भई अपने सचिन तेंदुलकर के क्या कहने। उनके बारे में क्या कहूं और क्या लिखूं। कई बार मन किया। कोशिश की, लेकिन नहीं लिख सका। वह इसलिए कि उनके बारे में क्या लिखूं। जब तक उनके किसी एक रिकॉर्ड के विषय में लिखा जाए, तब तक वे दूसरा रिकॉर्ड बना देते हैं। यह सिलसिला चलता ही रहता है। सच कहूं तो मन भी नहीं करता कि यह सिलसिला कभी बंद हो। जब सचिन ने ग्वालियर के रूपसिंह स्टेडियम में २०० रन बनाए तो चाहा कि लिखूं। लेकिन उससे पहले ही कई महान खेल पत्रकारों, विशेषज्ञों और न जाने किस-किस ने सब कुछ लिख डाला। खूब पढ़ा। जमकर पढ़ा। सोचता रहा कि मैं क्या लिखूं। कुछ समझ नहीं आया, तो यह विचार त्याग दिया। लेकिन क्या कहने। जब इतिहास लिखा गया तब मैं अंबाला में था, लेकिन कुछ समय बाद ही उस शहर में आ गया, जहां इतिहास रचा गया। अमर ग्वालियर और अमर रूपसिंह स्टेडियम। क्या कहने।
यहां आकर पता चला कि जब सचिन ने ग्वालियर के रूपसिंह स्टेडियम में नाबाद २०० रन बनाए थे तब से यहां के नगर निगम में एक प्रस्ताव लंबित था। उनके नाम से किसी मार्ग का नाम रखने का प्रस्ताव। वही प्रस्ताव गत दिनों नगर निगम परिषद की बैठक में पारित हो गया। यहां की पुरानी हुरावली रोड अब सचिन तेंदुलकर के नाम से जानी जाएगी। बैठक में इसके साथ ही एक निर्णय और लिया गया। रूपसिंह स्टेडियम की एक पवेलियन का नाम भी सचिन तेंदुलकर पवेलियन हो गया है। यह मई माह की परिषद की पहली बैठक थी। क्या कहने। भई वाह। आप क्या कहते हैं। मैं भी तो जानूं।
गुरुवार, मई 27, 2010
तेंदुलकर को ग्वालियर का सलाम
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10 टिप्पणियां:
mahant ka itna sila to milna to chayiye.
वाह! भई क्या कहने। हम तो अपने सचिन पर वैसे ही मरते हैं। उनकी इस पारी के गवाह भी हैं। बड़ी सुखद अनुभूति हुई थी जब उन्होंने २०० रन बनाने के बाद अपना बैट हवा में शान से लहराया था। ठीक उस तरह जब कोई राजा दिग्विजय करके अपने राज्य का ध्वज लहराता था। धन्य हुआ ग्वालियर उसकी इस पारी से। अब नगर निगम ने जो कदम उठाया है उसके लिए उसे बधाई और आपने ये बात दूर तक पहुंचाई इसके लिए आपको बधाई।
पुरानी हुरावली रोड अब सचिन तेंदुलकर के नाम से जानी जाएगी- यह तो सचिन के किसी भी प्रशंसक के लिए एक सुखद खबर है. वैसे तो पूरा भारत ही उनका प्रशंसक है.
बहुत अच्छी जानकारी.....
आप मेरे ब्लॉग पर आये ..शुक्रिया
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informative post
thanx for visiting my Blog
पंकज सर आपने बहुत अच्छी बात छेड़ी है। तेंदुल्कर से देश का जर्रा-जर्रा प्यार करता है और इतना ही तेंदुल्कर इस देश के हर जर्रे से प्यार करता है। रूप सिंह स्टेडियम में २०० रन बनाकर तेंदुल्कर ने ग्वालियर वासियों को तोहफा दिया था। उसीतरह स्टेडियम के पवेलियन और सड़क का नाम तेंदुल्कर के नाम से रखकर ननि ने तेंदुल्कर को ग्वालियर वासियों की ओर से भेंट दी है। ननि का यह प्रयास और इस मुद्दे पर आपका लिखना और प्रशंसकों की स्मृतियों में उस महान पारी को एक बार फिर स्मृतियों में ताजा करना काबिलेतारीफ है और इसके लिए दोनों को बधाई।
इस पोस्ट में नाचीज को बस एक बात अखरी हो सकता है उसकी वजह जल्दबाजी हो या मैं उसको समझ नहीं पा रहा..... पहला इस पोस्ट का शीर्षक- कभी भी राष्ट्र या उसका कोई हिस्सा किसी व्यक्ति से बड़ा होता है या व्यक्ति और तेंदुल्कर ने अनेक मुद्दों पर चाहे वह हिंदी हो या महाराष्ट्र में गैर प्रांतीय लोगों के रहने के अथवा अन्य मुद्दों पर समय समय पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस बात को दोहराया है तो इसका शीर्षक यह कर सकते थे कि तेंदुल्कर का ग्वालियर को सलाम ............ या ग्वालियरवासियों को तोहफा वैसे यह गलती कारक चिह्नों का असावधानी से प्रयोग के कारण हुई हो सकती लगती है । को और का जगह बदल दिये होते तो बात बन जाती और दूसरी बात मुझे खटकी कि कुछ लाइनों के बाद आप कहते हैं 'क्या कहनेÓ इससे थोड़ी गंभीरता खत्म होती है....दोहराव से प्रवाह भी बाधित होता है, वैसी आपकी शैली पसंद आई और मुद्दा भी अच्छा उठाया दोनों के लिए हमारा धन्यवाद ......................
नाचीज
समझ के अनुसार मेरी टिप्पणी
kya baat hai. acchi jankari ke liye dhanyavaad.
पंकज सचिन के बारे में कंमेंट लिखना सचिन के सितारो को धूमिल करने जैसा होगा। सचिन तो है ही सचिन
बहुत खूब लिखा आप ने
सचिन की बात निराली है। जब लोग उनके संन्यास की बात करते हैं तो समझ में नहीं आता कि आखिर वो करेगे क्या इसके बाद। जो पैदा ही बल्ला लेकर हुआ हो उसे तो जीवन पर्यन्त बल्लेबाजी ही करनी चहिए। पर एक कसक भी उठी थी उस दिन जिसे उठाया भी था. जल्द उस पर पोस्ट भी लिखूंगा।
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