सोमवार, जुलाई 05, 2010

कैसा रहा भारत बंद ?

आज भारत बंद रहा। क्यों? महंगाई बहुत हो गई है, इसे कम होना चाहिए। विपक्ष ने मांग की थी भारत बंद की। बंद सफल रहा या असफल यह अलग बात है, लेकिन क्या मिला इस बंद से जरा इस पर गौर फरमाइए।
बंद का असर किस पर पड़ा। गरीबों पर या फिर रहीसों पर। जो इस महंगाई में पिस रहा है उस पर या फिर.......। बाजार बंद रहे। सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा। जिन लोगों ने दुकानें खोलीं भी उन्हें बंद करा दिया गया। क्यों? अरे भारत बंद है भई, तुम दुकान कैसे खोल सकते हो। अगर दुकान खोल ली तो बंद असफल नहीं हो जाएगा, विपक्ष का मखौल नहीं उड़ेगा। एक अदने से दुकानदार की वजह से पूरे विपक्ष के किए धरे पर पानी फिर जाए, ये कैसे हो सकता है।
इस भारत बंद से क्या मिला। पेट्रोल, डीजल, कैरोसिन और पता नहीं किस किस के दाम कम हो गए क्या ? चलो नहीं भी हुए तो क्या आश्वासन ही मिला है कि सरकार दाम कम करने की कोशिश कर रही है, जल्द ही कीमतें काबू में आ जाएंगी। ऐसा कुछ नहीं हुआ। सरकार ने तो बंद के एक दिन पहले ही कह दिया था कि कीमतें किसी भी कीमत पर कम नहीं होंगी।
फिर बंद का फायदा क्या? जिनके घर महीने भर का राशन एक ही दिन आ जाता है उन्हें तो कुछ फर्क नहीं पड़ा। फर्क उन्हें पड़ा जो रोज कमाई कर आटा, सब्जी और सरसों का तेल लेकर घर जाते हैं। आज न तो वे कमाई कर पाए और न ही घर जाते समय खाने का सामान ही ले जा पाए। असर उन ठेली वालों पर पड़ा जिनकी ठेली पर आज कोई नहीं आया। आए भी तो वही भारत के सबसे जिम्मेदार नागरिक। यह कहने की ठेली हटा लो, आज भारत बंद है। मना किया तो डरया धमकाया और सामना इधर उधर फेंक दिया।
क्या इसीलिए भारत बंद हुआ? क्या यही इसका मकसद था? नहीं तो क्यों बेवजह का ड्रामा किया गया। आपके यहां कैसे हालात थे। जैसे मैंने लिखा वैसा ही या इससे कुछ जुदा। बताएंगे तो अच्छा लगेगा। नहीं बताएंगे तो भी कोई बात नहीं।

12 टिप्‍पणियां:

कुन्नू सिंह ने कहा…

बंद कराने वाले बहुत मार खाएं हैं, उनके लिये सहानूभूती :)

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

आपका कहना अपनी जगह सही है। जिस दिन बंद और तमाम तरह की हड़ताल होती हैं उसका असर गरीब जनता पर ही पड़ता है, लेकिन विरोध तो करना ही पड़ेगा न। अब इसका क्या रास्ता सही है ये चुनाव नीति निर्धारकों को चुनना चाहिए। जिससे विरोध भी मुकम्मल हो और गरीब को भूखे पेट सोना भी न पड़े। अब सरकार ने कह दिया कि तुम चाहे जो करो हम बाज नहीं आएंगे, बढ़ी हुई कीमतें वापस नहीं लेंगे। इसका मतलब यह तो नहीं कि सरकार ने कह दिया और हम पहले ही हार मान लें। सरकार की मंशा के अनुरूप चले तो साहब हो गया कल्याण... लोकतंत्र में गलत नीतियों का विरोध जरूरी है। बस उसका रास्ता हमें ऐसा चुनना है कि किसी का नुकसान न होए....

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बंद एक शगल हो गया है। राजनैतिक दलों को विरोध का ऐसा साधन तलाशना चाहिए जिस से आमजनता को कष्ट न हो।

ZEAL ने कहा…

mahaan log, jo na kara dein...Ye bharat band bhi kara sakte hain aur bharat ko bech kar khaa to rahe hi hain.

संगीता पुरी ने कहा…

पढ लिया .. कहने को कुछ भी नहीं !!

pnsharma ने कहा…

jisne mahgai badhai uska gheraav karo aap aadmi ko tang karne kyon nikal pade bharat band karne ke liye.dhakka aage se aaya to dhakka aage vaale ko maro peechhe vaale ko maar rahe ho jo vechara roj kamaata roj khataa hai.bharat band se mahgai ghategi nahin balki badhaegi. aap sahi kah rahe ho .badhaai!!

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

सहमत हूँ! एक ड्रामा है....
लैट देम एन्जॉय!
आशीष :)
www.myexperimentswithloveandlife.blogspot.com

पंकज मिश्रा ने कहा…

कुन्नू जी, लोकेन्द्र जी, दिनेश जी, दिव्या जी, संगीता जी, शर्मा जी और आशीष जी आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद। मैं अक्सर कोई भी पोस्ट लिखने से पहले पूरी तैयारी करता हूं और कोशिश करता हूं कि जिस विषय पर लिखूं उसके बारे में अधिक से अधिक खुद भी जानूं और दूसरों को भी बताऊं। यह पोस्ट के बारे में कुछ ही मिनटों में सोचा गया और लिख दिया गया। बहुत छोटी पोस्ट थी। फिर भी आप सभी का प्यार मिला, बहुत बहुत आभार।
अब चाहता हूं कि जो भी इस पोस्ट पर टिप्पणी करे वह जहां भी है, वहां के बारे में जरूर बताए कि बंद का असर कैसा रहा। इससे मेरी भी जानकारी में कुछ वृद्धि होगी साथ ही अन्य लोगों को भी पता चलेगा कि बंद ने क्या असर किया। धन्यवाद।

निर्मला कपिला ने कहा…

ारे विरोधी दल की भी कुछ जिम्मेदारियाँ होती हैं कि नही अब रोटी तो वो सब को दे नही सकते मागर घडियाली आँसूओ तो बहा सकते हैं न। ये विरोधी धर्म कर्म का हिस्सा है। इस लिये आप केवल आँख बंद रक़्खो। गरीब का क्या एक दिन रोटी नही भी खायेगा तो मर नही जायेगा मगर इन नेताओं के शुगल चलते रहने चाहिये। शुभकामनये

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

बाज़ी आतिश की शहर में गर्म है
बंध खोलो कि आज सब "बंद" है
- गुलज़ार

sandhyagupta ने कहा…

इस भारत बंद से क्या मिला।

Chaliye sab milkar sochte hain.

संजीव गौतम ने कहा…

तरबूजा छुरी पर गिरे या छुरी तरबूजे पर कटना तरबूजे को ही है। अब तो राजनेताओं की जबान से निकले शब्द भी घिनघिनाहट पैदा करते हैं।

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