सोमवार, जून 07, 2010

ये कैसी यंगिस्तान

भारतीय क्रिकेट टीम। सही नाम तो यही है। मोहम्मद अजहरुद्दीन के समय तक देश की क्रिकेट टीम को इसी नाम से पुकारा जाता था। कमान सौरभ गांगुली के हाथों में आई तो इसे 'टीम इंडियाÓ का नाम दे दिया गया। कहा गया कि इस टीम में एकता है। हर खिलाड़ी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन पूरी निष्ठा और लगन से कर रहा है।

वो एक जमाना था। समय बदला तो बाबू मोशाय गांगुली हाशिए पर चले गए और झारखंडी लाल महेंद्र सिंह धोनी को टीम की कमान सौंपी गई। जबकि युवराज सिंह इस पद के प्रबल दावेदार थे। खैर, जब सचिन को छोड़कर सभी वरिष्ठ खिलाडि़यों की विदाई हो गई तो टीम को यंगिस्तान कहा जाने लगा। यानी सभी खिलाड़ी युवा हैं, जोश से भरपूर। इसी यंगिस्तान की पहली परीक्षा गत दिनों हुई। श्रीलंका और जिम्बाब्वे जैसी अपेक्षाकृत कमजोर समझी जाने वाली टीम के साथ भारत ने त्रिकोणीय सिरीज में हिस्सा लिया। मजे की बात यह रही कि पहली ही परीक्षा में टीम की पोल खुल गई। टीम ने कुल चार मैच खेले। उनमें एक जीता और तीन हारे। खास बात यह रही कि तीन में से टीम ने दो मैच जिम्बाब्वे से हारे और सिरीज से बाहर हो गई। इससे पहले करीब साढ़े तीन साल पहले कुआलालंपुर में तीन देशों की सिरीज हुई थी, टीम उसमें फाइलन तक नहीं पहुंच पाई थी। इस सिरीज में दूसरी टीमें ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज थीं। लेकिन, गौर करें तो पता चल जाएगा कि उस हार में और इस हार में कितना फर्क है। ऑस्टे्रलिया और वेस्टइंडीज किसी भी टीम को हरा सकती हैं। उस समय टीम भी इतनी युवा नहीं थी। युवाओं और अनुभव का अच्छा तालमेल उस टीम में था। लेकिन, इस बात तो यंगिस्तान उससे हार गई जो कमजोर मानी जाती है। हालांकि, मैं मानता हूं कि क्रिकेट में कोई भी टीम बड़ी या छोटी नहीं होती वही टीम जीतती है जो उस दिन अच्छा प्रदर्शन करती है। तो क्या माना जाए कि भारत ने जिम्बाब्वे के खिलाफ लगातार दो मैचों में घटिया प्रदर्शन किया। उसी टीम ने जिसे भविष्य की टीम माना जा रहा है और यंगिस्तान के नाम से पुकारा जा रहा है। इस सिरीज से यह पता लग गया है कि इस टीम के खिलाड़ी कितने पानी में हैं।


खैर, अब बात उस टीम की जो एशिया कप के लिए चुनी गई है। टूर्नामेंट १५ जून से होना है। कुछ ही देर पहले इसके लिए टीम का चयन किया गया। इसमें युवराज सिंह को टीम में शमिल नहीं किया गया है। कारण है लगातार लचर प्रदर्शन, जो आईपीएल से ही शुरू हो गया था और अब तक जारी है। वे भी यंगिस्तान के सदस्य माने जाते हैं। अब बात उन अन्य खिलाडि़यों की जो यंगिस्तान के सदस्य हैं पर उन्हें इस सिरीज के लिए टीम में शामिल नहीं किया गया। युसुफ पठान, जो सिर्फ आईपीएल में ही चलते हैं। बाकी जब उन्हें भारत की तरफ से खेलना हो तो पता नहीं उनका दमखम कहां चला जाता है। कभी-कभी तो लगता है कि युसुफ के बल्ले से शॉट पैसे देखकर ही निकलते हैं। जितने ज्यादा पैसे उतना ही जोरदार शॉट। नहीं तो वे बल्ला लिए खड़े रहेंगे और गेंद उनकी गिल्लियां बिखेर देगी। दिनेश कार्तिक, जो आईपीएल में दिल्ली डेयरडेविल्स के सदस्य हैं और अच्छे बल्लेबाज माने जाते हैं। उनके साथ एक समस्या धोनी की भी है। धोनी भी विकेट कीपर हैं और कार्तिक भी। एेसा बहुत कम होता है कि टीम में दो विकेट कीपर शामिल किए जाएं और धोनी को हटाना फिलहाल किसी के वश की बात नहीं दिखती। लेकिन, इसके बाद भी इतने समय तक एक बल्लेबाज की हैसियत से टीम में बने रहना उनके लिए बड़ी बात है। वे एक दो रन चुराने में माहिर माने जाते हैं। वैसे ही जैसे मोहम्मद कैफ माने जाते हैं। लेकिन, लगता है अब टीम को एक-एक, दो-दो बनाने वाले नहीं बल्कि एेसे लोग चाहिए जो चौका-छक्का लगाएं। भले वे टीम को जिता न पाएं। एक और नाम है जो एशिया कप की टीम लिस्ट में नहीं है वह है अमित मिश्रा का। एक एेसा भी समय था जब अमित को अनिल कुंबले की जगह भरने वाला बताया गया था। अब हालात यह हैं कि उन्हें उस टीम में भी जगह नहीं मिल पा रही है जो किसी बड़े टूर्नामेंट में खेलने जा रही है। अंतिम एकादश की तो बात ही छोड़ दीजिए।


और अब बात सचिन की। सचिन श्रीलंका में एशिया कप में खेलने नहीं जा रहे हैं। उन्होंने चयन समिति से खुद को टीम में शामिल न करने का आग्रह किया था। बताया जा रहा है कि वे कुछ समय अपने बच्चों के साथ बिताना चाहते हैं। यह सही बात है, अतिव्यस्त क्रिकेट कार्यक्रम की वजह से खिलाड़ी अपने परिवार के साथ समय नहीं गुजार पाते। जब तक पूरी टीम श्रीलंका में एशिया की सबसे बेहतर टीम होने की लड़ाई लड़ेगी सचिन परिवार के साथ रहेंगे। बहुत संभव है कि मसूरी भी जाएं। वे अक्सर छुट्टियां बितानें मसूरी में अपने मित्र नारंग के यहां जाते हैं। लेकिन, अब दूसरी बात। क्या सचिन वास्तव में परिवार के साथ समय गुजारना चाहते हैं इसलिए श्रीलंका नहीं जा रहे। यह बात ठीक हो सकती है। पर दूसरा कारण इससे बड़ा है। दरअसल सचिन २०१२ का विश्वकप खेलना चाहते हैं, यह बात वह कई बार कह भी चुके हैं और उससे पहले कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहते। मसलन कल को अगर उनका प्रदर्शन ठीक न हो तो तत्काल उन्हें टीम से बाहर कर देने की मांग उठने लगेगी। हो सकता है उन्हें टीम से निकाल दिया जाए। या फिर किसी मैच में खेलते हुए उन्हें चोट भी आ सकती है। जिससे उनके सामने मुश्किल आ सकती है। सचिन एेसा कुछ नहीं होने देना चाहते, जिससे वे विश्वकप खेलने से वंचित रह जाएं। वैसे सचिन की समझदारी की भी दाद देनी होगी।

जी, तो बात हो रही थी यंगिस्तान की। यंगिस्तान कितना मजबूत है और आने वाले दिनों में भारतीय क्रिकेट का भविष्य कितना उज्ज्वल है इसका अंदाजा पिछले दिनों हुए टूर्नामेंट के आधार पर लगाया जा सकता है। और हां किसी को शक हो तो एशिया कप भी देख लीजिएगा। खासकर उन खिलाडि़यों के प्रदर्शन पर नजर रखिएगा जो यंगिस्तान के सदस्य कहे जाते हैं।

देखिए और इंतजार कीजिए।

11 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

देखते हैं. उम्मीद तो बेहतर प्रदर्शन की ही करें.

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

कडुवासच ने कहा…

...वैसे अब इन निकम्मों से ... रैंप पर चलने ... चीयर गर्ल्स के साथ मौज मस्ती ... रात की पार्टी ... के अतिरिक्त अन्य कोई आशा रखना ...!!!!

माधव( Madhav) ने कहा…

the Young Indian Players are lacking the killer instinct. their performance are lacklustre.

they ARE NOT FUTURE

hem pandey ने कहा…

यह एक बार नहीं अनेक बार चर्चा होती है कि भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी देश के लिए कम और अपने व्यक्तिगत परफोर्मेंस तथा पैसे के लिए ज्यादा आग्रही हैं.

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया और सठिक लिखा है आपने! देखा जाए तो आजकल भारतीय खिलाड़ी दौलत कमाने के चक्कर में विज्ञापन में तथा फैशन शो और अन्य कार्यक्रम में भाग लेते हैं जिससे उनका खेलने का प्रदर्शन घटता हुआ नज़र आता है!

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

पंकज भाई......... पंकज भाई!
यंगिस्तान को मौज मस्ती से फुरर्सत मिले तो कुछ करें। पार्टी में बेहतर डांस करना है ना तो उसकी प्रेक्टिस भी करनी है बस हमारा यंगिस्तान उसी प्रदर्शन को सुधारने में लगा है। क्रिकेट की प्रैक्टिस की जरूरत ही क्या है वो तो उन की रग रग में खून बनके दौड़ता है.... जिम्बांबे तो फिर भी मजबूत टीम है ये तो बांग्लादेश से भी हार सकते हैं... हार सकते हैं क्या हारे हैं। बाकी सब आपने लिख ही दिया है।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

हम तो बस दुआ ही कर सकते हैं....

PRAVIN ने कहा…

अच्छा लिखा है पंकज भैया, आपने बहुत सारे मुद्दे उठाए हैं। इससे मुझे (आपके पाठक को) लंबी टिप्पणी करनी पड़ेगी । इस शिकायत से अवगत करा चुका हूं। इसे ज्ञान देना मत समझिएगा मैं आपका छोटा भाई हूं। जिस दिन आप ऐसा समझेंगे मैं निष्पक्ष पाठक की तरह टिप्पणी नहीं कर पाऊंगा। सबसे पहले एक बात कि अगला विश्वकप 2011 में होने वाला है,12 में नहीं। दूसरी बात ये कि खेलों में हार-जीत तो होती रहती है। इसका केवल तात्कालिक महत्व है। लेकिन इस टीम के प्रदर्शन ने सच में मायूस किया है, प्रशंसक टीम से इतना उम्मीद कर सकते हैं यह उनका हक है कि टीम किसी सीरीज में कम से कम किसी दूसरी नवोदित टीम से आधे मैच तो जीते। आपने भारतीय टीम को यंगिस्तान कहा- शीर्षक से देश के बारे में पता चलता है, टीम को संबोधित करने के लिए टीम यंगिस्तान कहना था। लेकिन आपने शायद ध्यान न दिया हो लेकिन आपकी अपील और पीड़ा को इस अर्थ में भी समझ सकते हैं कि यंगिस्तान शीर्षक देकर आपने क्रिकेट को छोड़कर शेष देश के प्रगति की ओर उम्मीद लगाने की अपील की है। एक बात और कि सचिन के विषय मेंं आपने जो लिखा उसी इस तरह भी लिया जा सकता है कि कम से कम वह इतना तो ईमानदार है कि अपनी क्षमता को देखते हुए सही निर्णय लिया है, दूसरे उसके पास एक उद्देश्य और योजना तो है, ऐसा तो नहीं कि अनफिट हैं और रुपयों के लिए खेले पड़े हैं न जीतने के लिए। हमारी क्रिकेट टीम के साथ यह भी देखने को मिल रहा है, कि अनफिट हैं फिर भी खेलने को तैयार हैं चाहे इसका जो भी नुकसान हो। सचिन के इस फैसले से उसपर भरोसा मजबूत हुआ है।

Shekhar Kumawat ने कहा…

bahut khub

Amitraghat ने कहा…

" बिल्कुल सही लिखा है आपने जब पेट भरा होगा तो लोग खेलेंगे ही क्यों...पहले इनके पेट खाली करवाना चाहिये....."

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