रविवार, जनवरी 10, 2010

थरूर को नहीं शऊर

कहने के लिए कोई कह सकता है कि मैं शशि थरूर के पीछे पड गया हूं। पर हर समझदार यह जानता है कि मैं कहां और थरूर साहब कहां। इस बार मैं इसलिए लिख रहा हूं कि आज थरूर साहब ने कहा है कि मीडिया को समाचार संकलन में अधिक सजग और प्रासंगिक होना चाहिए। उनका आरोप है कि उनकी बात को गलत तरीके से पेश किया गया है।
मेरी समझ में नहीं आता कि अक्सर लोग मीडिया पर यह आरोप क्यों लगाते हैं कि उनकी बात को तोड मरोड कर पेश किया गया। उन्होंने वास्तव में वह कहा ही नहीं जो अखबार में छपा या फिर टीवी पर दिखाया गया। मैं सभी से निवेदन करना चाहता हूं कि वे जब भी मीडिया से बात करें तो अपनी बात को पूरी तरह स्पष्ट कर दें ताकि मीडिया उसके गलत निहिताथर् न निकाल सके।
कहने को थरूर साहब ने यह कह भले दिया हो कि उनकी बात का गलत मतलब निकाला गया है जबकि हकीकत यह है कि थरूर साहब को दो पैसे का भी शऊर नहीं है। दरअसल थरूर साहब ने यह इस बात का समर्थन तो कर दिया लेकिन बाद में उन्हें याद आया कि जिस व्यकित की उन्होंने आलोचना की है वह है कौन। थरूर के लिए राहत की बात यह रही कि उन्होंने इस बार मुंह से बोला था टिवटर पर लिखा नहीं था। यही एक बात उनके पक्ष में गई नहीं तो इस बार थरूर साहब की छुट्टी तय थी। थरूर यह कह कर बच गए कि जो बताया जा रहा है वह उन्होंने कहा ही नहीं।
हालांकि मैं इस बात से सहमत हूं कि थरूर साहब ने जो कहा वह गलत नहीं था। भले ही उन्होंने अब कह दिया हो कि उनका ऐसा मानना नहीं है। लेकिन मुझे थरूर की इस बात पर हंसी आ रही है कि बोलते बोलते वह यह भी भूल गए कि वे किस बात पर टिप्पणी कर रहे हैं और किसकी आलोचना कर रहे हैं। मैं मानता हूं कि इस समय संप्रग सरकार का जो मंत्रिमंडल है उनमें से थरूर साहब कुछ विदवानों में से एक हैं पर उन्हें यह भी ध्यान रखना होगा कि कब, कहां और कैसे बोला जाए। उम्मीद है कि थरूर साहब आगे से सोच कर ही नहीं बरन समझ कर भी बोलेंगे।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

कब, कहां और कैसे बोला जाए-यह तो सबको समझना चाहिये.

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