़ी परीक्षा के परिणाम आते और उनमें विजयी हुए प्रतिभागियों से पूछा जाता, तो वे सब कुछ बनना चाहते हैं, लेकिन नेता नहीं। नेता शब्द कितना बदनाम हो चुका है इस उदाहरण से यह आसानी से समझा जा सकता है। अब सवाल यह है कि किस-किस से घृणा कीजिएगा, क्या-क्या नहीं बनिएगा। सब तो एक ही जैसे हैं। जीवन में कुछ करना है तो कुछ तो करना ही पड़ेगा।
गौर करें तो पाएंगे कि बोफोर्स को छोड़ दें तो मुझे याद नहीं पड़ता कि इतने बड़े घोटाले में किसी प्रधानमंत्री का नाम सामने आया हो। मंत्री ही अपने स्तर पर इससे निपट लेते थे। लेकिन, अब एक बार फिर प्रधानमंत्री जैसा पद दागदार हो गया है। भले वे पाक साफ हों पर उनकी साफ सुथरी पोशाक पर 'कीचड़Ó के छीटे तो पड़ ही गए हैं। बाद में क्या होता है। यह बाद की बात है। अभी तक चाल, चरित्र और चेहरे की दुहाई देने वाले भाजपाई हालांकि समय समय पर अपना असली चेहरा उजागर करते आए हैं, लेकिन जब आप किसी पर अंगुली उठा रहे हो कम से कम उस समय तो आप पर कोई ऐसा आरोप न लगे, जिसके लिए आप दूसरे को घेर रहे हों। भाजपा कुछ-कुछ उसी तरह के घोटाले के लिए महाराष्ट्र में कांग्रेस को घेर रही थी, जैसा उनके मुख्यमंत्री ने कर्नाटक में कथित रूप से किया है। बड़ी हैरानी होती है।
अगर यह ढूंढऩे निकला जाए कि कौन से पेशे से जुड़ा व्यक्ति सही है तो मुझे नहीं लगता कि आपको किसी पेशे से जुड़ा व्यक्ति मिल पाएगा। हालांकि, यह बात सही है कि किसी एक व्यक्ति के भ्रष्ट हो जाने से कोई पेशा कलंकित नहीं हो जाता। लेकिन, कहीं न कहीं यह तो लगता ही है कि इस पेशे से जुड़ा व्यक्ति गलत काम में संलिप्त है। हमारी भारतीय संस्कृति में बाबा को बहुत मान और सम्मान दिया जाता है। दरअसल उन्हें भगवान का ही दूसरा रूप माना जाता है। लेकिन, बड़े-बड़े और नामी बाबाओं ने कैसे हमारी भक्ति और उम्मीदों पर तुषारापात किया है, यह किसी से छिपा नहीं है। मैं यहां किसी बाबा का नाम नहीं लूंगा। क्योंकि, एक तो इससे उनके भक्तों को आघात लगेगा और दूसरा यह सूची बहुत लम्बी हो जाएगी। हमारे देश की पुलिस तो रिश्वत लेने , फर्जी एनकाउंटर करने और अन्य कई तरहों की हरकतों के कारण बहुत बदनाम हो चुकी है, लेकिन सेना को तो बहुत पूज्य माना जाता है। उन्हें हम अपना रक्षक मानते हैं। लेकिन, जब उन्हीं रक्षकों का सेनापति ही किसी भ्रष्टाचार में संलिप्त पाया जाता है तो क्या कह कर अपने मन को समझाइएगा। बात किस सेना प्रमुख की हो रही है और उन महाशय ने क्या किया है, मुझे नहीं लगता कि यह बताने और समझाने की जरूरत है।
बहुत दिनों तक यह मानता रहा कि कम से कम कोई पत्रकार किसी भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं पाया जाता। इसके कई कारण रहे। एक तो यह कि उसके ऊपर पहले से ही समाज के समाने सबकी कलई खोलने की जिम्मेदारी होती है वही अगर कुछ गलत करेगा तो किस मुंह से किसी को गलत कहेगा। मैं खुद इस पेशे में आया इसका अन्य कारणों के साथ-साथ शायद एक बड़ा कारण यह भी था। लेकिन, अभी हाल ही में देश के दो पत्रकारों ने कथित रूप से दलाली में शामिल होकर मेरी इस धारणा को भी चूर-चूर कर दिया। बड़ी बात यह रही कि ये दो वे नाम हैं, जिनका नाम बहुत सलीके और सम्मान के साथ लिया जाता है। बहुत से युवा पत्रकार उनसे मिलने, बात करने और उनके जैसा बनने का ही सपना संजाते रहते हैं। लेकिन, मुझे नहीं लगता कि अब कोई भी उनके जैसा बनने की सोचेगा भी। कम से कम जब तक वे पाक-साफ नहीं हो जाते तब तक तो कतई नहीं।
हालांकि, अंत में यह कह देना भी जरूरी है कि मैं बहुत आशवादी व्यक्ति हूं और यह मानता हूं कि परिवर्तन ही संसार का नियम है और जो आज है वह कल नहीं रहेगा। यह भी बदल जाएगा।

8 टिप्‍पणियां:

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

आपकी इस बात से में भी सहमत हूं कि किसी एक व्यक्ति के गलत हो जाने से वह पूरा पेशा गलत नहीं होता। और इस बात पर भी हां में हां मिलाता हूं कि वाकई वर्तमान में संक्रमण काल चल रहा है। आशा है जल्द ही सुखद बदलाव देखने को मिलेंगे।

विनीत कुमार ने कहा…

आपकी चिंता बिल्कुल जायज है। लेकिन विकल्प तो इन्हीं स्थितियों से निकाले जाएंगे।.

Rajnish tripathi ने कहा…

जो लिखा है वो तो जायज है लेकिन इसका विकल्प क्या है इस पर विचार करना होगा इस संक्रमण को दूर करने का विकल्प खोजना होगा।

कडुवासच ने कहा…

... saarthak abhivyakti !!!

falsafa ने कहा…

बहुत सही कहा पंकज भाई। दरअसल, सारा खेल सत्ता और उसके दुरूपयोग का है।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आशाएँ ही एकमात्र ज्योतिपुंज है... किंतु जो नया होगा वो पहले से अच्छा होगा, बस यही किंतनव्यथित करता है!!

दीपक बाबा ने कहा…

जो लोग इस खेल में शामिल हैं ...... मौज में हैं.... जो शामिल नहीं हैं परेशान है - वो शामिल होना चाहते हैं.

जय राम जी की

Shalini kaushik ने कहा…

bhrashtachar ne desh me har aur raj kar liya hai .jahan dekho usi ki tooti bolti hai.par aashavadi hona hi chahiye kyonki change is the rule of nature.

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