क्या आप क्लाडियस को जानते हैं। शायद नहीं। क्लाडियस रोम के राजा थे। उनका मानना था कि ताकत और परिश्रम के लिए ब्रहमचर्य अति आवश्यक है। उनकी सेना के लडाके कुंआरे थे। लेकिन एक शख्स ने उनसे लोहा लेने की ठानी। वे थे संत वेलेंटाइन। उन्होंने सेना के कई लडाकों की गुपचुप तरीके से शादी करा दी। एक न एक दिन तो भेद खुलना ही था। खुला और उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया।
सवाल यह है कि लोग किसे जानते और मानते हैं। क्लाडिसय को या वेलेंटाइन को। जाहिर तौर पर वेलेंटाइन को। क्यों। शायद इसलिए कि उन्होंने प्रेम और सत्य को जीने की कोशिश की। तो क्या प्रेम और सत्य के अनुयायियों का यही हश्र होता है। लेकिन एक तथ्य और सत्य है कि ऐसे ही लोग इतिहास लिखते हैं। इतिहास ऐसे ही लोगों को अपने में समां जाने की अनुमित देता है। पोप ने पांचवी शताब्दी में उनकी जयंती माननी शुरू की और यह समूची दुनिया की धडकन बन गई।
अब दूसरी बात। कहा जाता है कि लैला खूबसूरत नहीं थी। लेकिन सब जानते हैं कि मजनू ने प्रेम के प्रतिमान स्थापित किये। देह तो उसका जरिया भर बनी। एक सप्ताह पहले ही वेलेंटाइन डे को लेकर उथल पुथल शुरू हो जाती है। अधकचरे किशोरों से लेकर प्रौढ तक को नाईयों के आधुनिक रूप ब्यूटी पार्लरों में भारी भीड देखी जा रही है। सभी अपने चेहरे पर तरह तरह के लेप और रसायन लपेटे हैं। किस लिए। इसलिए ताकि खूबसूरत दिखें। तो क्या खूबसूरती और प्रेम में कोई संबंध है। खूबसूरती प्रेम है या प्रेम खूबसूरत है। क्या कम खूबसूरत को प्रेम का अधिकार नहीं। प्रेम खूबसूरतों की बपौती है।
एक और बात। शुरू से सुनता आ रहा हूं कि प्रेम न बाडी ऊपजै, प्रेम ने हाट बिकाय। लेकिन अब प्रेम पर बाजार हावी होता जा रहा है। प्रेम को प्रदर्शित करने वाली हर वस्तु बाजार में उपलब्ध है। अब सवाल यह है कि क्या प्यार अपनी निजता खोता जा रहा है। जो भाव दिल में उपजने चाहिए उसके लिए किसी बाजारू चीज का सहारा। जो चीज निज नहीं है तो वह सार्वजनिक है और मोहब्बत सार्वजनिक कैसे। बाजार में फूल से लेकर चाकलेट वाले और न जाने किस किस ने प्रेम को प्रदर्शित करने का ठेका ले लिया है। इसके लिए ढेर सारे आफर भी हैं। आओ और प्रेम ले जाओ।
दरअसल प्रेम भारत में ही नहीं समूचे संसार में हमेशा से ही एक अति वैयक्तिक विषय माना जाता रहा है। शायद यही कारण है कि प्रेम की जन्म और मत्यु की तरह अब तक कोई सर्वमान्य व्याख्या नहीं हो सकी। जीवन में ये तीन शब्द हमेशा नये अर्थ और अंदाज में हमारे सामने आते ही रहते हैं। जिसने भी इनसे खिलवाड करने की कोशिश की यकीनी तौर पर सजा भुगतनी पडी। इसके विपरीत जिसने भी इसकी पवित्रता को बनाए रखा उसे इतिहास ने पन्नों में दर्ज होने की अनुमित दी।
कबीर भी कहते हैं कि पोथी पढ पढ जग भया पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम के पढै सो पंडित होय। रविववार को वेलेंटाइन डे है। यानी छुटटी का दिन। यही उम्मीद और आशा है कि कोई अनहोनी नहीं घटेगी और प्यार को प्यार ही रहने दिया जाएगा। कोई इसे कोई नाम देने की कोशिश नहीं करेगा।
7 टिप्पणियां:
सही कहा आपने । इस वक्त प्रेम का बाजार बहुत बड़ा है । दुकानों में खूब बिक रहा है सजीला प्रेम !
प्रविष्टि का आभार ।
बिलकुल सही समय पर ठोका नहीं
वेलेंतिने डे के बारे में पंकज भाई ने जो लिखा है मैं उससे सहमत हूँ .....इन्होने भी ' डेजी ' और उसकी मम्मी को वेलेंतिने डे पर दही जलेबी लखनऊ में खिलाई थी लकिन कुछ लोगों ने इस बारे में कहा है ........रूप में अनुरक्त मत हो उधर जाते हुए नेत्रों को रोको रूप में असक्त पतंगे को दीपक पर पड़ते हुई देख ......................
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत बढ़िया लगा आपका ये पोस्ट! बिल्कुल सही फ़रमाया है आपने! इस शानदार पोस्ट के लिए बधाई!
Bahoot khub likha he aapne...aap bhi duniya ke staye lagte he.magar kya kre dost duniya ka dastur he.jo sach baolta he uski awaj ko daba diya jata he. lekin dost ak bat jan lo sach hmesa vijai hata he.isi tarah likhate rho hum tumhare sath he...
It's a very very nice Article about value of love and changing ceneario of love in present time.....It's really awsome!
mishra ji aap ne sahee likha he. prem dikhawe kee cheej nahin he. yah to meera kh mohana he, vidur ka saak he. ya yun khem ki shabree kee ber kee tarh he. isko ek fool ya chaklet ke jariye abhiwykat nahi kiya ja sakta. yah to gunge ke goorh khane jaysa he. jiska kewl aanand liya ja sakta he.
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