सोमवार, मई 09, 2011

इंडियन पल्टन लीग और अपने चंडीदास

मेरे मोहल्ले में इन दिनों सब पर क्रिकेट का जुनून सवार है। विश्व कप जीतने के बाद तो ऐसा लग रहा है मानो हर कोई अपने बच्चे को क्रिकेटर ही बना कर छोड़ेगा। बहुत संभव है कि आने वाले कुछ साल बाद देश में डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस अधिकारी और सेना के जवान कम पड़ जाएं। जब सभी बच्चे क्रिकेटर बन जाएंगे तो अन्य काम कौन करेगा। बड़ा सवाल है। वैसे अन्य पेशों की तरह पत्रकारों की जमात भी कम हो जाएगी। इससे मुझे प्रत्यक्ष रूप से फायदा होगा। जब नए लोग नहीं आएंगे तो मीडिया संस्थानों को पुराने पत्रकारों से ही काम चलाना पड़ेगा। मेरी अपनी नौकरी पर खतरा नहीं रहेगा यह एक अच्छी खबर है।
खैर इन सब बातों से दूर चलते हैं अपने मोहल्ले के क्रिकेट पर। तो मैं कह रहा था कि मेरे मोहल्ले में इन दिनों सब कोई क्रिकेट के रंग से सराबोर हुुआ जा रहा है। मोहल्ले में पिछले चार साल से क्रिकेट की एक प्रतियोगिता होती है। तीन साल तक इसमें आठ टीम हुआ करती थीं। इस साल दस टीम इसमें हिस्सा ले रही हैं। नाम रखा गया है, आईपीएल। नहीं... नहीं... आप गलत समझे..इसका मतलब है, इंडियन पल्टन लीग। इस प्रतियोगिता की खास बात यह है कि इसमें मोहल्ला या अन्य किसी प्रकार का गतिरोध नहीं होता। किसी भी मोहल्ले का व्यक्ति किसी भी मोहल्ले की टीम से खेल सकता है। उसे पैसा मिलेगा और शोहरत भी। इसलिए इसे नाम दिया गया इंडियन पल्टन लीग। इस बार टूर्नामेंट की खास बात यह है कि पिछले तीन साल से एक टीम के कप्तान रहे चंडीदास को इस बार किसी ने अपनी टीम में भर्ती नहीं किया। टूर्नामेंट जब आधे से अधिक हो गया तो चंडीदास के एक पुराने मित्र ने किसी तरह उन्हें टीम में शामिल कराया। चंडीदास की पत्नी मोना का कहना है कि पहले चंडी के साथ खेलते रहे रमेश जब अभी तक खेल सकते हैं और एक टीम की कप्तानी कर सकते हैं तो चंडी क्यों नहीं खेल सकते। बड़ी बात यह है कि चंडी के मित्र ने चंडीदास को टीम में शामिल तो करा लिया लेकिन मैदान पर नहीं उतार सके। चंडीदास के टीम में शामिल होने के बाद पिछले दिनों जब उनकी टीम मैदान में उतरी को चंडीदास टीम की जर्सी पहनकर बजाय रन या विकेट लेने के तालियां बजा रहे थे। लोग यह समझ पाने में अपने आप को असमर्थ पा रहे थे कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो चंडीदास मैदान पर नहीं उतरे। टूर्नामेंट अब उस दौर में पहुंच जबकि चंडीदास की टीम कभी भी टूर्नांमेंट से बाहर हो सकती है। चंडीदास पहले भी जिस टीम के कप्तान थे वह भी लगातार हार रही थी। इस बार वही टीम अच्छा प्रदर्शन कर रही है। अब चंडीदास खेलकर क्या दिखाना चाह रहे हैं। यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है।
वैसे एक बात तो हैं चंडीदास के फैन बहुत हैं। मैं भी उनमें से एक हूं, लेकिन अब सवाल यही है कि अगर चंडीदास न ही खेलते तो ही ठीक था। खेलकर कहीं अपने पुराने प्रशांसकों को चंडीदास खो न दें।

पुनश्य

किसी व्यक्ति का आत्मविश्वास और चुनौती स्वीकार करने की आदत कब उसकी हठ और घमंडी स्वभाव को दर्शने लगता है। यह अच्छी तरह अब मेरी समझ में आ रहा है।

5 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छा है

कविता रावत ने कहा…

cricket bhi daru gutke ke nashe se kam nahi..
badiya prastuti

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लगा! मुझे क्रिकेट देखना बहुत पसंद है और जिस मैच में सचिन खेल रहा हो उसे छोड़ने का तो सवाल ही नहीं!

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत बढ़िया लगा....

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

मैं भी नहीं समझ पा रहा हूँ कि आखिर चंडीदास को क्या हो गया है... उसी टीम से हार गया जिसको नीचा दिखने के लिए वह नए मोहल्ले कि टीम में शामिल हुए थे... वैसे इस मोहल्ले कि क्रिकेट ने क्रिकेट कि और से अपना मोह भंग कर दिया है.. असली मजा तो टेस्ट और ५०-५० में ही है...

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