सोमवार को खेल से जुडी दो बडी खबरें आती हैं। खेल में दिलचस्पी होने और अखबार में काम करने के कारण तुरंत उन पर ध्यान गया। टीवी के लिए दोनों ब्रेकिंग न्यूज। एक को तो खूब दिखाया गया पर दूसरी उतनी चर्चा नहीं पा सकी। मंगलवार के अखबारों में एक खबर प्रथम पेज पर जगह पाती है तो दूसरी अंदर के पन्नों पर। प्रथम पेज की खबर वही जो टीवी के लिए ब्रेकिंग न्यूज।
एक तो शुएब सानिया की शादी की, जो कि पूरी तरह पुष्ट नहीं हो सकी और दूसरी पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर युसुफ के संन्यास की। सानिया शुएब की खबर ने खूब सुर्खी पाई पर युसुफ की खबर दब कर रह गई। प्रिंट मीडिया की बात करें तो उन अखबारों में तो थोडी गलीमत रही जहां खेल के दो पेज निर्धारित हैं पर जहां सिर्फ एक पेज है वहां तो इसे कहीं कोने में तो कही ब्रीफ में जगह मिली।
सनिया शुएब की खबर बडी थी। इसे खूब छापा गया। एजेंसी से खबर आने के बाद कई अखबारों ने तो अपने रिपोर्टर से कह कर इस खबर पर काम भी कराया। इस बात का पता मंगलबार को तमाम अखबार पढने से चलता है। सानिया शुएब की बात फिर कभी फिलहाल बात युसफ की।
हर खिलाडी को एक न एक दिन खेल को अलविदा कहना ही पडता है। सो युसुफ को भी कहना पडा। पर सवाल यह है कि युसुफ ने संन्यास लिया या फिर उन्हें यह फैसला लेने पर मजबूर किया गया। सि्थतियों की पडताल की जाए तो साफ पता चल जाएगा कि उन्हें मजबूरन यह फैसला लेना पडा। जिस खिलाडी ने टेस्ट क्रिकेट में 53 की औसत से और एक दिनी क्रिकेट में 42 से अधिक के औसत से रन बनाए हो उसका यूं खेल छोड देना थोडा अखर गया।
पाकिस्तान क्रिकेट के लिए युसुफ ने जो किया क्या उस आधार पर उन्हें इस तरह संन्यास की घोषणा करनी चाहिए थी। जवाब होगा शायद नहीं। तो फिर युसुफ ने ऐसा क्यों किया। युसुफ ने संन्यास की घोषणा के लिए बाकायदा संवाददाता सम्मेलन बुलाया। पर अचरज इस बात का कि उन्होंने इस दौरान वही कहा जो वह कहना चाहते थे। वह नहीं कहा जो लोग सुनना और जानना चाहते थे। उन्होंने इस दौरान साफ कह दिया कि वे किसी सवाल का जवाब नहीं देंगे। क्यों क्योंकि अगर वे पत्रकारों के सवालों के जवाब देते तो उनका दर्द उभर कर सामने आ जाता और फिर बिना बजह बात का बतंगड बन जाता।
याद आते हैं एडम गिलक्रिस्ट बात 2008 की है इसलिए संभवत दिमाग पर ज्याद जोर डालने की जरूरत नहीं। भारत और कंगारुओं के बीच अंतिम टेस्ट मैच खेला जा रहा था। उन्होंने पहली पारी में भारतीय सि्पनर अनिल कुंबले का कैच लपका। इसके साथ ही वे विकेट के पीछे कैच लेने वाले सबसे सफल विकेटकीपर बन गए। इसके साथ ही उन्होंने क्रिकेट से अलविदा कह दिया। उनके देश के प्रधानमंत्री केविन रूड ने गिली से अपने फैसले पर फिर विचार करने को कहा पर गिली से इससे साफ तौर पर इनकार कर दिया। वो समां आज भी याद आता है जब कंगारू खिलाडियों के साथ साथ भारतीय खिलाडियों के साथ हजारों दर्शकों के बीच गिली को मैदान से विदाई दी गई।
क्या युसुफ इस तरह की शानदार विदाई के हकदार नहीं थे। चाहे भारत हो या पाकिस्तान हमारे साथ यही समस्या है। पहले तो किसी न किसी कारण से खिलाडी को बाहर कर दिया जाता है फिर मजबूरन उसे अलविदा कहना ही पडता है। कपिल, वेंगसरकर, श्रीकांत, शास्त्री, सौरभ और इंजमाम जैसे कितने ही खिलाडी हैं जो शायद इस शानदार विदाई के हकदार थे पर उन्हें कैसे जाना पडा सब जानते हैं। इंजमाम को तो एक बंद कमरे में संवाददाता सम्मेलन बुलाकर इस बात की घोषण करनी पडी कि अब वह क्रिकेट नहीं खेलेंगे। वहीं वां बन्धु, लेंगर, डेनियल मार्टिन, मैक्ग्रा, वार्न को उनके देश के लोगों और क्रिकेट बोर्ड ने कैसी विदाई दी सबने अपनी आंखों से टीवी में देखा।
युसुफ ने सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें इस तरह विदा होना पडेगा। दरअसल कोई खिलाडी नहीं चाहता कि उसे संवाददाता सम्मेलन कर इस बात की घोषणा करनी पडे कि अब वह नहीं खेलेगा। जहां वह अब तक रहा। जहां के प्रदर्शन की बजह से लोग उसे प्यार करते हैं यानी खेल का मैदान। वह वहीं इस बात की घोषणा करना चाहता है। युसुफ के दिल की टीस इस बात से जानी जा सकती है कि जाते जाते वह कह गए कि मैनें हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की। मैं पाक बोर्ड को परेशान नहीं देखना चाहता इसलिए मैंने संन्यास का फैसला लिया है। युसुफ ने यह भी कहा कि पाक बोर्ड ने उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया। मैं कुछ बताना चाहता था।
युसुफ के लिए क्रिकेट और अपने देश पाकिस्तान से बढकर कुछ नहीं था। शायद यही कारण था कि जब टीम में धर्म विवाद ने जन्म लिया तो उन्होंने यहूदी धर्म छोडकर इस्लाम कबूल करने में तनिक भी देरी नहीं की। किसी को हो न हो पर युसुफ का यूं चले जाना मुझे बहुत अखर गया।
एक तो शुएब सानिया की शादी की, जो कि पूरी तरह पुष्ट नहीं हो सकी और दूसरी पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर युसुफ के संन्यास की। सानिया शुएब की खबर ने खूब सुर्खी पाई पर युसुफ की खबर दब कर रह गई। प्रिंट मीडिया की बात करें तो उन अखबारों में तो थोडी गलीमत रही जहां खेल के दो पेज निर्धारित हैं पर जहां सिर्फ एक पेज है वहां तो इसे कहीं कोने में तो कही ब्रीफ में जगह मिली।
सनिया शुएब की खबर बडी थी। इसे खूब छापा गया। एजेंसी से खबर आने के बाद कई अखबारों ने तो अपने रिपोर्टर से कह कर इस खबर पर काम भी कराया। इस बात का पता मंगलबार को तमाम अखबार पढने से चलता है। सानिया शुएब की बात फिर कभी फिलहाल बात युसफ की।
हर खिलाडी को एक न एक दिन खेल को अलविदा कहना ही पडता है। सो युसुफ को भी कहना पडा। पर सवाल यह है कि युसुफ ने संन्यास लिया या फिर उन्हें यह फैसला लेने पर मजबूर किया गया। सि्थतियों की पडताल की जाए तो साफ पता चल जाएगा कि उन्हें मजबूरन यह फैसला लेना पडा। जिस खिलाडी ने टेस्ट क्रिकेट में 53 की औसत से और एक दिनी क्रिकेट में 42 से अधिक के औसत से रन बनाए हो उसका यूं खेल छोड देना थोडा अखर गया।
पाकिस्तान क्रिकेट के लिए युसुफ ने जो किया क्या उस आधार पर उन्हें इस तरह संन्यास की घोषणा करनी चाहिए थी। जवाब होगा शायद नहीं। तो फिर युसुफ ने ऐसा क्यों किया। युसुफ ने संन्यास की घोषणा के लिए बाकायदा संवाददाता सम्मेलन बुलाया। पर अचरज इस बात का कि उन्होंने इस दौरान वही कहा जो वह कहना चाहते थे। वह नहीं कहा जो लोग सुनना और जानना चाहते थे। उन्होंने इस दौरान साफ कह दिया कि वे किसी सवाल का जवाब नहीं देंगे। क्यों क्योंकि अगर वे पत्रकारों के सवालों के जवाब देते तो उनका दर्द उभर कर सामने आ जाता और फिर बिना बजह बात का बतंगड बन जाता।
याद आते हैं एडम गिलक्रिस्ट बात 2008 की है इसलिए संभवत दिमाग पर ज्याद जोर डालने की जरूरत नहीं। भारत और कंगारुओं के बीच अंतिम टेस्ट मैच खेला जा रहा था। उन्होंने पहली पारी में भारतीय सि्पनर अनिल कुंबले का कैच लपका। इसके साथ ही वे विकेट के पीछे कैच लेने वाले सबसे सफल विकेटकीपर बन गए। इसके साथ ही उन्होंने क्रिकेट से अलविदा कह दिया। उनके देश के प्रधानमंत्री केविन रूड ने गिली से अपने फैसले पर फिर विचार करने को कहा पर गिली से इससे साफ तौर पर इनकार कर दिया। वो समां आज भी याद आता है जब कंगारू खिलाडियों के साथ साथ भारतीय खिलाडियों के साथ हजारों दर्शकों के बीच गिली को मैदान से विदाई दी गई।
क्या युसुफ इस तरह की शानदार विदाई के हकदार नहीं थे। चाहे भारत हो या पाकिस्तान हमारे साथ यही समस्या है। पहले तो किसी न किसी कारण से खिलाडी को बाहर कर दिया जाता है फिर मजबूरन उसे अलविदा कहना ही पडता है। कपिल, वेंगसरकर, श्रीकांत, शास्त्री, सौरभ और इंजमाम जैसे कितने ही खिलाडी हैं जो शायद इस शानदार विदाई के हकदार थे पर उन्हें कैसे जाना पडा सब जानते हैं। इंजमाम को तो एक बंद कमरे में संवाददाता सम्मेलन बुलाकर इस बात की घोषण करनी पडी कि अब वह क्रिकेट नहीं खेलेंगे। वहीं वां बन्धु, लेंगर, डेनियल मार्टिन, मैक्ग्रा, वार्न को उनके देश के लोगों और क्रिकेट बोर्ड ने कैसी विदाई दी सबने अपनी आंखों से टीवी में देखा।
युसुफ ने सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें इस तरह विदा होना पडेगा। दरअसल कोई खिलाडी नहीं चाहता कि उसे संवाददाता सम्मेलन कर इस बात की घोषणा करनी पडे कि अब वह नहीं खेलेगा। जहां वह अब तक रहा। जहां के प्रदर्शन की बजह से लोग उसे प्यार करते हैं यानी खेल का मैदान। वह वहीं इस बात की घोषणा करना चाहता है। युसुफ के दिल की टीस इस बात से जानी जा सकती है कि जाते जाते वह कह गए कि मैनें हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की। मैं पाक बोर्ड को परेशान नहीं देखना चाहता इसलिए मैंने संन्यास का फैसला लिया है। युसुफ ने यह भी कहा कि पाक बोर्ड ने उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया। मैं कुछ बताना चाहता था।
युसुफ के लिए क्रिकेट और अपने देश पाकिस्तान से बढकर कुछ नहीं था। शायद यही कारण था कि जब टीम में धर्म विवाद ने जन्म लिया तो उन्होंने यहूदी धर्म छोडकर इस्लाम कबूल करने में तनिक भी देरी नहीं की। किसी को हो न हो पर युसुफ का यूं चले जाना मुझे बहुत अखर गया।
1 टिप्पणी:
श्रीमान पंकज जी... मुबारक हो... आपके ब्लॉग की पुष्टी हो गई... जिस वक्त मैं ये टिप्पणी लिख रहा हूं... उस वक्त सानिया और उनके पिता शोएब से शादी की बात की पुष्टी कर रहे हैं... मुबारक हो... ये तो रियल लाइफ के वीर-ज़ारा हो गए... दावते-वलीमा में चलेंगे....
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