दुर्गेश मिश्रा
घर बैठे मैं एक दिन टीवी पर धारावाहिक झांसी की रानी देख रहा था। उसमें बार बार बनारस, बिठूर और कानपुर का नाम आ रहा था। वैसे तो हमें टीवी देखने का समय ही नहीं मिलता, क्यों कि अखबारी लाइन ही कुछ एसी है। बिल्कुल संडिला की लड्डू की तरह बंद हांडी, हांडी के अंदर क्या है किसी को पता नहीं चलता। बाहर से चकाचौंध दिखने वाले इस अखबार की दुनिया में। यहां हर कोई एक दूसरे को काम को लेकर खाने को दौड़ता है। खैर यह तो रही अखबार और यहां नौकरी बजाने वालों की बातें। तो प्रसंग छिड़ा था धारावाहिक झांसी की रानी का। हां तो आधे घंटे के इस धारावाहिक में दिखाए जा रहे पूणे के निरवासित पेशवा बाजीराव और बिठूर स्थित उनके महल मे रह रहे पंडित मोरोपंत और उनकी बेटी मनु, पेशवा का दत्तक पुत्र नाना भाऊ और तात्या टोपे द्वारा इन बच्चों को दी जा रही शिक्षा और संस्कार को। इसे देखा एसा लगा कि अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले सपूतों की पहली नरसरी बिठूर में ही लगाई गई थी। अपनी इन्हीं उत्सुकता के चलते हमने गुगल पर बिठूर को खोजा। इसमें हमें रूप सिंह चंदेल का 8मई 2008 का लिखा यात्रा संस्मरण पढने को मिला। संस्मरण तो अच्छा था, लेकिन हमें निरासा तब हुई, जब पता चला कि पेशवा के विशाल भवन की जगह झाडियां उगी हैं और निशानी के रूप में दीवार का एक छोटा सा टुकडा मात्र बचा है। अब सवाल यह उठता है कि कल को हम अपनी भावी पिढी को कैसे समझाएंगे कि यहीं पर झांसी की रानी मनु, नानासाहेब और तात्या टोपे रहा करते थे। क्यों कि यहां तो उनके अवशेष ही नहीं रह गए हैं। निःस्वारथ भाव से देश के लिए सब कुछ लुटा बैठने वाले शहीदों की शहादत की बुनियाद पर खडी आज के भारत के रहनुमाओं को लाज नहीं आती। कहीं कोई अपनी स्वारथ के राजनीति की रोटियां सेकने के लिए किसी को चांद पर जमीन खारीद कर गिफ्ट करता है तो कोई राजमुद्रा का अपमान करते हुए करोडो रूपए का किसी मुख्यमंत्री को हार पहनाता है। और तो और खुद का महिमामंडन करने में व्यस्त एक राज्य का मुख्यमंत्री कितनी बेसरमी से कह देती है कि स्मारकों के रखरखाव के लिए कोई बजट नहीं रखा है। बात कुछ हद तक ठीक भी है। एतिहासिक स्थलों, स्मारकों के रख.रखाव का जिम्मा अकेले सरकार का नहीं होता। बल्कि इसके लिए सांझे प्रयासों की जरूरत होती है। इसका रख.रखाव करना देश के हर नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी बनती है। क्यों कि हमें समझाना होगा भावी पीढी को कि ये है हमारे देश का गौरवमई इतिहास और उनकी निशानियां। तो फिर देर किस बात की, आप भी हमारे साथ तैयार हो जाएं धरोहरों को बचाने के लिए।
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