रविवार, जुलाई 25, 2010

तो क्या अब चम्मच भी न दी जाए!

कैसी विडम्बना है। जो हमें फूटी आंख नहीं सुहाने चाहिए। जिन्हें देखते ही गोली मार देनी चाहिए। उनकी हम इतनी सुरक्षा करते फिरते हैं कि कहीं उनके बाल की खाल भी भी बांकी न हो जाए। अगर उन पर कोई हमला करता है तो हम उन्हें बचाते हैं और चोट लग जाने पर मरहम पट्टी करते हैं। दवाई का खर्चा भी हमारा ही।
जी, बात कर रहा हूं। अबू सलेम साहब की। अरे साहब न कहूं तो क्या कहूं। साहब जैसा ही तो ठाट है उनका। आम आदमी मरे चाहे जिए, किसी को कोई परवाह नहीं। पर अबू साहब को कुछ हो जाए तो सरकार के कान के बाल खड़े हो जाते हैं। अरे ये कैसे हो गया? उन जनाब पर हमला हो गया, घायल हो गए। हमलावर कौन? उनके ही पुराने साथी मुस्तफा दोसा साहब। दोनों जनों ने मिलकर 12 मार्च 1993 में मुंबई में सिलसिलेवार बम विस्फोट किए। तब दोनों साथी थे। यानी हमजोली। अब दुश्मन हो गए, एक दूसरे की खून के प्यासे। कहते भी हैं दोस्त अगर दुश्मन हो जाए तो उससे बड़ा दुश्मन और कोई नहीं होता। तब दोनों भाई दाउद इब्राहिम जी के लिए काम करते थे। अबू साहब ने जब नई राह अपनाई तो दोसा जी को यह बात बर्दाश्त नहीं हुआ। भाई से दगाबाजी? तब से ही दोसा जी अबू साहब से नाराज थे। मन में था कि इसको तो मैं देख लूंगा। दोसा जी कई दिनों से उन चम्मच को चमका या यूं कहें घिर रहे थे जो उन्हें खाना खाने के लिए दी जाती है। जब चमक गई तो बस फिर क्या था। कर दिया अबू साहब पर हमला। पता चला है कि उन्हें गले में कुछ चोटें आई हैं। तुरंत उनकी दवाई कराई गई और अब वह विश्राम कर रहे हैं। हालांकि अबू साहब भी कम नहीं हैं। वो तो दोसा जी की सेहत अबू जी से अच्छी थी नहीं तो अबू जी भी कुछ कर देते तो कोई बड़ी बात नहीं।
एक सवाल यहां उठ रहा है कि क्या जेल में कैदियों को जो चम्मच दी जाती है वह भी बंद कर देनी चाहिए। हालांकि अभी तक इस तरह की कोई खबर नहीं आई है कि सरकार इस पर विचार कर रही है पर अगर एक दो इस तरह की वारदात हो गईं तो सरकार को सोचना होगा। मैं सरकार से थोड़ा पहले सोच ले रहा हूं। एक बात और अगर चम्मच बंद कर दी तो ये माननीय कैदी साहब लोग खाना कैसे खाएंगे। हाथ से? ऐसे तो उन्होंने कभी नहीं खाया। ठहरिए खाया तो है। जब अबू साहब आजमगढ़ में रहते थे तो कैसे खाते होंगे। तब तो गरीबी थी। तो शायद हाथों से ही खाते होंगे। और खाने से हाथ गंदे हो जाते थे तो उन्हें धोने के लिए साबुन भी नहीं मिलता था। मिट्टी से हाथ धोने पड़ते थे। लेकिन वो तो गुजरे जमाने की बात हो गई। अब तो चम्मच-कांटे और न जाने क्या क्या। अब कैसे हाथ से खाएंगे। हाथ मैले नहीं हो जाएंगे? खैर यह दूर की कौड़ी है। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।
हां, सरकार जिस बात को लेेकर परेशान है वह परम आदरणीय मोहम्मद आमिर अजमल कसाब साहब की सुरक्षा है। इतनी महान शख्सियत की सुरक्षा में कहीं सेंध न लग जाए इसको लेकर सरकार के कान खड़े हो गए हैं। अगर कसाब को कुछ हो गया तो क्या होगा। पाकिस्तान को क्या जवाब देगी हमारी सरकार? क्या किया हमारे कसाब के साथ? हमारा एक आदमी भी ठीक से नहीं रख पाए और बातें करते हो? चलो जाओ हम तुमसे कोई बात नहीं करेंगे। आतंकवाद पर भी नहीं। हमारा लाल कसाब कहां है?
आम आदमी जो देश के लिए मरा जा रहा है, देश की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश की सेवा कर रहा है, देश की अर्थव्यवस्था में कोई न कोई सहयोग दे रहा है। तिरंगे को अपनी आन, बान और सम्मान समझता है। उसकी हमारी सरकार को कोई फिक्र नहीं। यहां एक सवाल और भी उठता है। यह आम आदमी है कौन? सवाल किया तो जवाब आया जो आम के मौसम में भी जो आम न खा पाए वही आम आदमी है। तो साहब यह तो आम का मौसम चल रहा है। मैं देखता हूं कि बहुत बड़ी संख्या में लोग आम नहीं खा पा रहे हैं। दुकानों और ठेलियों पर रखे आम सड़ रहे हैं पर कोई खरीदार नहीं मिल रहा। क्यों? जवाब वही महंगाई डायन खाए जात है।
खैर, महंगाई की बात फिर कभी, फिलहाल महान लोगों की हो रही थी। बात यहीं खत्म करना चाहता हूं। सवाल कई हैं और जवाब सरकार को तलाशने हैं। जो सरकार तय करेगी हम सभी को मानना है, क्योंकि सरकार तो हम सबने मिलकर बनाई है ना। तो ठीक है साहब ईश्वर से यही प्रार्थना है कि अबू साहब, दोसा साहब और अजमल साहब की सुरक्षा में कोई सेंध न लगे नहीं तो गजब ही हो जाएगा। जरा संभलकर..................

21 टिप्‍पणियां:

Subhash Rai ने कहा…

बहुत अच्छा लिखना रहे हो पंकज. असल में हमारा लोकतंत्र चरम उदारता की हद को भी पार कर गया है. अब हम परम उदासीन भी हैं और परम चैतन्य भी. यह परम ही सारी आफत की जड़ है. जहां उदासीन होना होता है, वहां चैतन्य हो जाते हैं और जहां चैतन्य रहना चाहिये, वहां उदासीन हो जाते हैं.

Unknown ने कहा…

pankaj jee bahut achha likha hai jiske lie badhai.
panakaj jee sawal is bat ka nahi hai ki kaidi khana kaise khaenge chamach se ya phir hath se sawal is bat ka hai ki sarkar aise kaidion ko pal kyu rhai hai, inka faisla lene me itne der kyu? kya kisi aur kandhar ka intjar hai!

क्या लिखू, क्या कहूं? ने कहा…

भईया छा गए... जो आम के मौसम में आम ना खा सके वही आम आदमी है... उम्दा उदाहरण दिया... हमने भी इस मौसम में बस एक ही बार आम खाया है... वो भी दूसरे के खिलाने पर... पोस्ट की बात करें तो सही कहा आपने... साहब तो यही लोग हैं... हम आप तो गुलाम हैं... इनकी खबर हो तो खबर लिखो... कोई खबर ना मिले तो भी खबर लिखो... जय हिंदुस्तान...

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!

Parul kanani ने कहा…

जो आम के मौसम में आम ना खा सके वही आम आदमी ....... pankaj ji ..jai ho :)

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छा

pankaj ji jitne bhi india ke dusman hain unhe hamari government damad ki tarah paal rahi hain. sukh suvida ke naam par jo hamare indian ko nahi mil rahi wo sab enhe uplabd karai jaa rahi hain.

asheesh ने कहा…

sahi kaha salam shab ahur kasahab shahab. such hai enko turant goli mar deni cheya

manoj kumar sharma ने कहा…

sahi kha bhai aapne bhaut khub likhte ho

aisa to ek sampadak leval ka aadmi hi likh sakta hai

bhai ye bdi bdi santhane aapke saktyo ko pachan nahi pa rhi hai

www.choupatiarocks.blogspot ने कहा…

very nice..keep it up

Unknown ने कहा…

bahut hi satik likha hai darshal jo hu dakta ha bha hota nahi hai

Unknown ने कहा…

bahut hi satik likha hai darshal jo hu dakta ha bha hota nahi hai

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

बहुत खूब लिखा है... कल ही हम न्यूज़ सुन रहे थे, महाराष्ट्र के मंत्री हैं एक वे जेल के दौरे पर गए तो उन्होंने देखा की सलेम साहब की बेरेक में शानदार पलंग है,,, मूत्रालय वीआईपी, दीवारों पर माडल के अर्धनग्न फोटो....
ऐसे ठाठ है इन्सान जाती के दुश्मनों के.... इतना ही नहीं इनकी सुरक्षा व्यवस्था पर भी लाखों-करोंडो खर्च होते है.... पता नहीं क्यों सरकार इन्हें पालती है..
हमारी दिल्ली सरकार तो अफजल की फाइल पर लम्बे समय से ऐसे बैठी रही जैसे सोफे पर बैठी हो, इतना बतंगड़ हुआ लेकिन एक बार भी नहीं उठ कर देखा की हम कहाँ बैठे है.....

Unknown ने कहा…

Aam admi par lekh achha hai..ab to aam bhi humari pahuch se dur hote ja rahe hai...lekin aam admi aam khane ke liye soch to sakta hai...jo soch hi nahi sakta use kya kahege...aam ke dam ka itna bad jane ka karan kya hai..aam ke ped kat dena..jangl sabhi kat chuke hai..jo bache hai kate ja rahe hai..barsat kam ho rahi hai..jisse aam ki paidawar pichhle dus salo me kitni kam ho gai hai aap achhi tarah se jante hai..aur mai apko bata du ki mahgai ka karan sarkar nahi hum khud hai...har kisi ki jyada chahna hi mahngai ka sabse bada karan hai..
Rahi atankiyo ki bat to abu salem vishvstariy apradhi hai...agar usko jail me kuch ho gaya to pure vishv ki nigahe uth jayegi...ek to bharat ki safeness ko lekr pahle hi world me itne sawal hai...ab agar ye ghatna ghat gai hoti to sabhi kahte ki ab bharat me jab jail jaha police ka sakht pahra hota hai safe nahi to bharat kya rahega..jab uske gale ki kharoch itni badi khabar ban sakti hai to marna kitni badi banegi...
Bharat me kaidio ko lambe samay tak jailo me hi rakha jata hai...wah isliye ki agar sudhra to sahi nahi to jail me hi sadta rahe...Agar apko lagta hai ki waha unko sari suvidhaye di ja rahi hai..to""KISI BHI PANCHHI KE LIYE SONE KA PINJRA BHI HAR PAL KI MAUT HOTI HAI""
Agar arab desho me kisi Indian ko fansi di jati hai to yanha khabar chhapti hai ki itne bhartiyo ko fansi..kyoki waha fansi hai...jo ki bharat me nahi hai..kyoki manavadhikar iski ijajat nahi deta...yaha kitna bhi bada apradh kar do to umrkaid se jyada kuchh nahi hota...Tis par fansi wah bhi ek pakistani ko...bhale hi usne hamara nuksan kiya hai...Age aap khud hi samjh sakte hai...

निर्मला कपिला ने कहा…

विचारणीय पोस्ट । धन्यवाद। शुभकामनायें

Rajnish tripathi ने कहा…

पंकज भाई सलेम और दौसा एक दुसरे के पूरक है कह सकते है कि एक सिक्के के दो पहलु लेकिन प्रसाशन कि बात करे तो ये पूरा का पूरा सिक्का है /जो दोनों के बीच सिर्फ हेड टेल का खेल खेल रही है / रही बात जेल में सुभिधाओ का तो आप भी जानते है कि भारत में एक रुपये के लिए अपना ईमान तक बेज देते है तो अबू ने कितना पैसा दिया होगा या हो सकता है कि भारतीय मंत्री महोदय ने अपने अबू के लिए सेज सजवाई हो क्योकि भारत में गरीब हमेशा से गरीब रहा है और हमेशा रहेगा /

sandhyagupta ने कहा…

सवाल किया तो जवाब आया जो आम के मौसम में भी जो आम न खा पाए वही आम आदमी है।

क्या बात है!

Unknown ने कहा…

acha likha ha. chammach ho na ho. jinki fasad ki mansikta ha unko koi kaise rok sakta ha. hathon se bhi kai prakar ki hinsa ki ja sakti ha. jaise marpeet, gala ghontana, etc.

Akhilesh pal blog ने कहा…

bahoot achha lika mere blog par aakar tipani dene ke liye danya vaad

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आम के मौसम में भी जो आम न खा पाए वही आम आदमी है।
...बहुत खूब. आम के मौसम में जो गुठली को तरस जाए वह आदमी है.
..सुंदर कटाक्ष.

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

बिलकुल सही लिखा है. हमारे देश में आम आदमी को आम आदमी भी इज्जत नहीं देता. याद कीजिये हम अपना परिचय कैसे देते हैं ... मैं फलां कंपनी में मेनेजर या इतना बड़ा आदमी हूँ या हमारा उठना बैठना उचे लोगों के साथ है. मतलब साफ़ है - मैं बड़ा और सामने वाला छोटा. अब ऐसे में आम आदमी की खोज-खबर सरकार भी क्यूँ लें जब तक की उसकी पहुँच ऊपर तक ना हो?

देशभक्ति का जज्बा रखने वालों की कीमत आज दो कौड़ी की भी नहीं .... सरकार के लिए अपराधी, आतंकवादी ज्यादा महत्वपूर्ण है.

किसी कवि ने ठीक ही कहा है
"भगत सिंह फिर कभी काया ना लेना भारतवासी की, देश भक्ति की सजा आज भी तुमको मिलेगी फांसी की".

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा आपने ...कभी 'पाखी की दुनिया' में भी घूमने आइयेगा.

LinkWithin

Related Posts with Thumbnails