बुधवार, जून 16, 2010

कहाँ कहाँ हैं आप


आजकल मैं बहुत परेशान हूं। परेशानी का कारण है सोशल नेटवर्किंग साइट्स। रोज किसी न किसी मित्र का मेल आ जाता है कि फलां नेटवर्किंग साइट पर जुडि़ए। ये सिलसिला आज से नहीं बहुत दिनों से या यूं कहूं कि बहुत सालों से चल रहा है। मुझे पता भी नहीं कि कब मेरे पास इस तरह का पहला मेल आया था। पहले घर में लैंडलाइन फोन होते थे, लेकिन आप उन्हें हर जगह ले जा नहीं सकते थे। उसके विकल्प के तौर पर मोबाइल आया। उसे आप कहीं भी ले जा सकते हैं। फिर आया इंटरनेट का जमाना। मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मैंने पहली बार अपना मेल आईडी बनाया तो लग रहा था कि पता नहीं कौन सा तीर मार लिया। उस समय फिल्म खामोशी का मजरूर साहब का गीत याद आ रहा था और मन ही मन उसे गुनगुना भी रहा था। गीत है 'आज मैं ऊपर आसमां नीचेÓ।

खैर सबको अपना ईमेल आईडी बांटने लगा। और बड़ी श् ाान से। सबका मेल आईडी लेता भी था। मेल भले न करूं। सच तो यह है कि किसी का मेल आता भी नहीं था। कभी महीने दो महीने बाद साइबर कैफे जाता तो वही शादी करवाने वाली साइटों के या फिर बैंक के मेल आते थे। कभी कभी कोई सामान भी बेचने आता था। शायद उसे पता नहीं था कि उसका मुझे मेल करना एक तरह से बेकार ही है। उन्हें कभी डिलीट कर देता तो कभी देखता की ऐसे तो मेल बाक्स खाली हो जाएगा तो कुछ एक छोड़ देता। अगली बार फिर जाता तो उन्हें डिलीट करता, क्योंकि तब तक कोई और अपना सामान बेचने चुका होता था।

खैर, अब आपको अपनी परेशानी बताता हूूं। पहले जब जीमेल पर मेल अकाउंट बनाया तो पता चला कि ऑरकुट भी कोई चीज होती है। पहली बार जब एक दोस्त ने पूछा कि क्या तुम ऑरकुट पे हो तो सबसे पहले यही पूछा कि ये क्या होता है। उसे भी ज्यादा पता नहीं था जितना पता था उसने बता दिया। मैंने भी धीरे धीरे सीखना शुरू किया और फिर तो मजा आने लगा। मोबाइल ने दूरियां कम की थी आप किसी से भी कभी भी सम्पर्क कर सकते हैं लेकिन उसके लिए उसका नम्बर होना जरूरी था। जब गहराई में गया तो पता चला कि ऑरकुट में तो आप नाम डाल दीजिए और अगर उस व्यक्ति का वहां अकाउंट है तो वह मिल जाएगा। कई बार तो सजेशन भी आ जाता है। मैंने कई पुराने दोस्त इस तरह से खोजे। लेकिन इधर देख रहा हूं कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स की बाढ़ सी आई हुई है। ऑरकुट, फेसबुक, ट्विटर, लिंकडेन, झूज, टैग्ड, हाई-5, माई कंटोस, माई स्पेस, फ्लिकर और बज। हो सकता है कुछ भूल भी रहा होऊं। समस्या यह है कि किस किस से जुड़ूं। सब पर जुडऩे के लिए मेल आ चुका है और अभी भी आ रहा है। कभी सोचता हूं कि इन पर क्यों जाऊं। क्या इससे कुछ फायदा होगा या फिर नुकसान। हालांकि, यह बहस का मुद्दा है कि यह नेटवर्किंग साइट्स सही हैं या गलत। पिछले दिनों पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने फेसबुक पर पाबंदी लगा दी थी लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें पाबंदी हटानी पड़ी। आखिर ऐसा क्यों करना पड़ा। कहीं ये हमारी सोचने समझने की शक्ति खत्म तो नहीं कर रहीं। चुंकि पत्रकारिता के पेशे में हूं तो पहले सोचता था कि शायद पत्रकार ही इनसे जुड़ते हैं क्योंकि पेशे की मांग है कि उनका सामाजिक दायरा बड़ा होना चाहिए पर अब देखता हूं कि पत्रकार तो पत्रकार वकील, नेता, अभिनेता और हर पेशे से जुड़ा व्यक्ति यहां मिल जाता है। भई कमाल हैं सोशल नेटवर्किंग साइट्स। हर कोई इनका दीवाना है। सोचता हूं कि कहीं ये दीवानगी भारी न पड़ जाए।

आप किन-किन सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुड़े हैं और क्यों। क्या है इनका और हमारा भविष्य अगर अपने विचार साझा करेंगे तो अच्छा लगेगा।

21 टिप्‍पणियां:

Amitraghat ने कहा…

"अच्छी पोस्ट नेट्वर्किंग के कुछ नुक्सान भी हैं पर फायदे तो बहुत हैं..."

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

सब माया है बबुआ... सब आजमा लिए, अब लगता है कि केतना बनावटी दुनिया... जेतना नेता, खिलाड़ी अऊर अभिनेता का आप जिकिर किए हैं ऊ सब लोग भाड़ा पर लिखने के लिए आदमी रखे हुए हैं... लोग फोलोअर का गिनती देख कर खुस है, बाकी ऊ में से केतना लोग आपका सच्चो दोस्त है, कभी सोचे हैं...हमरा त जीवन का निचोड़ एही है कि जो आदमी अपना बच्चा का ट्विट्टर सुनता है, अऊर अपना जीवन साथी के साथ ऑर्कुटियाता है, उसी का सोसल नेट्वर्किंग बेस्ट है...

छत्तीसगढ़ पोस्ट ने कहा…

बड़ा गज़ब का पोस्ट है, मज़ा आ गया .....शुभकामनाएं..

Apanatva ने कहा…

samay ke sath chalana hee hitkar hai jee..............
aap to yuva hai mai to vraddhavstha me isese judee hoo.......likhane padne ka poora shouk jo hai..............

आचार्य उदय ने कहा…

बहुत सुन्दर।

ZEAL ने कहा…

Side effects !

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

सबसे बड़ी बात है समय. सामाजिक सरोकार जितना बढ़ाएंगे उतना निभाना पड़ेगा नहीं निभा पाएंगे तो दोस्ती छूट जायेगी. मैं ब्लॉग पढ़ लेता हूँ यही बहुत है.

Shekhar Kumawat ने कहा…

millafacebook ko jain kar lu kya

Shekhar Kumawat ने कहा…

http://www.millatfacebook.com/

ise join kar lu kya

VISHWANATH SAINI ने कहा…

डियर पंकज जी, कमैंट के लिए धन्यवाद...। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मैंने यह ब्लॉग अपनी खबरों के लिए ही बनाया है। तभी तो इसका नाम खबरों का अड्डा है। अखबार में खबर प्रकाशित होने के बाद ब्लॉग पर डालता हूं तो इसमें बुरा क्या है? आपकी प्रोफाइल में यह जानकर अच्छा लगा कि आप भी राजस्थान पत्रिका में कार्यरत हों।

माधव( Madhav) ने कहा…

बड़ा गज़ब का पोस्ट है, मज़ा आ गया

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

सोशल नेटवर्किंक साइट्स यूं तो बड़े काम की हैं। आज से दो साल पहले मैं भी इंटरनेट की दुनिया से बेखबर था। थोड़ा बहुत किताबों में पढ़ा था कि ईमेल क्या होता है? साइट क्या होती हैं कैसे काम करतीं है आदि। सोशल नेटवर्किंग के बारे में तो कभी नहीं पढ़ा था। पहले पहल यूनिवर्सिटी के एक क्लासमेट ने बताया कि मैं ऑरकुट पर हूं। जी टॉक से फ्री में बात होती है। घर में कम्प्यूटर तो था लेकिन इंटरनेट कनेक्शन नहीं था। सो एक दोस्त की दुकान पर जाकर बैठता और उसके दोपहर के विश्राम का इंतजार करता, क्योंकि तब मैं उसका कम्प्यूटर इस्तेमाल कर सकता था। उसी की दुकान में ऑरकुट बनाया वहीं से चलाया। इस साइट की सहायता से मैंने अपने कई अच्छे दोस्तों से फिर से संपर्क बनाया, कुछ से तो करीब आठ-नौ साल बाद बात हुई। पहले चिठ्ठियों से बात होती थी हर हफ्ते, लेकिन उनका पता बदल गया और उनको मेरी और उनकी चिठ्ठियों मिलना बंद हो गईं। फिर से हमें मिलाया ऑरकुट ने। दोस्तों के मेल पर आए आग्रह ने हाई-५ का मेम्बर बनवाया, पर अपुन ने इस्तेमाल नहीं की। फिर और भी कई साइट का सदस्य बना पर मजा नहीं आया। उसके बाद खुद ही फेसबुक का मेम्बर बना और ट्वीटर का। दोनों पर कभी-कभी चला जाता हूं। निरंतर संपर्क में तो आज भी ऑरकुट के ही रहता हूं। ब्लॉग से जुड़ा तब से ऑरकुट को भी उतना ही समय दे रहा हूं। कहते हैं कुछ लोगों की पर्सनल लाइफ इनसे डिसटर्ब हो जाती है, लेकिन अपन जैसे फकीरों को सोशल नेटवर्किंक से कोई फर्क नहीं पेंदा है। थोड़ा दोस्तों से गपिया लेते हैं और क्या? उनके हाल-चाल भी जान लेते हैं साथ ही अपने बता भी देते हैं।

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

are bhai pankaj hum bhi bahut dukhi hain in sasura faaltoo ki melon se hum to kisi ko karte hi nahi phir sab humhi ko kaahe karte hain samajh me nahi aata kya tumhare aata hai

jugal ने कहा…

very good

jugal ने कहा…

कहते हैं कुछ लोगों की पर्सनल लाइफ इनसे डिसटर्ब हो जाती है, लेकिन अपन जैसे फकीरों को सोशल नेटवर्किंक से कोई फर्क नहीं पेंदा है। थोड़ा दोस्तों से गपिया लेते हैं और क्या? उनके हाल-चाल भी जान लेते हैं साथ ही अपने बता भी देते हैं।

क्या लिखू, क्या कहूं? ने कहा…

सही है सर... सोशल साइट का है ज़माना... मेरे हिसाब से ये सही है... क्योंकि अब हम ग्लोबल विलेज में रहते हैं... तो सभी का पास हो बेहद जरूरी है... क्योंकि आपस में दूरी इतनी बढ़ गई है कि उसे पाटना अब संभव नहीं...

Subhash Rai ने कहा…

Pankaj main bhi yaar is chakkar men phans gaya hun. maja to aata hai magar samay ganvakar. pata nahin kab hosh aayega. bihari babu ki bat pasad aayee.

Rajnish tripathi ने कहा…

बहुत खूब...मज़ा आ गया

PRAVIN ने कहा…

पंकज, आपका पोस्ट पढ़ा, कहां-कहां हैं आप.... सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर मैं भी थोड़ी बहुत सर्फिंग करता हूं। लेकिन आपका पोस्ट पढ़ा तो मन में एकदम से विचार कौंधा कि ये तो कोई परी कथा सच हो गई। अब 'आकाशवाणीÓ सुनी नहीं देखी जा सकती है सबसे और खास बात यह है कि विश्व के किसी भी हिस्से में मेरे द्वारा लिखी 'आकाशवाणीÓ पढ़ी जा सकेगी। लेकिन जो बात आपने उठाई बड़ी महत्वपूर्ण हैं , दूसरों द्वारा लिखी 'आकाशवाणियांÓ कभी-कभार जी का जंजाल बन जाती हैं। यह ऐसा है कि इसके बिना रहा भी न जाय और इससे होने वाली परेशानियां सही भी न जाय। साइट्स से आ रहे सैकड़ों निमंत्रण से समस्या उत्पन्न हो जाती है कि किस पर अकाउंट खोलें किस पर न खोलें और कितने पासवर्ड याद करें। यही नहीं अगर अकाउंट खोल लिया फिर उस पर हाय-हेलो न किया तो शिकायतों की बाढ़ , किसी का निमंत्रण स्वीकार न किया तो भी अकड़ू और जाने क्या-क्या ........अब तो समझ में ही नहीं आता कि करूं तो क्या

subodh dubey ने कहा…

aap ne socha kam likha kam hai. sosalnetworking hame pasnd hai.

बेनामी ने कहा…

aap ne socha kam likha kam hai. sosalnetworking hame pasnd hai.

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