बुधवार, अक्तूबर 06, 2010

थिंक बिफोर यू स्पीक

राहुल गांधी। इस समय कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हैं और युवा कांग्रेस की देखरेख की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उन्हें भविष्य का प्रधानमंत्री कहा जाता है, हालांकि उन्होंने कभी नहीं कहा कि वे प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। दरअसल वे कुछ और ही कह रहे हैं। वे कह रहे हैं कि संघ और सिमी एक ही थाली के चट्टे- बट्टे हैं। उन्हें दोनों में कोई फर्क दिखाई नहीं देता। उन्हें चमचागिरि और चापलूसी करने वाले लोग भी कतई पसंद नहीं। वे कहते हैं कि हर मर्ज की सिर्फ एक ही दवा है और वह है राजनीति।

अपने मध्य प्रदेश के दौरे के दौरान राहुल गांधी ने कई बातें कहीं। कुछ ऐसी जो कहनी चाहिए थी और कुछ ऐसी जो मेरे ख्याल से नहीं कहनी चाहिए। राहुल ने कहा कि उन्हें चाटुकार और चमचे पसंद नहीं हैं। मुझे नहीं पता कि ये राहुल के निजी विचार हैं या फिर पारिवारिक। राहुल को भले चाटुकार पसंद न हों पर उनकी मां को चाटुकार और चमचे ही पसंद हैं। अगर नहीं होते तो प्रतिभादेवी सिंह पाटिल आज देश की राष्ट्रपति नहीं होतीं। हो सकता है कि मेरी इस बात की जमकर आलोचना की जाए पर मैं जानना चाहता हूं कि प्रतिभादेवी सिंह पाटिल में ऐसी कौन सी खूबी है जो वह राष्ट्रपति के उम्मीदवार हो गईं। अगर महिला होने की वजह से उन्हें राष्ट्रपति बनाया गया तो प्रधानमंत्री पद क्यों किसी पुरुष के सुपुर्द कर दिया गया। क्या पार्टी में कोई ऐसी योग्य महिला नहीं जो प्रधानमंत्री बन सके? या फिर ऐसी महिला नहीं जो सोनिया गांधी की बात को आंख पर पट्टी बांध कर मान ले। खुद के प्रधानमंत्री न बन पाने के बाद क्यों उन्होंने कठपुतली मनमोहन सिंह का चयन किया। क्या कांग्रेस में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो अपने दम पर लोकसभा चुनाव जीत सके और प्रधानमंत्री बन सके। दरअसल सोनिया अच्छी तरह जानती हैं कि जो नेता लोकसभा का चुनाव जीत सकता है उसका अपना अच्छा खासा जनाधार होता है। मनमोहन सिंह चूंकि लोकसभा से संसद में प्रवेश नहीं करते सो उनका जनाधार भी नहीं होगा। सोनिया सिर्फ उन्हीं लोगों को पद बख्श रहीं हैं जो उनके कहे पर चलें। वे कहेंं दिन तो दिन और कहें रात तो रात। ऐसे नामों में केवल राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि कई नाम हैं। अगले लोकसभा चुनाव में जब राहुल प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे उससे पहले ही मनमोहन सिंह को राष्ट्रपित भवन भेजने की पूरी तैयारी अभी से की जा रही है। राहुल को पहले अपने घर से चमचागिरि खत्म करनी होगी तब वे कार्यकर्ताओं को चमचागिरी न करने का पाठ पढ़ाएं तो ज्यादा अच्छा होगा।

राहुल कहते हैं कि देश की हर समस्या की खात्मा तभी होगा जब युवा राजनीति में आएंगे। यानी हर मर्ज की एक ही दवा। राजनीति और सिर्फ राजनीति। कोई कम अक्ल का व्यक्ति भी यह बता सकता है कि कभी भी हर मर्ज की एक ही दवा नहीं हुआ करती। अगर देश का हर व्यक्ति राजनीति करने लगेगा तो बाकी के काम कौन करेगा, यह भी राहुल को तय करना होगा। केवल राजनीति से देश नहीं चला करता। राजनीति पेट नहीं भरती। वे युवाओं को देश की राजनीति में लाना चाहते हैं। पहले उन्हें अपनी पार्टी में युवाओं को स्थान देना होगा। पहले वे अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से अपनी मां को हटाकर किसी युवा नेता को इसकी जिम्मेदारी सौंपे और फिर किसी युवा को ही प्रधानमंत्री बनने की घोषणा करें। केवल युवा कांग्रेस को बदलकर देश की राजनीति नहीं बदली जा सकती। राहुल को यह बात भी समझनी होगी कि कहने और करने में बहुत फर्क होता है। देशभर में घूमने से, दलित के घर जाकर रोटी खाने से और उसके घर सोने से दलित को अच्छा तो लग सकता है, लेकिन इससे उसके पेट की भूख कम नहीं हो सकती। देश भूख है, कराह रहा है। इसके लिए राहुल के पास क्या दवा है? राजनीति। देश घूमकर उसकी समस्याओं को समझना एक बात है और उसकी समस्याओं का निराकरण करना दूसरी बात।

राहुल कहते हैं कि वे प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते। राहुल को चाहिए कि वे पहले अपनी पार्टी के उन नेताओं को यह कहने से मना करें, जो उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रहे हैं। राहुल को यह पता है कि अगले लोकसभा चुनाव में अगर उनकी पार्टी को बहुमत मिला तो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार वही होंगे सो अभी से ढोल-ताशे क्यों पीटे जाएं। हालांकि भीतर ही भीतर इसकी तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। योजना तैयार की जा रही है।

मजे की बात यह रही कि राहुल यहीं तक नहीं रुके। बुधवार को तो उन्होंने गजब ही कर दिया। उन्होंने कह दिया कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और सिमी में उन्हें कोई फर्क नजर नहीं आता। सवाल यह है कि क्या राहुल ने कभी निष्पक्ष भाव से दोनों में कोई फर्क देखने की चेष्टा की है। नहीं की होगी, क्योंकि उनकी आंखों पर एक तरह का चश्मा लगा है और उन्हें जो कुछ भी दिखता है। उस चश्मे से ही दिखता है। अगर निष्पक्ष भाव से देखते तो उन्हें पता चल जाता कि संघ और सिमी में क्या फर्क है। सिमी जहां एक प्रतिबंधित आतंकी संगठन है, वहीं संघ भारत भूमि की आत्मा से जुड़ा हुआ संगठन है। राहुल को अगर देशप्रेमी और देशद्रोही संगठनों में कोई फर्क नजर नहीं आता तो कोई क्या कर सकता है। बस उनकी बुद्धि पर मुस्कराया ही जा सकता है। वे जिस देश की राजनीति में युवाओं को लाने की बात कह रहे हैं क्या वे उस देश को समझ पा रहे हैं। इतने दिनों से देश भ्रमण के बाद भी अगर राहुल ऐसी बातें करते हैं तो लगता है कि लोग उन्हें यूं ही बच्चा नहीं समझते। वे वास्तव में अभी बड़े हो ही नहीं पाए हैं। बिना सोचे समझे बोलना उनकी आदत सी हो गई है। अंगे्रजी में पले बढ़े राहुल ने क्या थिंक बिफोर यू स्पीक की युक्ति नहीं सुनी होगी। सुनी होगी पर शायद उस पर अमल नहीं करना चाहते।

दरअसल राहुल की दिक्कत यही है कि वे अपने आप को बहुत बड़ा और विद्धान समझते हैं, वहीं अन्य लोग उन्हें बच्चा समझते हैं। राहुल को यह तक नहीं पता कि किसी के यहां जाते हैं तो कैसे पेश आते हैं। मध्यप्रदेश आगमन से एक दिन पहले ही यहां की सरकार ने उन्हें प्रदेश का अतिथि घोषित कर दिया था, लेकिन राहुल को शायद अतिथि भाव पसंद नहीं आया। उन्हें तो मायावती जैसे लोग ही पसंद आते हैं, जो उनके आने पर कोई व्यवस्था नहीं करती बल्कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गाली ही देती हैं। राहुल की हर गलती को बच्चा समझकर माफ कर दिया जाता है, लेकिन कब तक? बच्चा जब कोई गलती करता है तो पहले उस पर हंसी आती है और जब बड़ा होकर भी वह ऐसा ही करता है तो सजा दी जाती है। राहुल को चाहिए कि वे ऐसी नौबत न आने दें और कोई भी बात बोलने से पहले सोचें।

11 टिप्‍पणियां:

Rajaneesh shukla ने कहा…

राहूलजी की बात निराली है, युवराज है राज उन्हे अर्जित नहीम करना है तो तो उनका जन्म सिद्ध अधिकार है। अब संघ और सिमी ्में अन्तर नही जानते तो जान जायेंगें अब भी तो खेलने खाने के दिन है बच्चे है बिचारे भले मताधिकार पाये २८ साल ही हुयें हो, हैं तो बच्चे ही। गजब की बात करते हैं ’पा’ नही देखी क्या अब ऐसे का कहना क्या और करना क्या?
बहुत ही उत्तम लेख सामयिक और आवश्यक बधाई,

falsafa ने कहा…

man to baccha hai g!!!!!!!!! jo
man me aya bak diya.
rajniti vakai bahut gandi cheez hai. acche bhale aadme ko b andha bana deti hai. rss aur sime me rahul gandhi ko antar nahi dikhta to unhe andha he kaha jayega.
pankar ji twarit tippadi ke liye badhai. sahi likha, lekin thodi si kasar rah gai, rahul bhaiya ko thode aur nasihat de he dete.

Udan Tashtari ने कहा…

so true/// think twice before you speak.

ZEAL ने कहा…

राहुल कुछ जल्दीबाजी कर रहे हैं, कहने-सुनने में और अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

आप भी कमाल करते हैं, सोचने की बात करते हैं? युवराज कभी सोचते हैं क्‍या? उनके तो अमचे-चमचे पर्ची पर लिखकर दे देते हैं कि आज यह बोलना है और वह उसे बांच देते हैं। उन्‍हें क्‍या पता कि राष्‍ट्रभक्‍त क्‍या होते हैं और राष्‍ट्रद्रोही क्‍या होते हैं? ऐसे ही दो चार फिकरे और कसने दीजिए, जनता को समझ आ जाएगा कि जिसे हम सर-आँखों पर बिठाना चाह रहे हैं वह आखिर "पा" से भी गए गुजरे हैं।

rohit ने कहा…

मेरी सोच कहती है की बाबा उम्र से पहले ही बाबा हो गए हैं और दिमागी संतुलन खो बैठे हैं .बचपन से तो विदेश में रहे हैं ... अभी अभी तो आए हैं .. सीख जाएँगे धीरे धीरे संघ का मतलब क्या है ..
saubhagya maaniye ki es bacche ko desh ka PM nahi banaya gaya....kya pata ye kehta ki hindustan aur pakistan me fark hi kya hai????
rahul ji aapke samajhne ke liae--->
sangh aur SIMI me bas itna fark hai jitna ek sant aur aatankwaadi me hota है .....

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

राहुल गांधी भले ही प्रधानमंत्री बनने से मना करते हों, लेकिन मैं आपकी इस बात से सहमत हूं कि भीतर ही भीतर उन्हें प्रधानमंत्री बनाने की पूरी योजना चल रही है। उसी का परिणाम है कि राहुल के मना करने के बाद भी उनकी पार्टी के नेता उन्हें भावी प्रधानमंत्री कहते नहीं थकते। और हां यह वे ही राहुल हैं जिनके नेतृत्व में कांग्रेस कई राज्यों में चुनाव हारी, एक बार जीत मिली तो सुनियोजित योजना के तहत उसका पूरा श्रेय राहुल को दे दिया गया। उन्होंने संघ के बारे में जो वक्तव्य जारी किया है उससे लगता है कि अभी वे प्रधानमंत्री की कुर्सी के लायक नहीं हैं। उनकी समझदानी वाकई बहुत छोटी है। वैसे उनकी माताश्री ने भी एक दफा संसद में सिमी की जबरदस्त वकालात की थी और सिमी पर प्रतिबंध को गलत ठहराने का पूरा प्रयास किया। उसके बाद उन्हीं की सरकार को सिमी पर प्रतिबंध जारी रखना पड़ा।

sandhyagupta ने कहा…

सौ टके की बात.बोलने के पहले जरूर सोचना चाहिए.

Jitender 'Jeet' ने कहा…

शानदार. बहुत बढ़िया.
पता नहीं राहुल गरीबों के घर जाकर साबित क्या करना चाहता है. कांग्रेस वो पार्टी है, जिस पर नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली कहावत फिट बैठती है. सब इमानदारी का ढोल तो पीटते हैं, लेकिन अन्दरखाने जनता का खून चूसते हैं. cylinder के दाम देख लो या फिर पेट्रोल-डीजल के दाम. आम आदमी की तो कमर तोड़ कर रखती है.
अच्छा लिखा पंकज भाई. बधाई.
जीतेंदर 'जीत'
आज समाज, अम्बाला

S.Vikram ने कहा…

khsama chahunga kintu mujhe aapki baate tark poorn kam balki sangh prem se ot prot adhik lagi...

manoj kumar sharma ने कहा…

क्या बात है पंकज बहुत अच्छा।
राहुल ने तो जो चमचों ने लिखा है बोल दिया, तो उसमें उसकी क्या गलती। ये सब तो चमचों की गलती है। वैसे आप जैसे विद्वानों को अगर वो मौका दे तो शायद वह प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने पूरे पांच साल निकाल सकता है। क्यों सही कहा ने मैने

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