रविवार, अगस्त 02, 2009

शुक्रिया राखी



राखी का स्वयंवर आखिरकार खत्म हो ही गया और मुझे ब्लाग लिखने की फुर्सत भी मिल ही गई। भइ क्या क्या नहीं हुआ इस स्वयंवर में घरों में, आफिसों में जहां भी देखो बस राखी और राखी का स्वयंवर। मैं भी इतना व्यस्त रहा कि कुछ कर ही नहीं पाया। जब टीवी खोलो तो राखी का स्वयंवर और अखबार पढो तो राखी का स्वयंवर। हालांकि हुआ वही जिसकी उम्मीद थी। इलेश ही राखी के लिए बना हुआ था।मैं राखी को तहे दिल से 'कि्रया इस लिए अदा कराना चाहता हूं कि अगर राखी ने स्वयंवर न रचाया होता तो हम आने वाली पीढी को कैसे बताते कि हमारे समय में भी एक स्वयंवर देखा था। हमारे पुरखे जब हमें बताते थे कि सीता ने स्वयंवर रचाया था, द्रोपदी ने स्वयंवर रचाया था तो लगता था कैसे रचाया गया होगा स्वयंवर। लेकिन धन्यवाद है राखी का कि उन्होंने हमें भी यह सब देखने का मौका दिया। कुछ भी हो। कितनी भी आलोचना हो पर एक बात तो है कि राखी ने जो किया वो हर किसी के बस की बात नहीं। पूरे पूरे परिवार के पास जैसे एक ही काम था और वह था राखी का स्वयंवर देखना। मैं इसलिए इतना खुश हूं कि हो सकता है राखी की देखा देखी हो सकता है किसी और का भी स्वयंवर हो जाए। इस बार तो मौका चूक गया लेकिन अगली बार मैं भी स्वंयवर का प्रबल दावेदार होउंगा। अब देखना यह है कि कब और किसका होता है स्वयंवर।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

umda panlaj je apna hi swambar kyo nhi kar dalte sare anubhav ek sath ho jayege.
khair shukriya rakhi aur shukriya pankaj je.

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