क्यों लिखे, पढ़े और बनाए जा रहे ब्लाग
‘ब्लाग’। शब्द, बहुत पुरान नहीं तो नवीन भी नहीं। एक दौर था, जब यह खूब लिखा और पढ़ा जाता था। यह फेसबुक के आने का शुरुआती वक्त हुआ करता था। हां, वाट्सअप तो था ही नहीं और ट्विटर की चिड़िया कुछ खास लोगों तक ही समिति हुआ करती थी। बहुत बने, बहुत सजे और बहुत पढ़े भी गए, ब्लाग। लेकिन फिर धीरे धीरे कुछ अलग होता चला गया। सवाल यह है कि ब्लाक आखिर क्यों बनाए और लिखे जा रहे हैं। हम जैसे पत्रकार तो ब्लाग इसलिए बनाते और लिखते हैं कि जो बातें या चीजें अखबार या टीवी के माध्यम से नहीं लिख सकते, उन्हें लिखने का यह एक स्वतंत्र मंच मिल जाता है। ‘पत्रकारिता जल्दबाजी में लिखा गया साहित्य ही तो होता है।’ लेकिन अगर तसल्ली से लिखा जाए तो वही साहित्य की श्रेणी आकर खड़ा हो जाता है। अखबार में हम खबरें लिख सकते हैं। टीवी में हर स्टोरी दिखा सकते हैं। लेकिन जरूरी तो नहीं कि हम सिर्फ यही तक सीमित रहते हों। कविता, कहानी, व्यंग्य आदि कहां लिखे जाएं। इसके लिए एक रास्ता मिल गया वह है ‘ब्लाग’ का। जो पत्रकार नहीं वे कुछ नहीं लिख सकते क्या? क्यों नहीं लिख सकते। अगर लिखा है तो कोई पढ़े, यह भी मन में रहता ही है, तो कैसे पढ़ा जाए? ब्लाग के ही माध्यम से पढ़ा जाए। इसलिए गैर पत्रकार भी ब्लाग लिखने लगे। ‘बड़े लोग’ मसलन महानायक टाइप या टीवी के जाने माने एंकर और पत्रकार भी ब्लाग लिखते हैं। वे कुछ भी लिखें, हिट मिल ही जाते हैं। वे अपने घर की कहानी लिखें तो भी और टीवी में पढ़ी गई अपनी स्क्रिप्ट ही क्यों न लिख दें, उन्हें पढ़ा तो जाएगा ही। नाम ही इतना बड़ा है।
लेकिन, इधर जब से फेसबुक और वाट्सअप ने जोरदार तरीके से धमक दी है, ब्लाग कुछ कम हो गए हैं। हां ब्लाग की जगह लोग ब्लाक को ज्यादा जानने और समझने लगे हैं। ज्ञान की गंगा बहाने के लिए इससे अच्छी जगह भला और क्या मिलेगी। सो जो नहीं वही हो जाता है शुरू। लेकिन जब कुछ अर्थपूर्ण लिखना हो, तो ब्लाग ही वह जगह होती है, जहां लिखा और पढ़ा जाना चाहिए। इसलिए लंबे अर्से बाद एक बार फिर से ब्लागिंग की शुरुआत, आज की इसी पोस्ट के साथ....
‘ब्लाग’। शब्द, बहुत पुरान नहीं तो नवीन भी नहीं। एक दौर था, जब यह खूब लिखा और पढ़ा जाता था। यह फेसबुक के आने का शुरुआती वक्त हुआ करता था। हां, वाट्सअप तो था ही नहीं और ट्विटर की चिड़िया कुछ खास लोगों तक ही समिति हुआ करती थी। बहुत बने, बहुत सजे और बहुत पढ़े भी गए, ब्लाग। लेकिन फिर धीरे धीरे कुछ अलग होता चला गया। सवाल यह है कि ब्लाक आखिर क्यों बनाए और लिखे जा रहे हैं। हम जैसे पत्रकार तो ब्लाग इसलिए बनाते और लिखते हैं कि जो बातें या चीजें अखबार या टीवी के माध्यम से नहीं लिख सकते, उन्हें लिखने का यह एक स्वतंत्र मंच मिल जाता है। ‘पत्रकारिता जल्दबाजी में लिखा गया साहित्य ही तो होता है।’ लेकिन अगर तसल्ली से लिखा जाए तो वही साहित्य की श्रेणी आकर खड़ा हो जाता है। अखबार में हम खबरें लिख सकते हैं। टीवी में हर स्टोरी दिखा सकते हैं। लेकिन जरूरी तो नहीं कि हम सिर्फ यही तक सीमित रहते हों। कविता, कहानी, व्यंग्य आदि कहां लिखे जाएं। इसके लिए एक रास्ता मिल गया वह है ‘ब्लाग’ का। जो पत्रकार नहीं वे कुछ नहीं लिख सकते क्या? क्यों नहीं लिख सकते। अगर लिखा है तो कोई पढ़े, यह भी मन में रहता ही है, तो कैसे पढ़ा जाए? ब्लाग के ही माध्यम से पढ़ा जाए। इसलिए गैर पत्रकार भी ब्लाग लिखने लगे। ‘बड़े लोग’ मसलन महानायक टाइप या टीवी के जाने माने एंकर और पत्रकार भी ब्लाग लिखते हैं। वे कुछ भी लिखें, हिट मिल ही जाते हैं। वे अपने घर की कहानी लिखें तो भी और टीवी में पढ़ी गई अपनी स्क्रिप्ट ही क्यों न लिख दें, उन्हें पढ़ा तो जाएगा ही। नाम ही इतना बड़ा है।
लेकिन, इधर जब से फेसबुक और वाट्सअप ने जोरदार तरीके से धमक दी है, ब्लाग कुछ कम हो गए हैं। हां ब्लाग की जगह लोग ब्लाक को ज्यादा जानने और समझने लगे हैं। ज्ञान की गंगा बहाने के लिए इससे अच्छी जगह भला और क्या मिलेगी। सो जो नहीं वही हो जाता है शुरू। लेकिन जब कुछ अर्थपूर्ण लिखना हो, तो ब्लाग ही वह जगह होती है, जहां लिखा और पढ़ा जाना चाहिए। इसलिए लंबे अर्से बाद एक बार फिर से ब्लागिंग की शुरुआत, आज की इसी पोस्ट के साथ....