अयोध्या विवाद पर न्यायालय का फैसला आ गया है। पहली नजर में फैसला हिन्दुओं के पक्ष में जाता दिख रहा है, हालांकि यह भी सही है कि फैसला बहुत ज्यादा बड़ा है और उसे पढऩे, समझने और उसके मायने निकालने में समय लगेगा।
यह बात पहले से ही जाहिर थी कि मामला यही खत्म नहीं होगा और जो भी पक्ष यहां मुंह की खाएगा वह उच्च अदालत की शरण में जरूर जाएगा। होने भी यही जा रहा है, जल्द से जल्द वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट में जाएगा। फैसला सही है या गलत यह दूसरा मुद्दा हो सकता है, लेकिन अहम सवाल जो अब उभर कर सामने आ रहा है वह यह है कि क्या अब हमारे समाज में बदला हुआ परिदृश्य नजर आएगा। 30 सितम्बर2010 से पहले और 30 सितम्बर 2010 के बाद के माहौल और स्थिति में कुछ परिवर्तन आएगा क्या ? या सब कुछ पहले की ही तरह चलता रहेगा। पहली नजर में तो यही लगता है कि स्थितियों में निश्चित रूप से परिवर्तन ही नहीं बल्कि भारी परिवर्तन आने जा रहा है। यह बात अलग है कि यह परिवर्तन कब से आएगा। कुछ दिन बाद, कुछ महीने बाद या फिर कुछ साल बाद।
जिस तरह से 6 दिसम्बर1992 इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है, उससे बड़ी तारीख 30 सितम्बर2010 है। इस तारीख को60 साल बाद ऐसा फैसला सुनाया गया जिस पर करोड़ों नहीं बल्कि अरबों नजरें थीं। यह बात अलग है कि 6 दिसम्बर एक काला अध्याय था और 30 सितम्बर एक सफेद सच।6 दिसम्बर को मैं काला अध्याय इसलिए नहीं कह रहा कि उस दिन मस्जिद तोड़ी गई थी बल्कि इसलिए कह रहा हूं जो भी काम उस दिन किया गया वह गैर-कानूनी रूप से किया गया था और 30 सितम्बर को जो फैसला आया वह न्याय पालिका का फैसला है और यह बात सच है कि न्याय पालिका किसी धर्म, किसी मान्यता और किसी भावना को नहीं समझती उसे तो बस तर्क और सबूत चाहिए।
खैर, यह अलग मुद्दा हो सकता है। बात हो रही थी आने वाले समय के परिदृश्य में परिवर्तन की। जिस तरह 6 दिसम्बर की घटना के बाद देश की राजनीति और सामाजिक स्थिति में परिवर्तन आया उसी तरह अब भी आएगा। अगर मेरे कहे को अन्यथा न लें तो मैं यह भी कहना चाहूंगा कि देश इस समय जिस सबसे बड़ी समस्याओं में से एक से लड़ रहा है वह और बढ़ेगी और उसे रोकना अब और भी मुश्किल हो जाएगा। बात हो रही है आतंक की। जिस तरह से 6 दिसम्बर1992 की घटना के बाद देश में आतंकी घटनाओं में एकदम से बाढ़ आ गई थी कहीं न कहीं वही स्थिति फिर आने वाली है। आज अगर हर आतंकी घटना के पीछे किसी मुस्लिम नवयुवक का नाम आता है तो मैं दृढ़ता के साथ कहना चाहता हूूं कि उसके पीछे कहीं न कहीं 6 दिसम्बर 1992 भी है।
दरअसल देश के दुश्मनों को इसी तरह के मौकों की तलाश रहती है। और हम उन्हें जाने अनजाने इस तरह के मौके देते भी रहते हैं। देश विरोधी ताकतों को युवाओं को बरगलाने के लिए इसी तरह की घटनाओं का इंतजार रहता है। अब देश के दुश्मन युवाओं खासकर मुस्लिम युवाओं को इस बात का ज्ञान देंगी कि देखो जिस देश को तुम अपना कहते हो वह तुम्हारा है ही नहीं। वहां की कार्यपालिका और विधायिका तो तुम्हें अपना पहले से ही नहीं मानती थी अब एक ऐसा निर्णय सुनाया गया है जिससे यह साबित होता है कि न्यायपालिका भी ऐसा ही सोचती है।
मुझे आंकड़ों की जानकारी तो नहीं है, लेकिन याददाश्त के आधार पर इतना जरूर कह सकता हूं कि 6 दिसम्बर 1992 के 18 साल पहले कितने आतंकी हमले देश के ऊपर हुए और उसमें कितने देशवासी शहीद हुए और 6 दिसम्बर 1992 के बाद कितने आतंकी हमले हुए और कितने निर्दोष मौत के मुंह में असमय ही समा गए।
यहां कहना चाहता हूं कि जब मैंने पिछले दिनों सावधान आगे खतरा है हेडिंग से लेख लिखा था तो कई साथियों की टिप्पणी आई कि आप एक पत्रकार हैं पत्रकार ही रहिए ज्योतिषी मत बनिए। उनकी राय बिल्कुल सही है। मैं ज्योतिषी बनना भी नहीं चाहता पर जो चीज लगती है उसे यहां लिख देता हूं। यह भी सच है कि मेरी वह बात सच भी साबित हुई और दिल्ली में जामा मस्जिद के पास विदेशियों पर फायरिंग हुई। इतने संवेदनशील समय में भी पुलिस और अन्य विभाग अभी तक यह पता नहीं लगा पाए है कि आखिर वे हमलावर कौन थे? वे अभी भी देश में ही होंगे और भारत की ही रोटी खाकर पल रहे होंगे, लेकिन किसी को पता नहीं कि वे कहां हैं।
अंत में इतना ही और कि मैं न तो फैसला को अच्छा कह रहा हूं और न ही गलत, क्योंकि अदालत ने जो फैसला किया उसके लिए 60 साल का समय लिया और न जाने कितने लोगों की बात सुनी होगी, तब जाकर यह फैसला आया है, ऐसे में एक शब्द में इसका अर्थ निकालना मेरे ख्याल से बेवकूफी ही होगी। मेरा काम आगाह करना था सो कर दिया बाकी आपकी मर्जी.....
5 टिप्पणियां:
बढ़िया प्रस्तुति .......
इसे पढ़े और अपने विचार दे :-
क्यों बना रहे है नकली लोग समाज को फ्रोड ?.
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पंकज जी,
आगाह करने का शुक्रिया । आम जनता के हाथ में कुछ नहीं है। हम लोग मूक रहकर न्याय की अपेक्षा ही कर सकते हैं।
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danga hamasha sa muslim ilako sa hi shuru hota. yae log hai hi ldaku
आपके विचार पढ़े - एक तक संतुलित और विचारणीय भी पंकज जी। बहुत हद तक मेरी सहमति भी। हाँ मुझे लगता है कि भारत सहित पूरी मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा के रूप में लगातार बढ़ता आतंकवाद की जड़ में सिर्फ मजहबी उन्माद नहीं बल्कि इसकी सूक्ष्मता और निष्पक्षता से यदि पड़ताल किया जाय तो आर्थिक असमानता के मूल को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
हुआ अयोध्या नाम पर धन-जन का नुकसान।
रोटी पहले या खुदा सोचें बन इन्सान।।
कम लोगों को राज है अधिक यहाँ पर रंक।
यही व्यवस्था चल रही फैल रहा आतंक।।
आपके प्रयास की सराहना करता हूँ।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
The verdict based more on faith and religious belief than the basic tenets of history, archaeology, legal logic and historical facts of other streams of scientific knowledge can spark a debate on the jurisdiction of the courts.
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