सबसे पहले तो मैं ये बता दूं कि मैं राजनीति पर नहीं लिखता। इसके कई कारण हैं पर यहां कुछ एक का जिक्र कर दूं ताकि स्पष्ट हो जाए। पहली बात तो ये कि मैं जहां का निवासी हूं यानी उत्तर प्रदेश का वहां का एक बच्चा भी राजनीति और कि्रकेट पर राय दे सकता है। यहां राजनीति और कि्रकेट पर सबका अपना अपना दर्शन होता है। दूसरी बात ये कि देश में इस समय अगर किसी विषय के सबसे ज्यादा विश्लेशक हैं तो राजनीति और कि्रकेट के। मैं खुद को इन सब के सामने अपने आप को बहुत कमतर समझता हूं लिहाजा इस पर कुछ न लिखूं वहीं ठीक होगा।
अमर सिंह पर मैं इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मैं उन्हें राजनेता नहीं नौटंकीबाज मानता हूं। वे नौटंकीबाजों के साथ गलबहियां करते हुए दिखते भी ज्यादा है। अमर सिंह ने नौटंकीबाज के अलावा अगर अमर सिंह कुछ हैं तो व्यापारी हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि किससे नजदीकी होने पर भविष्य में क्या लाभ होगा उसी के मुताबिक योजना बनाते हैं। खास बात जब अमिताभ का मुंम्बई का बंगला प्रतीक्षा नीलाम होने की कगार पर था तब अमर सिंह ने अमिताभ से दोस्ती का हाथ बढाया। अमिताभ मरता क्या न करता वाली हालत में थे। दोस्ती स्वीकार कर ली। अब जीवन भर उनकी डुगडुगी बजाते रहेंगे। कल को हो सकता है अभिषेक या एश्वर्या राय कहीं से चुनाव लडते दिखें। पहले तो वे किसी दल में महासचिव भी थे अब तो ऐसा नहीं रहा तो भला मैं अमर सिंह पर लिखकर राजनीति पर कहां लिख रहा हूं।
खैर अब विषय पर। जैसी कि हेडिंग है कि ताकि फिर कोई अमर सिंह न बने। मेरे कहने का मतलब इतना ही है कि जब आप किसी दल में हो और ठीक ठाक पोजीशन हो तो कभी भी अपनी हद पार नहीं करनी चाहिए। अमर ने सपा के कई दिग्गज नेताओं पर निशाना साधा और उन्हें नेपथ्य में डाल दिया। अमर ने बेनी प्रसाद वर्मा, आजम खान और राजबब्बर सरीखे नेताओं पर जमकर प्रहार किये और सफल भी रहे। लेकिन इस बीच अमर भूल गए कि अब वे किस पर निशाना साध रहे हैं दरअसल विदवानों के विदवान अमर ने एक गलती कर दी और वह यह कि उन्होंने इस बात गलत निशाना साध लिया। उनका निशाना बने राम गोपाल यादव। यादव से ही जाहिर है वह मुलायम सिंह के रिश्तेदार होंगे। जी हैं भी। यह बात नेताजी मुलायम सिंह यादव को रास नहीं आई और उसी का परिणाम आज सबके सामने है। अमर सपा में दूसरे नम्बर पर पहुंच गए थे। हकीकत में तो कभी कभी वे नम्बर एक भी दिखते थे। दल के मालिक भले मुलायम हों पर अमर जो चाहते थे करवा लेते थे। लेकिन जरा सी भूल उन्हें भारी पड रही है। अमर सिंह को पता होना चाहिए कि बाप का उत्तराधिकारी बेटा ही बनता है। किसी भी क्षेत्रीय दल को देख लीजिए उसका मुखिया या तो संस्थापक होगा या फिर संस्थापक का बेटा।
बहुत छोटी पोस्ट में कहने का मतलब यही है कि अगर आप किसी दल में ठीक ठाक पोजीशन में हैं तो चुपचाप अपना काम करते रहें। कभी भी दल का मालिक बनने की कोशिश न करें। नहीं तो दूसरा अमर सिंह बनते देर नहीं लगेगी। इसीलिए कहता हूं ताकि न बने दूसरा अमर सिंह।
अमर सिंह पर मैं इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मैं उन्हें राजनेता नहीं नौटंकीबाज मानता हूं। वे नौटंकीबाजों के साथ गलबहियां करते हुए दिखते भी ज्यादा है। अमर सिंह ने नौटंकीबाज के अलावा अगर अमर सिंह कुछ हैं तो व्यापारी हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि किससे नजदीकी होने पर भविष्य में क्या लाभ होगा उसी के मुताबिक योजना बनाते हैं। खास बात जब अमिताभ का मुंम्बई का बंगला प्रतीक्षा नीलाम होने की कगार पर था तब अमर सिंह ने अमिताभ से दोस्ती का हाथ बढाया। अमिताभ मरता क्या न करता वाली हालत में थे। दोस्ती स्वीकार कर ली। अब जीवन भर उनकी डुगडुगी बजाते रहेंगे। कल को हो सकता है अभिषेक या एश्वर्या राय कहीं से चुनाव लडते दिखें। पहले तो वे किसी दल में महासचिव भी थे अब तो ऐसा नहीं रहा तो भला मैं अमर सिंह पर लिखकर राजनीति पर कहां लिख रहा हूं।
खैर अब विषय पर। जैसी कि हेडिंग है कि ताकि फिर कोई अमर सिंह न बने। मेरे कहने का मतलब इतना ही है कि जब आप किसी दल में हो और ठीक ठाक पोजीशन हो तो कभी भी अपनी हद पार नहीं करनी चाहिए। अमर ने सपा के कई दिग्गज नेताओं पर निशाना साधा और उन्हें नेपथ्य में डाल दिया। अमर ने बेनी प्रसाद वर्मा, आजम खान और राजबब्बर सरीखे नेताओं पर जमकर प्रहार किये और सफल भी रहे। लेकिन इस बीच अमर भूल गए कि अब वे किस पर निशाना साध रहे हैं दरअसल विदवानों के विदवान अमर ने एक गलती कर दी और वह यह कि उन्होंने इस बात गलत निशाना साध लिया। उनका निशाना बने राम गोपाल यादव। यादव से ही जाहिर है वह मुलायम सिंह के रिश्तेदार होंगे। जी हैं भी। यह बात नेताजी मुलायम सिंह यादव को रास नहीं आई और उसी का परिणाम आज सबके सामने है। अमर सपा में दूसरे नम्बर पर पहुंच गए थे। हकीकत में तो कभी कभी वे नम्बर एक भी दिखते थे। दल के मालिक भले मुलायम हों पर अमर जो चाहते थे करवा लेते थे। लेकिन जरा सी भूल उन्हें भारी पड रही है। अमर सिंह को पता होना चाहिए कि बाप का उत्तराधिकारी बेटा ही बनता है। किसी भी क्षेत्रीय दल को देख लीजिए उसका मुखिया या तो संस्थापक होगा या फिर संस्थापक का बेटा।
बहुत छोटी पोस्ट में कहने का मतलब यही है कि अगर आप किसी दल में ठीक ठाक पोजीशन में हैं तो चुपचाप अपना काम करते रहें। कभी भी दल का मालिक बनने की कोशिश न करें। नहीं तो दूसरा अमर सिंह बनते देर नहीं लगेगी। इसीलिए कहता हूं ताकि न बने दूसरा अमर सिंह।
3 टिप्पणियां:
nice
पंकज जी आप का अमर सिंह से संबंधित लेख पढा। ताज्जुब हुआ कि आप ने एक ऐसे मजे हुए नेता को नौटंकीबाज की संज्ञा दी है जिसने चुनावी मैदान से खुद को दूर रखते हुए भी यूपी जैसे देश के बडे प्रांत के प्रमुख सियासी दल में महासिचव सरीखे पद को हथियाने में सफल रहा। जबकि दल का एक तबका उनका घुर विरोधी शुरू से ही रहा। इतना ही नहीं अमर सिंह की काबिलियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होने यूपी में सियासत को कारपोरेट कल्चर में ढालने की नयी परिपाटी शुरू की। और तो और अमर ने सेलेब्रिटीज को भी दल से जोड कर समाजवाद का पाठ पढाया। जाहिर है सपा से इतने बडे पैमाने पर सेलेब्रिटीज और उद्यिमयों के अलावा ठाकुरों और अन्य गैर मुस्लिम जातियों को जोडना मुलायम या किसी अन्य के वश की बात नहीं थी।
भाई पंकज को मे दस सालो से जनता हु . इन्सान साफ दिल के है . अमर के उपर जो लिका है मे उससे सहमत हु . लेकिन अगर पंकज को भी मुका मिलता तो अमुअर सिंग से भी बड़े टंकी बाज बन जाय. लेकिन इन्सान बड़े सरल है.
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