भई कमाल हो गया... क्या कहूं? और क्या लिखूं? बात से चली थी और कहां पहुंच गई? जिसने चलाई थी उसे भी नहीं पता। चार-पांच जून की रात में बाबा और सरकार के बीच ऐसा कुछ हुआ कि क्या से क्या हो गया। कभी बाबा और बाबा के लोग बोलते हैं तो कभी सरकार और सरकारी लोग। इसके अलावा लगता है देश के लोगों ने बोलने का अधिकार खो दिया है। वह बोल नहीं सकता वह बस सुन सकता है। वह भी चुपचाप।
वैसे देखा जाए तो अच्छा ही हुआ। देश के पास बहुत दिनों से कुछ था भी नहीं। कुछ होना भी तो चाहिए न... कुछ न होना बहुत दु:ख देता है। और कुछ हो जाना खुशी दे जाता है। सरकार की लाठियां भले बाबा और बाबा के भक्तों पर पड़ीं हों लेकिन इससे बहुत सारे लोग खुश हो गए। नेताओं को बोलने का मौका मिल गया। लोगों को बेवकूफ बनाने का एक और अवसर उन्हें बस बैठे बिठाए ही मिल गया। चुंकि मैं राजनीति पर नहीं लिखता और यह राजनीतिक ब्लॉग भी नहीं है इसलिए इस विषय को विस्तार नहीं दूंगा यही पर फुलस्टाप।
साल महीने में कुछ ही ऐसे मौके आते हैं जब सबकी जुबां और कलम पर एक ही विषय हो... ये उन्हीं में से एक है। अखबारों में सर्वज्ञ पत्रकार लेख लिखकर अपनी ज्ञान की गंगा बहा रहे हैं। इसी बहाने लोगों को पता चलेगा कि वह अपनी सक्रिया हैं, शांत नहीं हुए। संपादकीय लिखे जा रहे हैं। वैसे तो संपादकीय निष्पक्ष होना चाहिए लेकिन बाबा के मामले में ऐसा नहीं है। दो तरह के संपादकीय लिखे जा रहे हैं। यह बताने की जरूरत नहीं कि वे दो प्रकार कौन से हैं। इधर देख रहा हूं कि ब्लॉगों पर भी हर व्यक्ति अपनी अपनी तरह से अपना दृष्टिकोण रख रहा है। बहुत से मृतप्राय: पड़े ब्लॉगर भी जाग उठे हैं, आखिर इससे बेहतर मौका और कौन सा मिलेगा की-बोर्ड को तकलीफ देने के लिए। इसी बहाने उसकी धूल भी कुछ साफ हो जाएगी और ब्लॉग एक बार फिर जिंदा हो जाएगा। पूरा देश दो धड़ों में बंटा हुआ है, एक बाबा के साथ है तो दूसरा उनके विरोध में है। बहुत से लोग बाबा का पुलता जला रहे हैं उनमें मैंने ऐसे लोग भी देख जो अक्सर बाबा के दवाखाने पर दिख जाते थे। अब वही बाबा का पुतला जला रहे हैं।
खैर.. भला हो बाबा का जो उन्होंने एक मुद्दा तो दे ही दिया, अब करो बहस। चाय की दुकान हो या अखबार का स्टॉल। हर जगह बस एक ही बात। अखबारों का प्रसार भी बढ़ गया है, टीवी पर दिनभर एक ही खबर देखने के बाद भी लोगों का मन वही बात अखबार में फिर से पढऩे का होता है। मुझसे क्या??? बाबा के बहाने मुझे भी एक मौका मिल गया सो ब्लॉग अपडेट हो गया। शुकिया बाबा।
16 टिप्पणियां:
baba k bahane acchaa likh diya. gwalior me 1 saal pura karne k liye badhai.
हमें तो उम्मीद न थी मित्र कि इतनी जल्दी अपडेट होगा. हम तो बस यही सोच रहे थे कि कौन सी जेल में होगे..किस हाल में होगे..कब छूटोगे..छूटोगे भी या नहीं. छूटने के बाद यहाँ आओगे या संसद का रुख करोगे...अनेक प्रश्न हैं..टिप्पणी बक्सा छोटा...
कम बोला- ज्यादा समझना...और उससे भी ज्याद अगली पोस्ट में बताना. :)
???
blagr ko bhi fayda ho gya likhne ka vishay mil gaya ...
पंकज जी, बाबा के बहाने से ही आये; (बहुत दिनों बाद)
बाबा का शुक्रिया
सच कहा आपने , इसी बहाने सोये हुए भी सक्रीय हो गए। वैसे आपका पता नहीं चला की आप बाबा के हमदर्द हैं या दिग्गी और सिब्बी के।
जरुरत भी है ऐसे मौकों पर लिखने की... वरना बना बनया माहौल यूँ ही निकल जायेगा....
बहुत बढ़िया ....अच्छा आलेख.
पंकज झा.
baba ke bahane pankaj ji tumne hi nahi bahuton ne apni bhadaas nikali hai.poore desh ke soye hue logon ko ek mudda mil gaya.
Isi bahane aapka sundar post bhi padhane ko mil gaya...aabhar...
...अच्छा आलेख
माफ कीजिएगा, आपने एक गंभीर मामले का मजाक बना दिया।
मुझे लगता है कि बाबा ने मुद्दा बढिया थामा है, कालाधन वापस आना चाहिए, लेकिन बाबा खुद इसमें शामिल हैं, इसलिए वो इस पर सरकार के चंगुल में फंस गए।
आंदोलनों की अगुवाई वही कर सकता है, जिसका दामन पाक साफ हो। बाबा जमीन के घोटाले में फंसे हैं, पांच ट्रस्ट, 45 कंपनी बनाने की जरुरत भगवाधारी को क्यों पड़ी, उनका चेला नेपाल का वांटेड बताया जा रहा है, पासपोर्ट गलत जानकारी देकर हासिल किया है। लिहाजा सरकार ने उनके साथ सही सलूक किया।
हां बेचारी जनता जो बाबा के बहकावे में योग सीखने आई थी, उसे बेवजह सरकारी लाठी का सामना करना पड़ गया। सत्याग्रह की भी बाबा ने ऐसी तैसी कर दी, क्योंकि सत्याग्रही मर जाते हैं लेकिन भागते नहीं है, बाबा को तो भागने के लिए महिलाओं के कपड़े पहनने तक में शर्म नहीं आई।
सही है, काम करें न करें बात तो करी जा सकती है, वही कर रहे हैं।
उम्मीद लगाये बैठे हैं कि शायद १६ अगस्त को अन्ना के बहाने फिर अपडेट हो यह ब्लॉग...
लिखते काहे नहीं भाई?
बहुत बढिया लेख
बढिया है
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