बुधवार, जनवरी 20, 2010

शोले और थ्री ईडियट



माफ कीजिएगा पर यह तुलना कुछ जंची नहीं। बात कर रहा हूं फिल्म थ्री ईडियट की। इसकी रिलीज के मात्र एक हफ्ते बाद ही कहा जाने लगा कि इसने अब तक के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिये। देखा तो पता चला कि कमाई के मामले में। फिल्म ने पहले तो गजनी का रिकार्ड तोड उसके बाद शोले का।
याद आ रहा है कुछ समय पहले एक खबर मिली थी कि शोले का रिकार्ड टूट गया है। जानकारी की तो पता चला कि दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे अब हिन्दी फिल्म इतिहास की अब तक की सबसे ज्यादा चलने वाली फिल्म हो गई है। अच्छा तो लगा कि चलो अब भी इस तरह की फिल्में बन रही हैं जो रिकार्ड तोड रही हैं लेकिन सच बताउ तो थोडा बुरा भी लगा। पता नहीं क्यों शोले से कहीं किसी की तुलना की जाती है मन व्यथित होता है। कई बार कोशिश की कि जान पाउं ऐसा क्यों होता है पर नाकामी ही हाथ लगी। आज भी ऐसा होता है।

अब बात थ्री ईडियट और शोले की तुलना की। कहा जा रहा है कि फिल्म ने केवल दस दिनों में ही करीब 250 करोड की कमाई कर शोले का रिकार्ड तोड दिया। अब सवाल यह है कि क्या 34 साल पहले 1975 में रिलीज किसी फिल्म का रिकार्ड आज बाकई तोडा जा सकता है। यहां गौर हो कि जिस शोले को हम अब की सार्वकालिक हिट फिल्म मानते हैं वह भी शुरू में फ्लाप घोषित की जा चुकी थी। ऐसा नहीं है कि ऐसा शोले के ही साथ हुआ हो। अगर ज्यादा दूर न जाएं तो कहो न प्यार है के साथ भी ऐसा ही हुआ था। अब सब जानते हैं कि कहो न प्यार ने क्या इतिहास रचा था।

खैर बात शोले और थ्री ईडियट की। जब जानकारी की तो पता चला कि 15 अगस्त 1975 मे शोले के करीब 100 प्रिंट जारी किए हुए थे और थ्री ईडिएट के करीब 2000 प्रिंट जारी किए गए। शोले मुंबई के मिनर्वा थियेटर में 25 साल तक चली। क्या आज से साल भर बाद कोई भी थ्री ईडियट को सिनेमा हाल में देखने जाएगा। मुझे नहीं लगता। कुछ महीनों के बाद थ्री ईडियट टीवी पर आ जाएगी शोले भी टीवी पर दिखाई गई मगर कब यह बडा सवाल है। जो शख्स फिल्म की रिलीज के दिन पैदा हुआ होगा उसने अगर संभव हुआ होगा तो सिल्बर जुबली और गोल्डन जुबली शो देखा होगा। मगर क्या थ्री ईडियट के इस तरह के शो होंगे कहना मुशिकल है। शोले का एक एक डायलाग हर किसी की जुबान पर चढा हुआ है मगर क्या आल इज वेल की अलावा फिल्म का कोई डायलाग याद रखा जा सकता है। शोले में असली हीरो कौन था कहना संभव नहीं है। अमिताभ, धमेन्द्र, अमजद खान, संजीव कुमार या कि जया, हेमा। सब अपने आप में हीरो ही थे। थ्री ईडियट में निर्विवाद रूप से आमिर ही असली हीरो हैं। कहना न होगा कि उनके चक्कर में माधवन और शरमन जोशी की चरित्र दबा दिये गए हैं। जिस फिल्म को बीबीसी ने सदी की फिल्म बताया हो उसकी तुलना हर ऐरी गैरी नत्थू गैरी फिल्म से क्यों।

दरअसल, एक चीज लोगों ने पकड ली है ही कि तुलना करो तो उसस जो उस समय सबसे शीर्ष पर हो। शाहरुख खान पंगा लेंगे तो अनिल कपूर जैकी श्राफ या संजय दत्त से नही बलिक अमिताभ बच्चन से। क्यों क्योंकि वे शीर्ष पर है। वीरेंद्र सहवाग की तुलना होगी तो राहुल द्रविड या सौरभ गांगुली से नही बलिक सचिन तेंदुलकर से क्यों क्योंकि वे शीर्ष पर है। यही नहीं कई भाई लोगों ने नई नवेली सुनिधि चौहान की तुलना लता जी से करनी शुरू कर दी थी। आज सुनिधि कहां है कितने गाने गातीं है किसी को नहीं पता। ऐसे ही न जाने कितने ही उदाहरण है। असल में इससे होता ये है कि जब आप शीर्ष पर बैठे किसी शख्स से तुलना करते है तो आपके इर्द गिर्द जो भी है या आपसे कुछ आगे भी है वह आपसे एक झटके में पीछे हो जाता है। लोगों को लगा कि इसी में सफलता निहित है।

बात फिर ईडियट की। याद आता है कि फिल्म की रिलीज के पहले आमिर खान ने दुनिया को दिखाने के लिए कैसी नौटंकी की। देश भर में घूमे। लोगों के बताया कि उनकी अगली यात्रा के बारे में किसी को पता ही नहीं लेकिन भीतर ही भीतर मीडिया के सम्पर्क में रहे और उसे अपने इंटरव्ये के लिए आमंत्रित करते रहे। क्या ऐसा या इससे कम प्रचार का सहारा शोले ने लिया था। कहने को कहा जा सकता है कि तब प्रचार के ऐसे माध्यम उपलब्ध ही नहीं थे। लेकिन एक फ्लाप घोषित की जा चुकी फिल्म ने इतिहास रचा यह बात किसी से छिपी नहीं है। याद आ रहा है कि थ्री ईडियट के रिलीज के एक दिन बाद की समीक्षा में ही एक पत्रकार महोदय ने इसे हिट करार दे दिया था। टीवी पर भी इसके पक्ष में खूब कसीदे पढे। कहना न होगा कि आज लोग इतने जागरुक हो गए हैं कि समीक्षा पढ कर या टीवी पर समीक्षा देख कर फिल्म देखने जाते हैं। और मीडिया तो आमिर के मोहपाश में प्रचार के दौरान से ही आ चुकी थी।
फिल्म हिट हो और खूब हिट हो। खूब पैसा कमाए। किसी को भला क्या आपत्ति हो सकती है। दरअसल दिक्कत तो तब होती है जब हर फिल्म की तुलना शोले से होती है। तुलना करें अच्छी बात है पर माफ कीजिएगा शोले को बख्श दीजिए। प्लीज।

7 टिप्‍पणियां:

दीपक 'मशाल' ने कहा…

Ha Ha Ha... aapke vichaar hain achchhi baat hain main kadra karta hoon... lekin jyada emotional ho gaye janaab...
ye baat bhool gaye ki 3 Idiots me kitne message hai samaj ke liye(gin nahin paayenge isliye rahne diziye) aur sholey me kitne the...
mana sholey achchhi film hai lekin wo ek masala film hai... agar kala ke naam par hhi film dekhni hain to Naseer bhai, Anupam bhai ya Ompuri ji ki dekhiye...

jo kaam aaj bade bade NGO nahin kar paa rahe wo agar koi film maker karne ja raha hai to aap promote karne ki bajay uski taang kheenchenge...
kahta to main bhi yahi hoon ki sholey aur 3 idiots ki tulna nahin ho sakti lekin hum dono alag alag pariprekshya me kahte hain...
Sholey se badi film to main Halla Bol ko manta hhoon.
Jai Hind

Udan Tashtari ने कहा…

इन बातों में इतनी भावुकता...

Arvind Mishra ने कहा…

दोनों अपने लिहाज से अतुलनीय हैं -ऐसी तुलनाएं निहित स्वार्थों वश होती हैं !

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

शोले का मसाला ईमानदार था - मसाला है भाया, बिना तिरस्करिणी के।
थ्री इडियट में मसाले को छिपाने की भरपूर कोशिश हुई है लेकिन बात वहीं अटकती है - लाख छुपाओ छुप न सकेगा ....
कोई तुलना नहीं। 'शोले' एक महाकाव्य है और 'थ्री इडियट' पता नहीं क्या है !
शायद इसी 'पता नहीं' में वह नवीनता छिपी हो जो खींच रही है लेकिन बस कुछ दिन । उसके बाद इतिहास..

Neelam Pande ने कहा…

sholey ki tulna kabhi bhi idiot se nahin ki ja sakti...old is always gold....sholey sabke sath baeth kar dekhi ja sakti hae jabki idiot ke liye sochna padega kyoki picture hi idiots hae....

तदात्मानं सृजाम्यहम् ने कहा…

अच्छा है, आलोचना करो और फिल्म निर्माता सुधर सकें। कमाई वगैरह बड़ी बात नहीं है। जब शोले बनी थी, तब जनसंख्या इतनी नहीं थी। टिकट भी महंगे नहीं थे। आदमी की बेवकूफियां भी कम थीं। अब उन चीजों में मजा आने लगा है, जो कहीं से भी तनिक सी मुस्कान चेहरे पर ला दें। सो जानी...डाँट माइंड। माया में मत पड़ो..मायानगरी से बचो।

शरद कोकास ने कहा…

अच्छी जानकारी ।

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