गुरुवार, जून 24, 2010
किस्मत के धोनी
आखिरकार 15 साल बाद फिर वह दिन आ ही गया जब भारत क्रिकेट के मामले में एक बार फिर एशिया का सिरमौर बन गया। क्रिकेट प्रेमी तो इस जीत से खुश हैं ही पर सबसे ज्यादा खुशी कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को होगी। धोनी इस बार बाल-बाल बच गए। एशिया कप फाइनल में हारने का मतलब धोनी की कप्तानी से विदायी भी हो सकती थी। जीत के बाद अब कुछ समय के लिए तो उन पर अंगुली नहीं ही उठेगी। यह भी दीगर है कि इस जीत में धोनी का कुछ खास योगदान नहीं रहा। उन्होंने फाइनल में 50 गेंद में 38 रन बनाए, जिसे केवल ठीक ठाक ही कहा जा सकता है, अगर बात एक दिनी मैच की हो तो।
मैं बार-बार और हर बार यही कहता रहा हूं कि धोनी किस्सत के धनी हैं और इस बार भी यही साबित हुआ। धोनी इस बात से तो खुश होंगे ही कि उन्होंने अपनी कप्तानी में 15 साल का सूखा समाप्त किया साथ ही उनकी खुशी का एक कारण और होगा वह हैं सचिन तेंदुलकर। यह टूर्नामेंट उन्होंने सचिन की गैर मौजूदगी में जीता है। एक समय था जब भारतीय क्रिकेट के बारे मेें कहा जाने लगा था कि सचिन के बगैर टीम नहीं जीतती। धोनी जबसे कप्तान बने हैं उनकी कोशिश रही है कि इस टैग से बचा जाए।
अब जरा यह समझने की कोशिश करते हैं कि धोनी की कप्तानी पर खतरा आखिर था क्यों। दरअसल उनकी कप्तानी काफी समय से खतरे में थी, पर वेस्टइंडीज में खेले गए टी-ट्वेंटी विश्व कप से जल्दी विदायी ने आग में घी का काम किया। जिन कारणों से धोनी को कप्तान बनाया गया था वही काफी समय से धोनी में देखने को नहीं मिल रहे थे। उनकी सबसे बड़ी समस्या यही थी कि जो रणनीति वे बनाते थे उसे मैदान में क्रियान्वित नहीं कर पा रहे थे और जब रणनीति मैदान में नहीं चलेगी तो उसका फायदा क्या ? अपनी बल्लेबाजी की तरह कप्तानी में भी जो आक्रामकता धोनी में दिखती थी वह अब न तो उनकी बल्लेबाजी में देखने को मिल रही है और न ही मैदान पर कप्तानी करते समय। कैप्टन कूल कहे जाने वाले धोनी अक्सर मैदान पर गर्म होते हुए भी दिखे हैं। इसका कारण कई वरिष्ठ खिलाडिय़ों का टीम में होना माना जा सकता है। यह बात सही है कि वरिष्ठों की मौजूदगी में कप्तानी करना किसी के लिए भी आसान नहीं होता और धोनी भी इससे दो चार हो रहे हैं। काबलियत इसी में है कि वरिष्ठों को पूरा सम्मान देकर भी उन्हें अच्छा खेल खेलने के प्रोत्साहित किया जाए।
२३ जून को फाइनल के रिहर्सल के तौर पर खेले गए मैच में जब पूरी टीम 209 रन बनाकर आउट हो गई तो लगा कि शायद इस बार भी कप हाथ से जाता रहेगा, लेकिन तारीफ करनी होगी दिनेश कार्तिक की जिन्होंने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन करते हुए 66 रन बनाए। हालांकि, उन्होंने इतने रन बनाने के लिए 126 गेंदें खेलीं। गेंदबाजी में नेहरा ने कमाल का प्रदर्शन किया और नौ ही ओवर में चार विकेट ले लिए। धोनी की कप्तानी में भारत ने अभी तक किसी टूर्नामेंट में 7 बार फाइनल मुकाबला खेला और उसमें से यह भारत की चौथी जीत है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि इस जीत के साथ ही धोनी एक नई शुरुआत करेंगे। जो क्षमताएं उनमें हैं उसका इस्तेमाल जरूरत पडऩे पर करेंगे, जिससे फिर उनकी कप्तानी पर सवाल न उठें।
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14 टिप्पणियां:
आपकी बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं। लेकिन यदि एशिया कप भारत की झोली में नहीं आता तो धोनी की कप्तानी पर सवाल तो उठते लेकिन वे हट जाते इसमें संदेह है, क्योंकि फिलहाल कप्तान के लिए भारत के पास कोई विकल्प तो है, लेकिन जो कप्तानी के गुण धोनी में हैं, शायद किसी में नहीं। वैसे जब होता, तब होता, फिलहाल भारतवासी एशिया कप की खुशी मना रहे हैं, तो हम क्यों संभावनाओं को जन्म दें। गांगुली भी अपनी कप्तानी साबित कर चुके हैं। वर्तमान में टीम की मांग है धोनी। प्रारंभ में भी जब महेंद्र सिंह को कप्तानी के लिए चुना गया था, तब उनके विरोधी भी थे, लेकिन उन्होंने साबित कर दिखाया। धोनी का खेल काबिल-ए-तारीफ है।
आपकी बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं।
आपका चिंतन और विश्लेषण बहुत अच्छा लगा.
बहुत उचित शीर्षक दिया है आपने किस्मत के धनी धोनी.... क्योंकि अब धोनी उतने धारदार नहीं रहे जिसकी वजह से इन्हें देश का नेतृत्व करने का मौका मिला था। लेकिन इनको जैसे ही नेतृत्व मिला टीम के अधिकांश सदस्य फार्म में आ गए नतीजतन धोनी को मिली जीत दर जीत। इधर कुछ समय से जब धोनी आउट ऑफ फार्म चल रहे थे और खिलाडिय़ों का भी नेतृत्व भी नहीं कर पा रहे थे, यहां तक कि इनकी रणनीतियों की खूब धुलाई विपक्षी टीम कर रही थी। इनकी विदाई की भी चर्चा नक्कारखाने में सुनाई देने लगी थी फिर किस्मत पलटी खाई और अपने शानदार प्रदर्शन जिसमें देश की ओर से सर्वाधिक रन बनाया और साथियों के सहयोग से एशिया कप जीत कर डेढ़ दशक का सूखा समाप्त किया............है ना झारखंडी मुंडा लकी.........खैर अब धोनी कुछ सीरीज तक चैन की सांस ले सकती हैं और पंकज भाई धोनी ने विरोधियों को अंगुलियां अंगूठे से दबाने के लिए मजबूर कर दिया है। धोनी की इस किस्मत की मैं बलिहारी हूं............. और आप भी होइये....
बहुत बढिय़ा विश्लेषण। पहले तो लेख के लिए बधाई। वाकई अब धोनी में वो दम नहीं रहा जिसके लिए लोग टीवी और मैदान में उन्हें देखने के लिए जम जाते थे। शायद अब धोनी को पीने में दूध कम मिल रहा है एक तो दूध का उत्पादन घट गया दूसरा वह मंहगा भी हो गया है... (मैं बस मजाक कर रहा था)
लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि धोनी की बैटिंग में वो धार नहीं बची जो पहले थी, चौके-छक्के लगाना तो दूर की बात अब तो वे एक-एक रन के लिए तरसते देखे जाते हैं। ये तो सच ही है कि वो किस्मत के धनी है वरना कप्तनी उनके पास नहीं किसी और के पास जाती। जिनके पास जानी थी वे राजकुमार अनुशासनहीनता में शीर्ष पर हैं, क्रिकेट के नाम पर उनकी फिटनेश खराब हो जाती है लेकिन पब में मस्ती करने से वो उस खराब फिटनेश के दौरान भी नहीं चौकते। और अभी भी हम कैसे जीते वो किसी से छुपा नहीं है।
सोले सिनेमा का डायलॉग याद आ गया कि मैं देखना चाहता था कि अब भी तुम्हारे बाज़ुओं में वही ताक़त है या वक़्त की दीमक ने तुम्हारे बाज़ुओं को खोखला कर दिया है... भारतीय क्रिकेट में ई दीमक तनी समय से पहले लग जाता है, पईसा का दीमक... अब ऊ चाहे सदी के महानतम खिलाड़ी सचिन हों, या कप्तान धोनी...इतिहास गवाह है भारत में कोई भी क्रिकेट कप्तान के हटने पर ई नहीं कहा गया कि आप काहे हट रहे हैं… हमेसा एही कहा गया कि आप काहे नहीं हट जाते हैं... एही से सचिन बाबू कप्तानी से दूरे रहे... न नौ मन तेल होइहें, न राधा नचिहें...
धोनी कप्तानी मिलने के बाद से ही किस्मत के धनी रहे हैं.
bhai pankaj ji vaise aapne jo captan ke baare me likha hai bilkul sahi kaha hai sach me dhoni ki kaptani india ke liye achchi rahi hai aur dhoni brigade aise hi achche pradarshan karte rahenge jaise aap kar rahe ho bahut achcha laga aapka chintan keep it up
घनश्याम सिंह
अवधेध गुप्ता जी की बात में थोड़ा और जोड़ते हुए...............
धोनी को हटाने की बातें भले ही हों, लेकिन उनसे अच्छा विकल्प तो फिलहाल भारतीय टीम में नहीं है। ये अभी जिम्बाब्वे दौरे में भी देखने को मिला, भले ही भारतीय टीम दोयम दर्जे की थी, लेकिन रैना ने कप्तान के रूप में कुछ खास नहीं किया। तेंदुलकर कप्तान बनेंगे नहीं, युवराज का हाल अजय जडेजा की तरह है जो वनडे के लिए तो फिट है लेकिन टेस्ट टीम में उनकी कोई पक्की जगह नहीं है। सहवाग भी एक विकल्प हो सकते हैं लेकिन वह भी 32 साल के हो गए हंैं और फिटनेस उनका साथ नहीं देती। धोनी कुछ मौकों पर फेल हुए तो वह चयनकर्ताओं की वजह से। उन्हें उनके मुताबिक टीम नहीं मिली। आईपीएल में उथप्पा, मनीष पांडे, अंबाती रायडु, सौरभ तिवारी ने जैसा प्रदर्शन किया उसके बल पर वह ट्वंटी-20 वल्र्डकप टीम में जगह पाने के हकदार थे जबकि टीम में पूरे आईपीएल के दौरान एक भी अच्छी पारी नहीं खेलने वाले युवराज सिंह, पीयूष चावला, एक तेज शतक के अलावा कोई भी अच्छी पारी नहीं खेलने वाले युसूफ पठान जैसे खिलाड़ी टीम में थे, मेरा मानना है कि उनसे अच्छा क्रिकेट उनके छोटे भाई इरफान पठान खेलते हैं। दूसरे विकेट कीपर के रूप में दिनेश कार्तिक थे, लेकिन उनसे बहुत अच्छा प्रदर्शन नमन ओझा ने किया था। गेंदबाजों में इशांत को नहीं ले गए जबकि कोच उनको टीम में चाहते थे, श्रीसंत की अनदेखी हुई, सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले प्रज्ञान ओझा के नाम पर तो चर्चा ही नहीं हुई।
मेरे ख्याल से धोनी के पक्ष में इतना काफी है। अगर बाहर रहे इन खिलाडिय़ों में से आधे भी टीम में होते तो वल्र्ड कप में कम से कम पहले दौर से बाहर नहीं ही आते। अब अगर चयनकर्ताओं ने इन्हें नहीं चुना तो इसमें धोनी की क्या गलती।
aapki pyari si tippni ke bahane aapke blog ke aur aapki rachnadharmita ke darshan hue. mera saubhagya hai. lekh achchhaa hai. kismat buland ho to fir kya kahane.
pyare kismat khi to khel hai. is se to gadhe bhi khir khate haim
लगे रहो भाई... हम दूसरों की किस्मत की कहानी बयां करके ही अपनी दुकान चला सकते हैं... अपनी किस्मत चमकनी अभी बाकी है... :-)
new layout behtareen hai, yahi kaunga ki changing nature ka niyam hai, so changing is nesesry with the poosess of time.
निसंदेह धोनी किस्मत के धनी हैं...मगर पूरा फ़ाइनल मैच मैंने देखा था...क्या लाजवाब बौलिंग और फिल्डिंग की थी खिलाडियों ने ...वाह !
..आपकी समीक्षा अच्छी है.
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